पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७४४

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R उसके कन्धे पर चढ़ सिया पौर वह धीरे धीरे चलने पाणिग्रहण किया पौर दोनों बरहने लगे। पर दूसरे लगा। विदूषक भो बन्नचितरूपसे उमक पोछे पोछे जान दिन राजकन्या स्वामीको न देख कर व्याकुल हो गई। लगे । कामशः वे दोनों एक कात्यायनो मन्दिर में पहुँचे। कई दिन बोत गये, तो भो उनका कुछ पता नहीं। योगोने शवको छोड़ कर मन्दिर में प्रवेश किया। विदूषक सबके सब चिन्तित हो गये। पोछे भद्राने अपनो सह. मन्दिरको भोतम कान लमाये खडे रहे । कुछ काल बाद चरो योगखरोमे सुना कि विद्याधरगण इसके लिए उस देववाणो हुई, यदि तुम अभिलषित वर चाहते हो, तो पर बहुत कम हो गये हैं। पादित्यमेनाको एकमात्र कन्याको में उपहार दो।' इस पर भद्राने विदूषकसे कहा, 'आप यहीं ठहरिये। यह सन का योगो फिर बेताल महार भोपथमे में पूर्व सागरके पार कर्कोटक नदोके पाल स्थित चल दिये । विषकने मोचा कि मैं अवश्य हो प्रतिपालक शोतोदा नदोकं दूमर किनार उदयगिरिक सिवाश्रमको को कन्याको रक्षा करगा। ऐसा मोचते हुए वे हाथमें जाती है। इतना कह उसमे यादगारो में अपनो मुंदरी तलवार निये उमौ जगह खड़े रहे। योगो जब राजकन्या- उन्हें से दो और आप उक्त स्थानको चली गई। विदः को ले कर वहां पहुंचा तब विषकने उसे कसम षक भी पागल जमे, 'हामने!' करते हए उस घरसे कर डाला। तब फिर देववाणो हर, विदूषक! यह निकल पड़े। गेछ राजा मादित्य मेनन ऐमो अवस्थाम योगो महावताल और मर्षपमिद था, कंवल पृथ्वो और देख रनको चिकित्सा कराई। दुःसाध्य रोग समझ कर राजकन्या मधोगको कामना अाज उसकी जातो एवं चिकित्सकोको मलाइ ले कर राजान उन्हें यथच्छ .रहो। तुम इन सब सष पो को ग्रहगा करो, इन्हींक व्यवहार करनेका अधिकार दिया। विदूषक भद्राको प्रभावमे बाज़ रातको भाकाशमार्ग मे अभीष्ट देशको तलाशमें निकले। दिन रात पूर्व दिशाको ओर जाते पहुच जावोगे।' यह सुन विदूषकनै मषो को ग्रहण जाते एक दिन वे शाम को पोण्डवीन नगर में पहुंचे। राजकन्याको भनी गोट में बिठा लियापक देव वहां उन्होंने एक राक्षको परास्त कर देवसेन राजा. वाणी हुई, 'मासके अन्त में फिर यहां भा जाना।" को दुःखुलब्धिका मामक कन्यासे विवाह किया। पोछे ___ विदूषकन प्रणाम कर पाकाशपथसे राजपुर- वे वहांसे ताम्मलिल नगरको चले गये। यहां स्कन्ददास को पोर प्रस्थान किया। कुछ समय बाद राजकन्या घर नामक बणिक के साथ उन्होंने समुद्रपथसे यात्रा को। पर पहुंच कर जब विदूषकमे उसे अपनो खाट पर सुला कुछ दिन बाद स्वान्ददासका जहाज समुद्र में रुक गया। दिया, तब वर बोलो, 'पाय ! आप यहाँसे न जाय' नहीं इस पर बहुत दुःखित हो कर बोला, 'जो मुझे इस सो भयसे मेरा प्राणान्त होगा।' विदूषक भो वहीं पड़ विपदमे उद्धार करेगा, उमे मैं अपना आधा धन पोर रहे। सुबहको जब ये सब बति राजाको माल मही', कन्या दूंगा।' विदूषकन स्कन्ददाससे कहा, 'कमरमें तब उन्हान विदूषकको पुरस्कारस्वरूप अपनी कन्या रम्मो बांध कर यदि पाप मुझे समुद्र में गिरा दें तो मैं दे दो। जब महोमा शेष भोनको चला, तब राजकन्या- पापका यह शकट दूर कर सकता हूं।' विदूषक ने देववाणीको बात विदूषकको याद दिला दो । विदू- वैसा ही किया, किन्तु स्वान्ददामन रुपये देनेके भयसे षक फिर श्मशान गये पौर कात्यायनीके मन्दिरक। उनको बन्धन रस्मो काट दी, जिससे वे नोचे समुद्र में समीप जा कर बोले, 'मैं विदूषक पा गया।' मन्दिरके गिर पड़े और अपने घरको राह लो । जब विदूषक बहुत भीतरसे भावाम पाई, भीतर चले पायो।' भोसर मुकिलसे समुद्र पार कर गये, तब दैववायो दुई, 'विदू. जाकर विदूषकम देखा कि वहां सुन्दर वासभवन. षक ! तुम धन्य हो। जिस स्थान पर तुम लाये गये हो, घोर एक प्रमामान्य रूपवती कन्या बटोर। पूछन- इसका नाम नम्नराज्य है। यहाँसे पूर्व को पोर सात से पता चला कि या विद्याधरकी कन्या पोर समका दिनका रास्ता तै करने के बाद हो कर्कोट नगर पहुँ। नाम है भद्रा । पोळ उसके अनुरोधसे विषकने उमका चोगे। तदनुसार सात दिन में ..वे काटनगर