पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७४९

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तेखिया-तेली तेनियाकंद हि.पु.) तैलकन्द देखो। पस जाति के कईएर विभाग ; जैसे-हत, तेलियाकत्या (हि.पु.) एक प्रकारका कत्या। इसका जैसवार, जौनपुरिया, कनौजिया, मथुरिया, राठौर, बोवा- भोतरी भाग काले रंगका होता है। स्तष, उमरो आदि। मिर्जापुर के तेलो व्याहुत, कनौ. . तेलियाकाकरजी (हि. पु. ) कानापनके लिये गहरा जिया, श्रीवास्तव पोर पछिवाहा श्रेणोभुत। ये लो। जदा रंग। विशेषतः भैस पर माल लाद कर पपनो जीविका सेलियाकुमत (हिं.पु.) १ घोड़े का एक रंग। यह निर्वाह करते है। बनारसमें थाहत, कनौजिया, जोन अधिक कालापन लिये लाल या कुमत होता है। परिया, श्रीवास्तष, बनरसिया, जेमवार. लोहौरिया, गुम्ना. २ इसो रंगका घोड़ा। हरिया और गुलहानो श्रेणीके तेली रहते हैं। इनमें तेनियागढ़ी-मन्यात परगनिके अन्तर्गत एक परगना और गुलहानो बमे निष्ट समझे जाते। जौनपुरिया उमो परगनेके मध्य एक गिरिपथ ननियागढ़ी गिरिपथके तेनो तेलका व्यवसाय न कर केवल टालका व्यवसाय उत्तरमें राजमहल और दक्षिण में गङ्गा है। पूर्व ममयमें करते हैं। फरखाबादमें राठौर परनामो, रथो, जैसवार. शव भोके पाक्रमणसे गोड़राज्यको बचाने के लिये यह योवार, मथुरिया और भियान तेलोका तथा बस्तीमें स्थान काममें लाया जाता था। व्याहुत, जौनपुरो, कनोजिया, तुकिया पोर सेठवार तेलियागर्जन ( हि पु०) गर्जन देखो। नियोका वास है। इनमेमे मैनपुरोके कैथिया, काम- लेनियापांनो ( पु.) एक तरहका पानो जिसका स्वाद बहुत खारा और बुरा माल म पड़ता है। पुरक परनामो, इलाहाबाद : सुररिया, झाँसो और से लियासुरंग (हिपु.) तेलियाकुमेत देखो। ललितपुरके वातरा, मिर्जापुरके माहर बरनिया, दखिमाहा. लिया सुहागा (हिं. पु.) एक प्रकारका बहुत गोरखपुर के झिनौतिया, भड़ौच के भड़ोचिया, प्रताप- चिकमा सुहागा। गढ़ के मकनपुगे तेलो सबसे श्रेष्ठ माने जाते। ये तेनो -हिन्दुओं को एक जाति जिमको गणना शूद्रों व होतो लोग निकट सम्बन्धोके माथ आदान-प्रदान नहीं करते। है। इस जाति के लोग प्राय: मारे भारतवर्ष में फैले हए पिता और माताको तरफ कमसे कम तोन पोढ़ो तक है भोर मरसों, तिल आदि पर कर ते उ निकालने का जय कोई सम्बन्ध नहीं ठहरता, तभो विवाह स्थिर व्यवभाय करते हैं। युक्त प्रान्समें हिज लोम इन लागोका करते हैं। . छपा एमा जल ग्रहण नहीं करते। म जातिको उम्पन्ति- उच्च श्रेणोके हिन्दुओं के समान इन लोगों में भी विवा- के विषय में मतभेद पाया जाता है। मिर्जापरके तेलियों- नियम प्रचलित हैं। व्याहुत तेलोको छोड़कर प्रायः का कहना है, कि प्राचीन ममय में किसो मनुष्य के मभो नेम्वो विधवा विवाह करते हैं । रजोदर्शनके पाले तोन पुत्र थे। उमके और कोई सम्पत्ति तो थो नहौं, हो लड़कियां ब्याहो जातो है, लेकिन पुरुषको उमर कवाल बावन महएके पेड़ थे मरते समय उमन लडकोसे जबतक २० । २५ वर्ष को नहीं होती, सम्र तक उसका पापसमें बराबर बगबर बाँट लेने को कहा। बावन विवाह नहीं होता है। विशेषतः विधवा अपने देवरसे । सोन समान भाग हो नहीं मकते, इसलिये वे उनको ही विवाह कर लेता है । पुरुष जब अपनी गोवा चाल पैदा हो पापममें बाँट लेने को गंजो हए । एकने मो चलन खराब देखता अथवा उसमें दूसरा हो कोई नुक्स . उनको नया ले लो और वह भड़-भूजा नाममे प्रसिद्ध पाता, तो उसे त्याग सकता है। इस जातिके कोई कोई इमा। आक्लक भो इस जाति के लोग भाडमें पतियां जलात लोग शराब पोते तथा मछलो माम भादि खाते। इन दूसरेने उमाके फल लिये और वह कलवार कहलाने लोगों के पुरोहित निम्मश्रेणोक आहाग होते है जो गा। तोमरने उनके कोदा ( गुदा) निये और तेलिया-वामन कहलाते हैं। उच्च श्रेणोके हिन्दुओं वही तिलो मामसे प्रसिद्ध मा है। परन्त यह कहां तक जमा ये लोग भो शिव, कालो, दुर्गा प्रादि देवदेवियोको सत्व है, कह नहीं सकते। पूजा किया करते है। इस जाति लोग बड़े कवस Voi. Ix. 185 .