पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/८१

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टाइरसेवा-अमरीश आर जी देवताका पूजन । २ किमी शर्माको मृत्य से की थी तो कब सम्भव मन्दिर में देवता नामसे उत्सर्ग की हुई सम्मत्ति। कि हर्षदेवसे शीपासका सम्बत् प्रचार हुपा हो चीनपरि. ठाकुरी (हि.सी.) स्वामित्व, पाधिपत्य, ठकुराई। बाजक युएनयाको ५वौं फरवरोको नेपाल ठाकुरीव'श-नेपालका एक पराक्रान्त राजवंश। गये थे । नेपालसे पशवर्मा के समय के जो बहुतसे गिला. लिच्छविराज शिवदेवके राजत्वकालमें महासामस लेख पावित हुए हैं, उनमें २८ भोर ४५ पर खुद अवर्मा पाविर्भूत हुए। येही ठाकुरी-राजवंगके प्रथम हुए हैं। यूरोपीय पुराविदोंने उन पनों को पर्ष सम्बत् पुरुष थे। पपने शौर्यवीर्यगुणसे ये विस्तीण जनपदके . भापक माना है। डातर बुद्धर पौर फौद सायके मतसे अधोखर हुए। लिच्छविराजका प्राधान्य स्वीकार करने ६.६.५.७ में उर्ष सम्बत् पार हुवा है। पतएव पर ये एक पराक्रान्त स्वाधीन राज हो गये थे । नेपालके उनके मतसे पंगवर्मा (६.५+३८)-१४५ में विध- पार्वतोय-वयावलोके मतसे ३००० कलियुगाब्दमें अर्थात् मान थे, किन्तु चोनपरिवाजकको वर्णनाके पनुसार है सनसे १०१ वर्ष पहले वर्मा राजगद्दी पर बैठे थे ६३७ ई०के पहले हो गवर्माको मृत्यु हुई थी। ऐसी और उनके पहले विक्रमादित्य नेपाल जा कर वहाँ अपना हालसमें पशुवर्माके शिलालेख वर्णित पोको हर्ष- सम्बत् चला पाये थे। फूिट, होरलि प्रभृति प्रत्नतत्व सम्बतचापक महीं मान सकते। विदु के मतानुसार वर्मा ६२८ में राज्य करते थे। पहले पंएवर्माके समसामयिक शिवदेवका जो सम्बत् किन्तु उक्त पार्वतीय वंशावली और प्रत्नतत्त्वविदका मत पडित शिलालेख पाया गया है, वह यक-सम्बतचापक समीचीनके जैसा माम्त म नहीं पड़ता है। है तथा पशुवर्मा के शिलालेखक पाको गुनसम्बत्। गोलमादिटोल शिलालेखके भनुमार पशवर्मा और जापक मान भी ले तो कोई पत्य ति नहीं । २१८१में लिच्छविराज शिवदेव दोनों समसामयिक है । वह लेख चन्द्रगुपने विक्रमादित्य गुनसम्बत् प्रचार किया है। ३१६ संख्या पनिहिष्ट सम्बत्में खुदा गश है। उक्त उन्होंने नेपालके लिच्छवि राजकन्या कुमारदेखोसे विवाह युरोपीय प्रवतत्वविदीने उस पाको गुप्त सम्बतचापक किया था। गुप्तराजवंश देखा। इसमें कुछ भी सन्द। और उसके बाद शवर्मा प्रभृतिक शिलालेख में जो पा नहीं, कि विवाह करके वे मेपासमें अपना सम्बत् प्रचार है उसे हर्ष-मम्वत्थापकके जैसा खिर किया है। कर पाये हों । १म शिवदेवके शिलालेखक अनुसार २१५ हर्षवईनके समय चीनपरिव्राजक युएनचुयाङ्गने नेपाल (शक ) मम्बत् पर्थात् ३८४ में एवर्माका पराक्रम को यात्रा की थी। उन्होंने लिखा है, कि महाज्ञानो अंशु- नेपालमें बहुत चढ़ा बढ़ा था। उससे पहले ही ( अर्थात् वर्मा उनके बहुत पहले इस लोकसे चल बसे है। पाव २१८+३४-३५३९०के कुछ पहले) व महाराजकी तीयव'मावली में लिखा है, कि 'शुवर्माने १८ वर्ष तक उपाधिसे भूषित हुए थे। राज्य किया था, उनके राज्याभिषेक पहले विक्रमादित्य पंशु वर्मा के बाद उस वपमें कौन कौन राजाए नेपाल पा कर अपना सम्बत् प्रचलित कर गये हैं। फोट उनका विशेष परिचय सामयिक शिलाफलकमें भी नहीं प्रभृति पुराविदोंने पार्वतीय वंशावलीके पाधार पर उस पाया जाता है। पार्वतीयवसावखोके मतसे एवर्माक विक्रमादित्यको हर्ष बतलाया है। जब उस वंशावलोके बाद उनके पुत्र कतवर्मा, सतवर्माके बाद क्रमशः भीमा- मतले पशवर्माने ६८ वर्ष राज्य शिया है और उनके जुन, नन्ददेव, बोरदेव, चन्द्रवेतदेव, नरेन्द्रदेव, वर- पहले सम्बत् प्रचलित हुपा था तथा हर्ष के समसामयिक देव, शहरदेव, वर्षमानदेव, गुणकामदेव, भोजदेव, चोन परिवाजको पनुसार समके नेपाल जानेके पहले लक्ष्मीकामदेव पौर जयकामदेवने राजा होते गये। • Fleet's corpus Inscriptionum Indicatum, Vol iii.p Cunninghan's Ancient Geography of India. P.555. 184 and Dr. Hoeralers Synchronistie 'Pable in Journal of t Bnbiter's Note on the twenty-three inscriptions from the Asiatic Society of Bengal for 1889 pt I, Nepal, 44band fleet slasoriptions of the Gupta kings Vol. Ix. 20