पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१०७

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फुटकी-फुरफुर फुटकी (हिं० स्त्री० ) १ एक प्रकारकी छोटी चिड़िया, फुनगी ( हि स्त्री ) वृक्ष और वृक्षको शाखाओंका अग्र. फुदकी। २ किसी वस्तु के छोटे लच्छ या जमे हुए भाग, फुनंग। कण जा पानी, दूध आदिमें अलग अलग दिखाई पड़ते फुनना ( हि० पु०) फंदना देखो हैं, बहुत छोटो अंठी। ३ खून, पोब आदिका छींटा फुप्फुस ( स० पु. ) कोष्ठविशेष, फेफड़ा । हृदयके वाम जो किसी वस्तुमें दिखाई दे।। पार्श्व में फुप्फुस अवस्थित है। इसका दूसरा नाम फुप- फुटनोट ( ० स्त्री० ) वह टिप्पणी जो किसी लेख या फण्ड भी है। सुश्रुतमें लिखा है, कि शोणित पुस्तकके पृष्ठमें नीचेकी ओर दी जाती है। और कफके मेलसे हृदय उत्पन्न होता है। उसी फुटपाथ ( अं० पु०) पगडंडी। २ शहरोंमें सड़क- : हृदयमें प्राणवाहिनी सभी धमनियां आश्रय को हुई हैं। की पटरी परका वह मार्ग जिस पर मनुष्य पैदल हृदयके अधोभागमें वाई ओर प्लीहा और फुप्फुस तथा चलते हैं। दाहिनी ओर यकृन् और क्लोम है । (शुश्रु त शरीरथा ० ४ अ०) फुटबाल (अॅ० पु० बड़ा गेंद जिसे पैरकी ठोकरसे उछाल शार्ङ्गधरने लिखा है, कि फुप्फुस उदान वायुका आधार कर खेलते हैं।

है और हृदयके वाई ओर रहता है। (शाङ्गधर ५ अ०)

फुठेहरा (हिं० पु०) १ मटर वा चनेका दाना जो भूननेसे फुफंदी ( हिं॰ स्त्री० ) लहंगेके इजारबद या त्रियोंको ऐसा खिल गया हो, कि छिलका फट गया हो । २ साड़ी कसनेकी डोरीकी गांठ यह गांठ कमर पर सामने चनेका भुना हुआ चब न । की ओर रहती है और इसके खींचनेसे लहगा या धोती फुटैल ( हिं० वि० ) फुल देखो। खुल जाती है। इसे नीवी भी कहते हैं। फुट्ट (हिं०वि०) फुट देखो। फुफकाना (हि.क्रि.) फुफकारना। फुट्टक (सं० क्ली) वस्त्रविशेष । फुफकार (हि. पु० ) फुत्कार, सांपके मुंहसे निकली हुई फुटल (हिं० वि०) १ झुण्ड या समूहसे अलग, अकेला हवाका शब्द।। रहनेवाला। २ जिसका जोड़ न हो, जो जोड़े से अलग फुफकारना ( हिं० क्रि०) साँपका मुहसे फूक निकालना, हो। ३ अभागा, फूटे भाग्यका । फूत्कार करना। फुत् ( स० अव्य ) १ अनुकरण शब्द । २ तुच्छ भाषण । फुफुनी (हिं० स्त्री०) फुफका देखो। फुत्कर (सं० पु० ) फुदित्यव्यक्तशब्द करोतीति कृट। फुफेरा ( हिं वि० ) फफासे उत्पन्न । अग्नि । फुर (हिं० स्त्री०) १ उडने में परोंका शब्द, पंख फड़फडानेकी फुत्कार (संपु० ) कृ-भावे- घम, फुत् इत्यव्यक्तशब्दस्य, आवाज । ( वि०) २ सत्य, सञ्चा। करणं । मुंहसे हवा छोड़नेका शब्द, फूक । होमाग्नि यदि फुरकना ( हिं० क्रि० ) जुलाहोंकी बोलीमें किसी वस्तुको बुझ जाय, तो उसे फुत्कार द्वारा बाल कर पुनः होम नहीं : मुहमें चबा कर सांसके जोरसे थूकना। करना चाहिये। (तिथितत्त्व ) फुरकाना ( हिं० कि०) फड ना देखा। फुत्कृति (सं० स्त्री० ) फुदित्यव्यक्तशब्दस्य कृतिः करण् । फुरती ( हिं० स्त्री० ) शीघ्रता, तेजी। फुत्कार। फुरतीला (हिं० वि०) जिसमें फुरती हो, जो सुस्त न हो। फुदकना (हिं क्रि०) १ उछल उछल कर कूदना। २ फुरना ( हिं० कि० ) स्फुटित होना, उदय होना । २ फड़- उमंगमें आना, फुले न समाना। कना, हिलना । ३ उच्चरित होना, मुहसे शब्द निकलना। फुदको (हि स्त्री०) १ छोटी चिड़िया जो उछल उछल । ४ प्रकाशित होना, चमक उठना । ५ सफल होना, कर कूदती हुई चलती है। । सोचा हुआ परिणाम उत्पन्न करना। ६ प्रभाव उत्पन्न फुनंग (हिं॰ स्त्री०) वृक्ष वा शाखाका अन भाग या अंकुर। करना, असर करना। ७ सत्य ठहरना, पूरा उतरना । फुन (हि अव्य० ) पुनः, फिर । फुरफुर (हि० स्त्री० ) १ वह शब्द जो पर आदिको रगड़से Vol. xv. 26