पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१२२

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फ अउजा खाफ लाना कालमें ( १३७८-१३८७० ई०में ) न्यायाधीशका काम करते. फैला लिया था। जालन्धर, नूरपुर, बहरमपुर, भरतगढ़, थे। आप एक सुकवि और विख्यात ख्वाजा हाफिजके पट्टी और बनोर आदि स्थान उनके राज्यभुक्त हुए। ये समसामयिक थे। । भी बहुतोंको अपने मतमें लाये थे, यहां तक कि पतियाला- फैजउल्ला खाँ - एक रोहिला सरदार और रामपुरके जागीर- राज अलासिंहने भी उनके निकट गोविन्दका पाहल दार। ये रोहिला-सरदार अली महम्मद खाँके पुत्र थे। ग्रहण किया था। १७९५ ई में उनकी मृत्यु हुई। पीछे १७७४ ई०को कटराकी लड़ाई में हार खा कर ये उनके लड़के बुद्धसिंह राजा हुए । पञ्जाबकेशरी रणजित्के कुमायुनके पहाड़ी प्रदेशमें भाग गये। पीछे अंगरेजों से समय यह दल बिच्छिन्न हो गया और सरदार बुद्धसिंह सन्धि हो जाने पर इन्हें १३ लाखकी सम्पत्ति मिली। अंगरेजी आश्रयमें रहनेको बाध्य हुए। अब इन्होंने रामपुरमें गजप्रासाद और राजधानी वसाई। फेदम ( अ० पु. ) गहराईको एक माप जो छः फुटकी २० वर्ष तक सुचारुरूपसे राज्य करके ये १७६४ ईमें होती है, पुरसा। परलोकको सिध र गये। । ऊर (अॅ० स्त्री०) बन्दूक तोप आदि हथियारोंका दगना। फैजुलपुरिया सिख-सम्प्रदायका एक मिसल वा दल। फल ( हिं० स्त्री० ) १ विस्तृत, लम्बा चौड़ा। २ फैला हुआ। ये लोग सिंहपुरिया नामसे भी प्रसिद्ध हैं। कर्पूरसिंह नामक एक जाट भूम्यधिकारी इस दलके नेता थे। जो फैलना ( हिं० क्रि० ) १ लगातार स्थान घेरना, यहांसे वहां तक बराबर रहना । २ प्रचार पाना, बहुतायतसे खालसा सेना दल फरुखसियरके राजत्वकालमें प्रति । ष्ठित हुआ उसने इन्हीं कपुरसिंहकी अधिनायकनामित मिलना। ३ पूरा तन कर किसी आर बढ़ना, महान बलका सर्वोच्य स्थान अधिकार किया। उन्होंने अपने । ही रहना। ४ बिखरना, इकट्ठा न रहना। ५ वृद्धि होना, बलवीर्यप्रभावसे सिख-जातिका भविष्योउन्नति-पथ संख्या बढ़ना । ६ अधिक खुलना, किसी छेद या गड्ढेका परिष्कार कर दिया था। इस उन्नति पथ पर आरूढ़ हो कर और बड़ा हो जाना । ७ स्थूल होना, मोटाना । ८ आवृत करना, ध्यापक होना । । विस्तृत होना पसरना । ही सिख लोग एक समय स्वाधीनभावमें राजत्व करनेमें १० आग्रह करना, जिद करना । ११ प्रसिद्ध होना, बहुत समर्थ हुए थे। उनके अधीनस्थ सिख-दलने उन्हें नवावकी उपाधि : दूर तक विदित होना । १२ इधर उधर दूर तक पहुंचना । दी। उन्होंने अपने बाहुबलसे सैकड़ों जाट, बढ़ई, तांती, लसूफ ( हिं० वि०) फ़जूल खर्च । फलसूकी (हिं स्त्री० ) फजूलखर्ची । क्षत्रिय आदिको गुरुगोविन्दका धर्ममत ग्रहण करनेको फैलाना ( हिं० कि० ) १ लगातार स्थान घिरवाना। २ वाध्य किया। उस समय जनसाधारणके निकट ये इधर उधर दूर तक पहुंचाना। ३ किसी छेद या गड्ढे- धार्मिक समझे जाते थे। उनके हाथसे 'पाहल' ग्रहण को और बडा करना या बढाना। ४परा तान कर भी सब कोई सम्मानसूचक समझते थे। उनके अधी- नस्थ ढाई हजार सिस्न बड़े ही दुद्धर्ष और धर्मोन्मत्त थे। किसी ओर बढ़ाना, मुड़ा न रखना। ५ अलग अलग इतनी ही सामान्य मेनाको ले कर उन्होंने दिल्लीकी सीमा दूर तक कर देना, बिखेरना। ६ संकुचित न रखना, पसारना। ७ प्रचलित करना, किसी वस्तु या बातको तक धावा बोल दिया था। १७५३ ई०को अमृतमरमें उनकी मृत्यु हुई। मरते इस स्थितिमें करना, कि वह जनताके बीच पाई जाय । समय वे अपना खालसा-दल अहलूवालिया सरदार यश ८ विस्तृत करना, पसारना। व्यापक करना, भर देना। १० वृद्धि करना, बढ़ाना। ११ गुणा भागके सिंहके हाथ सौंप गये। यशको मृत्युके बाद खुशालांसह सम्पत्तिके उत्सरा- - लेखा लगाना। ठीक होने की परीक्षा करना। १२ हिसाब किताब करना आयोजन करना, उपक्रम करना। १४ धिकारी हुए। ये अपने चचाकी तरह वीर्यवान् और प्रसिद्ध करना, चारों ओर प्रकट करना। १५ गणितकी बुद्धिमान थे। शतद् के किनारे तक उन्होंने अपना राज्य : विद्याका प्रचार करना।