पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१३५

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सभ्य। की-चक फ्री ( वि.) १ स्वतन्त्र, जिस पर किसीकी दाब न या राजगीरोंकी इसी नामकी एक संस्था थी जो बड़े हो। २ कर या महसूलसे मुक्त ।। बड़े गिरजे बनाया करती थी। इन्हीं संकेतोंके कारण फ्रीड (अं० पु.) वह वाणिज्य जिसमें मालके | जो असली कारीगर होते थे वे ही भरती किये जाते थे। आने जाने पर किसी प्रकारका कर या महसूल न लिया | इसी आदश पर सन् १७१७ ई०में फ्रीमेसन संस्थाएँ जाय। स्थापित हुई जिनका उद्देश्य अधिक व्यापक रखा गया। फ्रीमेसन ( अं० पु०) फ्रीमेसनरी नामके गुप्त संघोंकाच ( अं० वि०) फांस देशका। फोमेसनरी (अ० स्त्री० ) एक प्रकारका गुप्त संघ या| : | चपेपर ( अं० पु० ) एक प्रकारका कागज जो हलका सभा । इसकी शाखा प्रशाखाएँ यूरोप, अमेरिका तथा उन , , पतला और चिकना होता है। सब स्थानों में हैं जहां यूरोपियन हैं । इस सभाका उद्देश्य | | फेम (अॅ० पु०) चौकठा। | लाईब्वाय (० पु०) प्रेसमें काम करनेवाला एक लड़का । है समाजकी रक्षा करनेवाले सत्य, दान, औदार्य, भ्रातृ | इसका काम है प्रेस परसे छपे हुए कागजको जल्दीसे भाव आदिका प्रचार । फ्रीमेसनोंकी सभाएं गुम हुआ | | झपट कर उतारना और उन पर आँख दौड़ा कर छपाईकी करती हैं और उनके बीच कुछ ऐसे संकेत होते हैं जिनसे वे अपने संघके अनुयायियोंको पहचान लेते हैं। लुटिकी सूचना प्रेसमैनको देना। ये संकेत कोनिया, परकार आदि राजगीरोंके कुछ फलूट ( अं० पु०) फूक कर बजानेका एक अंगरेजी औजारके चिह्न हैं। पुराकालमे यूरोपमें उन कारीगरों : बाजा जो वसीकी तरह होता है। ब--हिन्दीका तेईसवाँ ध्यान और पवर्गका तीसरा वर्ण। इसके वाचक शब्द ये सब हैं, बनी, भूधर, भार्ग, घर्घरी, यह ओष्ठ्यवर्ण है और दोनों होठोंके मिलानेसे इसका लोचनप्रिया, प्रचेतस्, कलस, पक्षी, स्थलगण्ड, कपर्दिनी, उच्चारण होता है। इसलिये इसे स्पर्श वर्ण कहते हैं। पृष्ठवंश, शिखिवाह, युगन्धर, मुखबिन्दु, बली, घण्टा, यह अल्पप्राण है और इसके उच्चारणमें सवार, नाद और योद्धा, त्रिलोचनप्रिय, क्लोदिनी, तापिनी, भूमि, सुगन्धि, घोष नामक वाहा प्रयत्न होते हैं। इस वर्णका लिखने- त्रिवलिप्रिय, सुरभि, मुखविष्णु, सहार, वसुधाधिप, का प्रकार यों है, -पहले शून्यके आकारमें रेखा करनी षष्ठापुर, चपेटा, मोदक, गगन, पति, पूर्वाषाढ़ा, मध्यलिङ्ग, होगी। पीछे उसमें मात्रा खींच देनेसे यह वर्ण बनता है। शनि, कुम्भ, तृतीयक ( नाना तशास्त्र ) यह त्रिकोणरूपिणी रेखा ब्रह्मा, विष्णु और शिवस्वरूपिणी | ब ( स० पु० ) बल- । १ वरुण। २ सिन्धु । ३ भग। तथा परम मात्रा शक्ति है। ४ तोय, जल। ५ गत । ६ गन्ध । ७ तन्तुसन्तान । वर्णोद्धारतन्त्रके मतसे इसका ध्यान- ८ वपन । ६ कुम्भ। इसके साङ्केतिक नाम युगन्धर, "नीलवर्णा त्रिनयनां नीलाम्बरधरां पराम् । सुरभि, मुस्खविष्णु, संहार, वसुधाधिप, भूधर, दशगएड नागहारोज्वलां देवीं विभुजां पद्मलोचनां ॥” हैं। (नयामलोक बोजामि.) इस मन्त्रसे ध्यान करके दश बार बकारका जप करना बंक ( हिं० वि० ) १ टेढ़ा, तिरछा। २ पुरुषाथीं, होता है। विक्रमशाली। ३ दुर्गम, जिस तक पहुंच न हो सके। यह बकार चतुर्वर्गप्रदायक, शरच्चन्द्रसदृश, पञ्चदेव- (पु० ) ४ वह कार्यालय या संस्था जो लोंगोका मय, पञ्चप्राणात्मक और त्रिविन्दुसहित है। यही बकार- रुपया खूद देकर अपने यहां जमा करतो अथवा सूद का स्वरूप है। | लेकर लोगोंको ऋण देतो है, लोगोंका इंडियां लेती Vol. xv. 33