पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१४२

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१३६ बकतर-करीद कटहलके फूल या तेंदु आदिके फल खानेसे मुंहका बकपुष्प (स० पु० ) वकइव वक्र पुष्पं यस्य । १ बकवृक्ष । सूख जाना, उसका स्वाद बिगड़ जाना और जीभका (क्ली० ) वकस्य पुष्पं । २ अगस्ति कुसुम । सुकड़ जाना। वकपुष्पा ( स० स्त्रो०) शिवलिङ्गिनो। बकतर (फा पु०) एक प्रकारकी जिरह या कवच । योद्धा बकम ( हिं० प्र०) देखो। इसे लड़ाई में पहनते हैं। यह लोहेकी कड़ियोंका बना वकमौन ( हि पु० ) १ अपना दुष्ट उद्देश्य सिद्ध करनेके हुआ जाल होता है और इससे गोली तथा तलवारसे लिये बगलेको तरह सीधे वन कर चुपचाप रहनेको क्रिया वक्षस्थलको रक्षा होती है। या भाव । (वि०) २ चुपचाप अपना काम साधनेवाला । बकतिया (हिं० स्त्री०) संयुक्त प्रान्त, बङ्गाल और आसाम- बकयन्त्र (सं० पु०) वैद्यकमें एक यन्त्रका नाम । वह को नदियोंमें मिलनेवाली एक प्रकारको छोटी मछली। । काँचकी एक शीशी होती है जिसका गला लम्बा और बकदी ( स० पु० ) पारावत, कबूतर। सामने बगलेके गलेकी तरह झुका होता है । इस यन्त्रसे बकधूना ( स० पु० ) वकइव शुभ्रवर्ण-धूपः। वृकधूप । काम करते समय शोशीको आग पर रख देते हैं और बकध्यान ( हिं० पु० ) पाखण्डपूर्ण मुद्रा, ऐसी चेष्टा, मुद्रा झुके हुए गलेके सिरे पर दूसरी शीशी अलग लगा देते या ढंग जो देखने में तो बहुत साधु और उत्तम जान हैं जिसमें तेल या अरक आदि जा कर गिरता है। पड़े, पर जिसका बास्तविक उद्देश्य बहुत ही दुष्ट और .. बकरकसाव (हिं० पु०) वह पुरुष जो बकगेका मांस अनुचित हो। इस शब्दका प्रयोग ऐसे समय होता है बेचता है। जब कोई आदमी अपना वुरा उद्देश्य सिद्ध करनेके लिये बकरना ( हिं० कि० ) १ आपसे आप बकना, बड़बड़ाना। अथवा झूठ मूठ लोगों पर अपनी साधुता प्रकट करनेके २ अपना दोष या करतूत आपसे आप कहना, कबूल लिये बहुत सीधा-सादा बन जाता है। करना। बकध्यानी ( हि वि० ) जो देखनेमें सीधा सादा पर वास्तव में दुष्ट और कपटी हो। बकरा (हिं० पु०) एक प्रसिद्ध चतुष्पाद पशु। इसके सींग तिकोने, गठीले और ऐंठनदार तथा पीठकी ओर. भुके बकनख ( हिं० पु० ) महाभारतके अनुसार विश्वामित्रके हुए होते है, पूंछ छोटी होती है, शरीरसे एक प्रकारको एक पुत्रका नाम । बकना ( हि क्रि०) अयुक्त बात वोलना, ऊटपटांग ___ गन्ध आती है और खुर फटे होते हैं। यह जुगाली करके बात कहना। २ प्रलाप करना, बड़बड़ाना। खाता है। कुछ बकरोंकी ठोड़ीके नीचे लम्बी दाढ़ी भी वकनिसूदन ( स० पु० ) निसूदयति हन्तोति सूदि-ल्यु- होती है। कुछ जातियोंके बकरे ऐसे भी हैं जो बिना बकस्य निसूदनो घातकः। १ भीमसेन । २ श्रीकृष्ण। सींगके भी होते हैं। कुछ वकरोंके गले में जबड़े के नीचे बकपञ्चक (सं० क्लो० ) बकोपलक्षिताः पञ्चतिथयो यत्र या दोनों ओर स्तनकी भांति चार चार अंगुल लम्बी कप, बकोऽपि तत्र नाश्नीयादिति वचनादेव तथात्वा और पतली थैली होती है जिसे गलस्तन या गलथन कार्तिक महीनेके शुक्ल पक्षकी एकादशीसे पूर्णमासी कहते हैं। आर्य जातिको बकरोंका ज्ञान बहुत प्राचीन तकका समय। इसमें मांस मछली आदि खाना विल- कालसे है । विशेष विवरण अज शब्दमें देखो। कुल मना है । वकगण भी इन पांच दिनोंमें मछली बकराना ( हि० कि० ) दोष या करतूत कहलाना। नहीं खाते, इसी कारण इसका वकपञ्चक नाम पड़ा है। बकरीद-मुसलमानोंका पर्वविशेष । जिलहज अथवा बक- शास्त्रमें केवल पांच दिन नहीं वरन् सम्पूर्ण कार्तिक रीद नामक १२वें मासके पं दिन इस पर्व के उपलक्षमें मासमें मत्स्यमांस भोजन निषिद्ध बतलाया है। एक बड़ा भारी भोज होता है । इस दिन दिन अथवा रात "एकादशी समारभ्य यावत् पञ्चदशीभवेत्। को पुलाव हलुमा और दाल रोटी आदि खानेकी चीन बकोऽपि तत्र नाश्नीयात् मोन मांसञ्च किं नरः॥" बनती हैं। पहिले साधु दरिद्रोंको भोजन कराया जाता (तिथितत्व) है। इसके बाद सुवे-बरातकी तरह महम्द और अन्याय