बन्ध्याककोंटकी पन्नू
बन्ध्याकर्कोटकी (स स्त्री० ) बध्यायाः कर्कोटकी पुन- आकारमें गिरिमाला है। पश्चिममें पाजिरी जातिका
दातृतया बध्यायाः उपकारिणी अतोऽस्यास्तथात्वं । वासस्थान वाजिरी पर्वत, पीरघल और शिविधर शिखर
तितकर्कोटकी, बांझ ककड़ी। पर्याय-बन्ध्या, देवी, है। उत्तरमें कोहटका खटक पर्वत और सफेदको, पूर्व-
नागाराति, नागहलो, मनोझा, पथ्या, दिव्या, पुत्रदा, | में तकनियाजी और दक्षिणमें शेखबुदिन नामक पर्वत
सकन्दा, श्रीकन्दा, कन्दवल्ली, ईश्वरी, सुगन्धा, सर्पदमनी, है। इस शेखबुदिन पर्वत पर बन्नू और राइस:
विषकण्टकिनी, परा, कुमारी, भूतहन्त्री। गुण-तिक्त, माइल-खां-वासी-यूरोयिनोंके लिये स्वास्थ्यवास स्थापित
कटु, उष्ण, कफावह, स्थावरादि-विषनाशक और रसायन । है। कुरम और तोची नदी इस उपत्याकाभूमि हो कर
(गजनि.) भावप्रकाशके मतसे इसका गुण-लघु, कफ- बहती हुई सिधुमें मिली है। इस जिलेके उत्तर काला-
माशक, अणशोधक, सर्पविषहर, तीक्ष्ण और विसर्प तथा बागके निकट सिंधनदी लवण पर्वतको भेद कर बह गई
विषहारक।
है। सिंधुनदके पूर्व यह सिंधुसागर-दोआव कहलाता
बन्ध्यातमय ( स० पु०) बन्ध्याया तनय इव । अलोक
पदार्थ, कभी न होनेवालो चीज ।
लवणपर्वत और मैदानी पर्नतमाला पर जगह जगह
बन्ध्यात्व ( स० क्ली०) बध्याया भावः त्व। बध्याका नमक पाया जाता है। कालाबागके दूसरी ओर मारी
भाव या धर्म।
नामक स्थानमें सैंधव नमक बहुतायतसे निकाला जाता है
वन्ध्यादुहित ( स० स्त्री० ) मिथ्या पदार्थ या वस्तु। अलावा इसके इसाल नामक स्थानमें सोरा, काला-
बन्ध्यापुन (सं० पु० ) अलीक पदार्थ, ठीक वैसा ही बाग और कुटकीमें फिटकरी, दो प्रकारका कोयला, मट्टी-
असम्भव भाव या पदार्थ जैसे वंध्याका पुत्र, कभी न का तेल और सिधुजलमें बहुत कम मात्रामें सोना भी
होनेवाली चीज।
पाया जाता है।
बन्ध्याश्व ( स० पु० ) पुराणोक्त राजभेद ।
कुछ सदी तक यहांके अधिवासियोंमेंसे अफगान
बन्ध्यासुत ( स० पु०) मिथ्या पदार्थ ।
जातिकी ही प्रधानता देखी जाती है। यहां प्राचीन
बन्ध्यासूनु ( सं० पु०) आकाशकुसुमवत् मिथ्या। कालमें हिन्दुओं का बास था और पञ्जाबके यवन-बाहीक
बन्ध्वेष ( स० पु ) बधूनामेषः अन्वेषणं । अपने बधु ( Greco Bactrian )-अधिकारमें इस जिले में प्रतीच्य
वर्गका अन्वेषण।
सभ्यताके क्षीणालोकने प्रवेश किया था । बन्नू उपत्यका-
बन्नी ( हिं० स्त्री०) अन्नका तिहाई अथया और कोई भाग के आकरा आदि स्थानोंमें आज भी अनेक इष्टकस्तूप, भग्न
जो खेतमें काम करनेके वदलेमें दिया जाता है। । मूर्ति, हिंदूका परिहित अलङ्कार और सिक्के आदि देखने-
बन्नू-देराजात विभागके अंतर्गत एक जिला । यह अक्षा० में आते हैं। · १८६५ ई०में सिन्धुनदके स्रोतोबेगमें जो
३३५ उ० तथा देशा० ७० २३ से ७१.१६ पू०के मध्य इसी प्रकारके एक प्राचीन समृद्धिशाली नगरका ध्वंसा-
अवस्थित है। भूपरिमाण १६७० वर्गमील है। एउ वशेष बह गया था, उसमें भी अनेक भन्नमूर्ति और स्तम्भ
व साबादमें इसका विचार-सदर स्थापित है । सिन्धुः। आदि दिखाई दिये थे।
नदी जिलेके उत्तर दक्षिणमें बहती है। नदीका पश्चिम इन सब ध्वंसावशेषसे जिस प्राचीन समृद्धिकी
नीरवत्ती भूभाग कुछ दूर समतल है, दमें लवण पर्वत- कल्पना की जाती है, गजनीराज मह मुदके सर्व विलय-
की क्रमोन्नत शाखा देखी जाती है। खटक नियाजै वा । कारी उपद्रवसे वह चौपट लग गई । स्थानीय प्रबाद
मैदानी पर्वतमालाका सुखाजियारात् शिखर समुद्रपृष्ठसे है, कि महमूदने यहांके हिन्दू दुर्गादिको जड़से नष्ट
४७.५ फुट ऊंचा है। इसीके उत्तर भागमें प्रकृत बन्नू : कर डाला था। पीछे कुछ सदी तक यह प्रायः जम.
उपत्यका है। यह स्थान डिम्बाकृति और उत्तर दक्षिण : हीन सा पड़ा रहा। धीरे धीरे बन्नूची वा बन्नूवाल
में ३० कोस लम्बा है। इसके चारों ओर प्राचीरके और नियाजै जाति यहां आ कर बस गई । सम्राट् मकवर
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१९४
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