पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१९६

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१९० बपतिस्मा-पपला बपतिस्मा ( ० पु०) ईसाई सम्प्रदायका एक मुख्य बबुई (हिली०)१ कन्या, बेटो1 २ किसी ठाकुर संस्कार । यह संस्कार किसी व्यक्तिको ईसाई बनानेके सरदार या पावूकी बेटी। ३ पतिकी छोटी बहन, छोटी समय किया जाता है। इसमें पादरी हाथमें जल ले कर ननद । अभिमन्त्रित करता और ईसाई होनेवाले व्यक्ति पर छिड़-बबुर (हि.पु.) बवूल देखो। कता है। जब विधर्मी ईमाई बनाया जाता है, उस समय बबूल (हि.पु. ) भारतके प्रायः सभी स्थानोंमें मिलने- भी यह सस्कार किया जाता है। इस समय संस्कृत वाला एक प्रसिद्ध कांटेदार पेड़। यह मझोले कदका होनेवालेका एक अलग नाम भी रखा जाता है जो उसके | होता है और जगलो अवस्थामें अधिकतासे पाया जाता कुल-नामके साथ जोड़ दिया जाता है। है। गरम देश और रेतीली जमीनमें यह पेड़ बहुत जल बपुरा ( हि वि० ) १ आशक्त, बेचारा । । बढ़ता है। कहीं कहीं यह पेड़ सौ सौ वर्ष तक रहता बपौती ( हि स्त्री० ) पितासे मिली हुई सम्पत्ति, बापसे है। इसमें छोटे छोटे पत्ते, सूईके बराबर काँटे और पीले पाई हुई जायदाद। रंगके छोटे छोटे फूल लगते हैं। इसके अनेक भेद है। बप्पा (हिं० पु० ) पिता, बाप । कुछ जातियोंके बबूल तो बागोंमें केवल शोभाके लिये बफारा (हि.पु.) १ औषधमिश्रित जलको औंटा कर लगाये जाते हैं, पर अधिकांशसे इमारत और खेतोके उसकी भापसे शरीरके किसी रोगी अंगको सेकनेका कामोंके लिये बहुत अच्छी लकड़ी निकलती है। इसकी काम। २ वह औषध जिसको भापसे इस प्रकारका लकड़ी बहुत मजबूत और भारी होती है। यदि यह कुछ सेक किया जाय। दिनों तक किसी खुले स्थानमें पड़ी रहे, तो प्रायः लोहेके बफौरी ( हि स्त्री० ) वह बरी जो भापसे पकाई गई समान हो जाती है। इसकी लकड़ी ऊपरसे सफेद हो। इसकी प्रस्तुत प्रणाली बटलोईमें अदहन चढा कर और अदरसे कुछ कालापन लिये लाल रंगको होती उसके मुंह पर बारीक कपड़ा बांध दे। जब पानी खूब है। इससे खेतीके सामान, नावे, गाड़ियों और एक्कोंके उबलने लगे, तब कपड़े पर वेसन वा उदको पकौड़ो ! धुरे तथा पहिए आदि अधिकतासे बनाये जाते हैं। यह छोड़े जो भापसे ही पक जायगी। इन्हीं पकौड़ियोंको लकड़ी जलनेमें भी बड़े कामती है, क्योंकि इसकी बफौरी कहते हैं। आंच बहुत तेज होती है। इसके कोयले भी बफ्फा ---पञ्जाव प्रदेशके हजारा जिलान्तर्गत एक नगर। बनाये जाते हैं। इसकी पतली टहनियां, इस यह अक्षा० ३४ २६ ३०" उ० और देशा० ७३ १५ १५ : देशमें, दातुनके काममें आती हैं। इसकी जड़, पू० सिहन नदीके दाहिने किनारे अवस्थित है। उत्तर छाल, सूखे बोज और पत्तियां औषधमें भी व्यवहत हजारा और स्वात् विभागका यह प्रधान वाणिज्यस्थान होती हैं। छालका उपयोग चमड़ा सिझाने और रंगनेमें है। यहां नील, कार्पास-वस्त्र, ताम्र पात्र और शस्यादिकी भी होता है। पशु इसकी पत्तियां और कच्ची कलियां आमदनी तथा रतनी होती है। बड़े चावसे खाते हैं। सूखी टहनियोंसे लोग खेतों बबकना ( हि० कि० ) उत्तेजित हो कर जोरसे बोलना, आदिमें बाढ़ लगाते हैं। सूखी कलियोंसे पक्की स्याही बमकना। भी बनती है और फूलोंसे शहद निकलती है। इसमें बबर (फा० पु० ) १ वर्वरी देशका शेर, बड़ा शेर। २ गोद भी होता है जो और गोंदोंसे बहुत अच्छा समझा एक प्रकारका मोटा कम्मल जिसमें शेरको खालकी सो जाता है। कुछ प्रान्तों में इस पर लाखके कीड़े रख कर धारियां होती हैं। लाख भी पैदा की जाती है। रामबबल, खैर, कुलाई, बबा (हि पु०) बावा देखो। करील, वनरोठा, सोनकीकर आदि इसीकी जातिके वृक्ष बबुआ ( हि पु०) १ बेटे या दामादके लिये प्यारका हैं। संबोधन शब्द । २ जमींदार, रईस । - बबूला (हि पु० ) १ बगूठा देखो। २ बुलबुला देखो।