पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२२५

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बलरामदेव-पलवन गयास-उद्दीन बलरामदेव-दाक्षिणात्यके जयपुर-राजवंशीय एक राजा। युद्ध हुआ उसमें इन्होंने अगरेजों का पक्ष लिया था। नन्दिपुरमें इनकी राजधानी थी। युद्ध में हार खा कर विदोही-दल नेपालको भाग गया। बलरामवर्मा--दाक्षिणात्यके निवांकुड़ राज्यके एक राजा। दिग्विजयको राजभक्ति पर प्रसन्न हो वृटिश सरकारने १७६८-१८१० ई०तक इन्होंने राज्य किया। इनके शासन- उन्हें तुलसीपुरका कुछ अश और महाराजको उपाधि दो कालमें राज्य भरमें अशान्ति फैल गई थी। राज्यका तथा सैकड़े पीछे १० रुपया कर भी घटा दिया । १८८२ सुप्रबन्ध करनेके लिये इनके अधिकारमें अंगरेज प्रतिनिधि में उनकी मृत्यु हुई । उनके कोई सन्तान न रहेनेके नियुक्त हुए। कारण रानीने महाराज भगवतीप्रसादको गोद लिया। ये बलरामकविकरण --इन्होंने मुकुन्दरामके पहले चण्डीग्रन्थ- . ही वर्तमान राजा हैं। इनकी उपाधि के, मी, आइ, इ, है । का अनुवाद किया। मेदिनीपुरके अञ्चलमें उस ग्रन्थका राजस्व २२ लाख रु. है जिनमेंमे६ लाखसे ऊपर टिश प्रचार था। मुकुन्दरामने इनका ग्रन्थ दे कर अपने . सरकारको करमें देने पड़ते हैं। काष्यकी रचना की थी, यह बात वे स्वयं स्वीकार कर गोण्डा जिलेकी उतरौला जिलेका शहर । यह अक्षा० गये हैं। २७ २६ उ० तथा देशा० ८२ १४ पू०के मध्य अवस्थित बलरामपश्चानन...-धातु-प्रकाश और उसकी टीका तथा है। सम्राट जहांगीरके शासनकालमें बलरामदासने इस प्रबोधप्रकाश नामक संस्कृत व्याकरणके प्रणेता। नगरको बसाया। यहां महाराजके प्रासाद, ४० हिन्दु बलरामपुर --१ अयोध्याप्रदेशके गोण्डा जिलान्तर्गत एक वड़ा मन्दिर और १६ मुसलमानोंकी मस्जिद विद्यमान हैं। तालुकदारी राज्य । बलराम दास नामक किसी हिन्दूने इनमेंसे विजलेश्वरी देवीमन्दिर ही शिल्पनैपुण्यमे पूर्ण है। अपने नाम पर यह राज्य बसाया। उन्होंने धीरे धीरे कई यहांके वाजार में पार्श्ववत्ती स्थानके उत्पन्न शस्यादि, स्थान जीत कर बहुत दूर तक अपनो राज्यसीमा बढ़ा स्थानीय सूती कपड़े, कम्बट और छुरी आदिका विस्तृत ली थी । राजा नेहालसिंह १७७७ ई०में गजसिंहासन थ्यापार होता है। यहां छानानिवास-मलग्न एक हाई पर बैठे। उन्हींके भुजबलसे बलरामपुर-राजवंशने सुख्याति स्कूल, पांच सिकेन्डी और प्राइमरी स्कूल, चिकित्सा प्राप्त की थी। उन्होंने लखनऊके राजाओंसे कई बार युद्ध लय, जनाना अस्पताल, मोहताजखाना और एक अनाथा किया था। यद्यपि वे नवाबकी सेनासे हार गये थे, तो भी लय है। अपने जीवन तक उन्होंने उनकी बश्यता स्वीकार न की। बलरामपुर ---१ कोचबिहार राज्यके अन्तर्गत एक नगर । वरन् जो कुछ वे राजकर देते थे, उसीसे उन्हें सन्तुष्ट होकर २ मेदनीपुर जिलेके अन्तर्गत एक विस्तृत परगना। रहना पड़ता था। पीछे उनके पौत्र महाराज दिग्विजयसिंह बलरामभना---एक वैष्णव-सम्प्रदाय । बलराम हाड़ी K CS1 १८३६ ईमें पितृसिंहासन पर अधिरूढ़ हुए। नामक एक चौकीदार इस मतका प्रवत्तक था। ये लोग राज्यशासनके आरम्भमें ही उन्हें उतरौला, इकौना और कर्त्ताभजा आदि वैष्णव धर्ममतका अनुसरण करते हैं। तुलसीपुर आदि सामन्तोंके साथ युद्ध करना पड़ा था। अभी नदिया, वद्ध मान और पवना आदि स्थानों में इस सिपाहीविद्रोहके समय उन्होंने अंगरेजोंको अपने दुर्ग में सम्प्रदायके अनेक वैष्णव देखे जाते हैं। भाश्रय दिया और आखिर उन्हें निरापदसे गोरखपुर बलल ( सं० पु० ) बलराम । भेज दिया था। दिग्विजयके ऐसे आचरणसे अस- बलवत् । सं० वि० ) १ बलविशिष्ट, ताकतवर । २ अति- न्तुष्ट हो लखनऊ-पतिने उनका राज्य बाँट लेनेके लिये शय, बहुत। (पु.) ३ शिव । तुलसीपुर, इकौना और उतरौलाके सरदारोंको फर्मान बलवत्ता (सं० स्त्री० ) बलवत्त्व, बलवानका धर्म वा भेजा। किन्तु वह कार्यमें परिणत होनेके पहले ही भाव । उक्त सामन्तगण भिन्न भिन्न स्थानों में भेजे गये। घर्घरा बलवन गयास-उद्दोन- दिल्लीके एक मुसलमान अधिपति। मंदीके दूसरे किनारे अगरेज और विद्रोही-चलमें जो बचपनमें ये सुलतान अलतमसके यहां बेचे गये थे।