पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२४८

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२४२ बजासन भेजा गया ।(१) इस समयसे मालाकार, कुम्भकार और लोग वणिको के पक्षपाती थे, इसलिये बल्लालने उन्हे कर्मकार ये तीनों जातियां सच्द्र में गिनी जाने लगी। कोलीन्यमर्यादा प्रदान नहीं की थी। दास व्यवसाय बद कर देनेसे सभी प्रजा सुवर्ण- कुलीन और कायस्थ शब्द देखो। वणिको पर बिगड़ गई थी। अभी ब्राह्मणों की उत्तेजना बल्लालके पिता विजयसेनसे सेनवंशका सौभाग्योदय से बल्लालसेनने घोषणा कर दी, 'कोई भी वणिक् यक्ष | होने पर भी बल्लालके समयमें ही गौड़द शमें ब्राह्मण्य- सूत्र धारण नहीं कर सकता जिस किसीके गलेमें यक्ष- धर्मने प्रधानता पाई, बौद्ध धर्म का प्रभाव घटा और सूत्र देखा जायगा उसे दंड मिलेगा और यशसूत्र तोड़ मिथिला पर्यन्त सेनराज्य विस्तृत हुआ । पालवंशीय दिया जायगा।' राजभयसे इस समय कितने वणिक् | शेष गोविन्दलाल १९६१ ईमें बल्लालसेनसे पराजित गौड़ छोड़ कर चले गये और जो रहे वे यज्ञोपवीत फेक हुए थे। उनके प्रभावसे अधिकांश वौद्ध गौड़का परि- कर नीच शूदमें गिने जाने लगे। (बलालचरित) त्याग कर नेपाल भाग गये थे । बौद्ध प्लावित गौड़देश. बल्लालचरितसे जाना जाता है, कि इसी गौड़ाधिपने का उद्धार कर ब्राह्मणप्राधान्य स्थापन करनेके लिये ही बंगालकी समस्त जातिकी यथायथ सामाजिक सम्मान वल्लालसेन समाज-संस्कारमें प्रवृत्त हुए थे। किसीका व्यवस्था कर दी थी। उनका प्रधान कार्य ब्राह्मण यह भी कहना है, कि बल्लालसेन अतिशय ब्राह्मणभक्त और कायस्थों से महावंशसम्भूत और नवगुणयुक्त थे इसीलिये 'ब्रह्म क्षत्रिय' नामसे वे तमाम प्रसिक व्यक्तियोंको कोलीन्यमर्यादा प्रदान करना था। उनसे राढ़ी और वारेन्द्र ब्राह्मणों ने कोलोन्यमर्यादा प्राप्त की समाजशासन करनेके लिये बल्लालसेनने उत्सर राढ़, थी। बल्लालचरितकार आनन्दभट्टने लिखा है, कि वैदिक दक्षिण राढ़, बारेंद्र और बंग इन पांच स्थानों में एक एक राजधानी बसाई थी। आज भी नवद्वीप, बद्ध मान जिला, १.. कैवों की जलचारणोयताके सम्बन्धमें आनंद गौड़ और विक्रमपुरमें 'बल्लालबाड़ी', 'बल्लालदिग्गी' भट्टने १४११ शकमें लिखा है,- आदि उसके निदर्शन मौजूद हैं। ___एक दिन बल्लालसेन मृगया करने वनमें गये । वहाँ आईन-इ-अकबरीके मतसे बल्लालसेनने ५० वर्ष वे एक कर्मकार रमणीके रूप पर मुग्ध हो उसे घर ले आये और विवाह कर लिया। उस पद्माक्षीने लक्ष्मण- राज्य किया। फिर आनन्दभट्टके विचारमें ६५ वर्ष २ सेनको अनिष्ट करनेके लिये एक दिन राजा बल्लालसेनसे मासकी उम्र में ४० वर्ष राज्य करनेके बाद १०२८ कहा, कि लक्ष्मणसेनने उसके प्रति बुरी इच्छा प्रकट की शकमें बल्लालसनको मृत्यु हुई। शेषोक्त मत समीचीन है। इस पर बल्लालसेन बड़े क्रुद्ध हुए और लक्ष्मणसेन- प्रतीत नहीं होता । बल्लालसेनके अन्तसागरमें का शिरच्छेद करनेका हुकुम दे दिया। इसको खबर लगते लिखा है .. हा लक्ष्मणसेन राजधानीका परित्याग कर दूरवत्त देशमें चला गया। पीछे बल्लालका क्रोध जब शांत हुआ तब एक! गौड़े न्द्रगणरूपी कुञ्जर पुञ्जके बंधनस्तम्भस्वरूप दिन बल्लालसेनकी पुत्रवधूने विरहपूर्ण श्लोक लिख कर भुजशाली महीपति बल्लालने १०६० शकमें अन्द्र तसागर- उनके पास भेज दिया। बल्लालसेनने विरहजनित श्लोक की रचना आरम्भ की। प्रथकी रचना शेष न हो पाई थी, पलक्षमणसनको तुरंत बुला लेनेके लिये आदमी भेजा। कितने में उनके पत्रका राज्यारोहणकाल उपस्थित हुधा। कैवत्तौने १८डांडवाली नावसे खे कर लक्ष्मणसेनको गौडे- इस महासमारोह कार्यमें व्याप्त होने के कारण स्वरचित श्वरमें बहुत जल्द हाजिर कर दिया। बल्लाल उनके इस कामसे अति संतुष्ट हो उन्हें जलाचरणीय बना दिया। प्रथको परिसमाप्ति व न कर सके और प्रभूत दान 'उसी समयसे जो जालिक कैवत लक्ष्मणसेनको लाये जलप्रवाहमें असमय गङ्गा और यमुनाका सङ्गम संपा- थे, वे कृषिकार्य द्वारा हालिक समझे जाने लगे। दन करते हुए पत्नी सहित अमरधामको सिधार गये। (बल्लालचरित) अनन्तर महामान्य भूपति लक्ष्मणसेनने बहुत तमा