पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२५१

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२४॥ उस समय यह स्थान गेगूराज्यके अन्तभुक्त था। १२५० एक भी न सुनी और अंगरेजों को मेनिसमें घुसनेसे ईमें उम-मदन-दि नाम्नी किसी तैलङ्ग राजकन्याके राज- मनाही कर दी। स्वकालमें ब्रह्मवासियोंने बसाई पर अधिकार जमाया। इस समयसे ले कर प्रथम ब्रह्मयुद्ध पर्यन्त अङ्ग्रेजों ने राज-इतिहासके मतसे १२८६ ई० में यह प्रदेश पुनः पेगूके उपनिवेश बसानेके विषयमें कोई हस्तक्षेप न किया । शासनाधीन हुआ । १३८३ ईमें तैलङ्गसम्राट् रज-। उक्त युद्ध में बसाई नगर अङ्गरेजों के हाथ लगा । यन्दबूको धोरित् जब राजसिंहासन पर बैठे तब मौङ्गमेके शासन सन्धिके अनुसार ब्रह्मगणके पेगू परित्याग करनेके बाद कर्ता लौक-व्याने ब्रह्मराजकी सहायतासे पेगू पर चढाई वह पुनः लौटा दिया गया। द्वितीय ब्रह्मयुद्धके बादसे यह कर दी। कुछ समय तक दोनों दल में घमसान युद्ध होता स्थान अंगरेजों के अधिकारमें आया। जब पेगू अंग- रहा था। रेजो के हाथ लगा, उस समय सारे बेसिन जिलेमें अरा- १६८६ ई०में मन्द्राजके गवर्नरने नेनिसमें एक अंग- जकता फैल गई। पर्वतवासी दम्युदल ब्रह्मराजके सामन्त रेजो उपनिवेश बसाना चाहा, प्रथम अभियानमें विफल : हो कर नाना स्थानों में लूटपाट करने लगे। केवल यही मनोरथ होने पर भी १६८७ ई०में नेप्रिस इष्ट इण्डिया नहीं, कई स्थानों में उन्होंने अपना आधिपत्य भी फैला कम्पनीके अधिकारमुक्त हुआ। किन्तु १७५३ ई० तक लिया। क्रमशः एक अन्तविप्लव उपस्थित हुआ। इरा- अंगरेज लोग यहां अपना पूरा अधिकार जमा न सके वती तीरवत्ती जो सब प्रामवासी अंगरेजों के ष्टीमर पर थे। उस समय पेगू और ब्रह्मवासियोंमें युद्ध छिड़ गया काम करते थे, उनके प्राम दस्युगण द्वारा जला दिये था। अंगरेज लोग ब्रह्मके और फरासी तैलङ्ग-राजाओं- गये। इस पर अंगरेज लोग बड़े बिगड़े और उनका के पक्षमें थे। इस साहाय्य-दानमें फरासियोंको सिरि- दमन करनेके लिये आगे बढ़े। १८५३ ईमें कप्तान यम नामक स्थान मिला था। फिचेने दक्षिण पूर्ण दिशासे विद्रोहियों को मार भगाया । इसके बाद ब्रह्मराजने अंगरेज-वणिकोंकी कोठी देखने- १८५४ ई० में विद्रोही दस्युदलके उपयसे पुनः यह प्रदेश के लिये एक दूत भेजा। अंगरेज सेनापति बेकारने विशृङ्खल हो पड़ा। इस समय बौद्ध-पुरोहितों की सहा- उनका अच्छा सत्कार किया था। १७७५ ई०में बसाँई यतासे श्व-तु और कै-जन्-हा नामक दो व्यक्तिने दलबल और नेप्रिसकी कोठी जो भूमिके ऊपर स्थापित थी, संग्रह करके कई एक नगर जीत लिये ; किन्तु अंगरेजी- उसका दान-पत्र लेनेके लिये कुछ अङ्गरेज कर्मचारी सेनाके हाथसे राजविद्रोहिगण बहुत ही जल्द दण्डित ग्रामराजके समीप पहुँचे । किन्तु इस समय हुए। तभोसे यह स्थान अंगरेजों के दखलमें चला आ अंगरेज लोग रङ्गनके निकट तैलङ्गोंको विशेष सहायता कर रहे थे । इस पर ब्रह्मराज अङ्ग्रेजों- इस जिलेमें २ शहर और २६७७ प्राम लगते हैं। की विश्वासघातकता देख कर बड़े बिगड़े। आखिर जनसंख्या ४ लाखके करीब है जिनमेंसे अधिकांश उन्होंने १७५७ ई० में नैमिस और बसाईकी अगरेजाधि- बौद्धधर्मावलम्बी हैं। यहां १६ सेकण्डी, २१७ प्राइमरी, कृत भूमि इस वणिक सम्प्रदायको सदाके लिये छोड़ ५ स्पेशल और २३० इलिमेण्ट्री स्कूल तथा २ अस्प- दी। इसके लिये वे अंगरेजोंसे किसी प्रकारका कर ताल है। नहीं लेते थे। १७५६ ईमें नेप्रिससे अंगरेजीका २ निम्नब्रह्मके बसाई जिलेका उपविभाग। यह वाणिज्य-मड़ा उठा दिया गया । बहुत थोड़ी सेना बसाई नदीके किनारे अवस्थित है। अंगरेजसम्पत्तिकी रक्षाके लिये वहां रहत थी । उसी । ३ उक्त जिलेका प्रधान मगर और सदर । यह अक्षा. साल ब्रह्मपतिने उन पर चढ़ाई कर निष्ठुरभावसे उन्हें १६३५ से १६५६ उ० तथा देशा० ६४ ३० से १५ मार डाला । १७६०ई० में अंगरेजो ने क्षतिपूरण करनेके ३ पू० बाई नदीके किनारे अवस्थित है। यह नगर लिये ब्रह्मराजसे प्रार्थना की। किन्तु, ब्रह्मपतिने उनकी यहांका एक प्रधान वाणिज्य-चन्दर गिना जाता है। Vol. xv, 62