पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२६५

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बहाव-बहिष्ठाजोतिस बहाव (हिं० पु० ) १ बहनेका भाव। २ प्रवाह, बहनेकी | बहिर्यात्रा ( स० सी० ) पहिर्भागमें यात्रा। क्रिया। ३ बहती हुई धारा, बहता हुआ जल आदि। बहिर्यान ( स० क्लो०) वहिर्गमन । बहिः (स अव्य०) वाहर । बहिरैति (स. स्त्री० ) रतिके भेदोंमेंसे एक, बाहरी रति बहि (संपु०) पिशाचभेद । वा समागम जिसके अन्तर्गत आलिङ्गन, चुम्बन, स्पर्श, बहिअर (हिं० स्त्री० ) स्त्री। पर्दन, नखदान, रददान, और अधरपान है। बहिक्रम (हिं पु०) अवस्था , उमर । बहिर्लम्ब ( स० त्रि०) बाहरकी ओर लंबायमान । बहिन (सं० पु०) बहित्र देखो। वहिापिका ( स० स्त्री० ) काव्य रचनामें एक प्रकारकी वहिन (हिं० स्त्री० ) भगिनी, माताकी कन्या। पहेली। इसमें उसके उत्तरका शब्द पहेलीके शब्दों के बहिनापा (हिं० पु० ) बहनापा देखो। बाहर रहता है भीतर नहीं। बहिरङ्ग (स० क्ली०) बहिः प्रकृतेर्वाह्यमङ्ग यस्य। १ बहिर्वासस् ( स० क्ली०) बहिर्वासः। बाहरका वस्त्र। ध्याकरणोक्त प्रत्ययादि निमित्तक प्रकृत्यवयवादि कार्य। वस्त्र दो प्रकारका होता है, अन्तर्वास और बहिर्वास। (लि०) २ बाहरवाला, बाहरी। ३ जो गुट या मंडलीके अन्तर्वासको कोपीन और कोपीनके ऊपर जो वस्त्र पहना भीतर न हो। जाता है उसे वहिर्वास कहते हैं। (भाग० हा ) बहिरर्गल (स० पु०) बहिर्भागका अर्गल। बहिर्विकार ( स० पु०) वाह्यविकार । बहिरर्थ ( स० त्रि०) बहिर्विषयमें अर्थयुक्त। बहित्ति ( स० स्त्री० ) वाह्यवृत्ति। बहिराना (हिं० कि० ) निकाल देना, बाहर कर देना। बहिर्वेदि ( स० अध्य० ) वेदीके बाहरमें। बहिर्गत ( स० त्रि०) १ जो बाहर गया हो । ३ जो वाहर बहिला ( हिं० वि०) बन्ध्या, बांझ ।

हो । ३ जो अन्तर्गत न हो, अलग, जुदा। | वहिश्चर । म पु०) बहिश्चरतीति चर-ट । १ बहि-

बहिगिरि ( स० पु०) जनपदभेद ।। विचरण । (नि.)२ बहिश्चरणशील । बहिर्जानु (स० अध्य०) हाथोंको दोनों घुटनोंके बाहर किये बहिष्क ( सं० वि०) बहिःस्थित, जो बाहरमें हो। हुए। श्राद्ध आदि कृत्यों में इस प्रकार बैठनेका प्रयोजन बहिष्करण ( स० क्ली० ) १ बहिरिन्द्रिय । २ बाहर पड़ता है। वहिार ( सं० क्लो०) बहिःस्थ द्वारम् । तोरण, बाहरका बहिष्कार ( स० पु० ) १ । | बहिष्कार ( स० पु०) १ निकालना, बाहर करमा । २ दूर दरवाजा। करना, हटाना। बहिरिप्रकोष्ठक ( स. ३०) बहिर्वारस्य प्रकोपका बहिष्कार्य ( स० वि०) निकालने योग्य, बाहर करने लायक। गृहद्वारका वहि:प्रकोष्ठ । पर्याय--प्रघाण, प्रघण, बहिष्कुटीचर (स० पु० ) वहिष्कुट्यां चरतीति चर-ट। अलिन्द । कुलीर, केकड़ा। बहिर्ध्वजा (सं० स्त्री०) दुर्गा । बहिष्कृत (स० वि०) १ बाहर किया हुआ, निकाला हुआ। बहिनिगमन (स. स्त्री० ) बाहर निर्गमन, बाहर जाना। | २ त्यागा हुआ, अलग किया हुआ। बहिभूत ( स० वि०) बहिस् भूक्त। १ बहिर्गत, जो बहिष्कृति ( स० स्त्री० ) बाहर करनेकी क्रिया, निका- बाहर गया हो। २ अलग, जुदा। ३ जो बाहर हो। लना। बहिभूमि ( स. स्त्री० ) १ बस्तीके बाहरवाली भूमि। २ बहिष्क्रिय ( स० वि०) वाह्य क्रियाशालो, निकालने झाड़े जंगल जानेकी भूमि । लायक। बहिर्मख (सं०नि०) बहिर्वाह्यविषये मुखं प्रवणता यस्य । बहिक्रिया (स'. स्त्री०) १ वाह्य क्रिया । २ बाहर करना, विमुख, पराङ्गमुख, विरुद्ध । निकालना। पहिर्मुद्रा ( स० स्त्री० ) वह मुद्रा जो बाहरमें की जाय। बहिष्टाजोतिस् ( स० वि०) विष्टुझ्छन्दोमेद । करना।