पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२७१

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बहुरूपो - बहुबलिकवि कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, चामुण्डा और शिव- बहुलान्त ( स० पु०) सोम। दूती ये आठ बहुरूपा विषयक तन्त्र हैं। बहुलाबन (सं० पु० ) वृन्दाबनके ८४ बनों से एक बन । बहुरूपी ( स० वि०) १ अनेक रूप धारण करनेवाला। कहते हैं, कि इसी बनमें बहुला गायने व्याघ्रके साथ (पु.)२ बहुरूपिया। अपना सत्यव्रत निवाहा था। बरेहुखा ( स० स्त्रो०) वही बहुला रेखा करस्थादि- बहुलाभिमान (स' त्रि०) अतिशय अभिमानी, भूयिष्ठाभि- चिह्नम् । प्रचुर दीर्घ चिह्न। सामुद्रिक मतसे जिनके मानी, इन्द्र। हाथमें अनेक रेखाएं रहती हैं वे दुःखभागी होते हैं। बहुलालाप ( स० त्रि०) बहुतर वाक्यविन्यास । बहरेणु (स.पु. · श्वेतकिणिही वक्ष। बहुलांश्व ( स० पु० ) मैथिल वंशीय नृपभेद । बहुरेतस् (सं० पु.) बहु रेतो यस्य । ब्रह्मा । बहुलारा बांकुड़ा जिलान्तर्गत एक प्राचीन नगर। यह बहुरोमा (स० पु०) वहनि रोमाणि यस्य। १ मेष, मेढ़ा। द्वारिकेश्वर वा दारुकेश्वर नदीके दक्षिण कोणमें बांकुड़ा २वानर, बंदर। (नि.) ३ लोमश, जिसके शरीरमें | नगरसे ६ कोस पूर्व अवस्थित है। यहांका शिवमन्दिर अधिक रोएँ हों। वङ्गालके अपरापर स्थानोंके मन्दिरोंसे श्रेष्ठ है। मन्दिर में बहुल ( स० क्लो० ) वाहते वृद्धि गच्छतीति वहि वृद्ध शिवकी लिङ्गमूर्ति, दुर्गा, गणेश, बुद्ध आदि मूर्तियां प्रति- कुलच, नलोपश्च । १ आकाश । २ सितमरिच, सफेद ष्ठित हैं। मिर्च। ३ कृष्ण वर्ण । ४ अग्नि। ५ कृष्णपक्ष । बहुलिका ( स० स्त्री० ) सप्तर्षि-मण्डल। (वि.) ६ प्रचुर, ज्यादा। बहुली (हिं स्त्री०) एला, इलायची। बहुलगन्धा ( स० स्त्री० ) बहुलो गन्धो यस्याः । क्षुद्रला, बहुलीकरिष्णु (स० लि०) अवहुल बहुल करिष्णुः बहुल छोटी इलायची। अभूत तद्भावे च्वि, कृ-इष्णुच । बाहुल्यकारक । बहुलच्छद ( स० पु० ) बहुलानि छदानि यस्य । १ रक्त- बहुलीकृत ( स० क्ली० ) अबहुल बहुलं कृतं अद्भुत तद्भाधे शिघ्र, लाल संहिजन। २ शोभाञ्जन, काला संहि- चि । १ अपनीततुप धान्यादि, भूसी उड़ाया हुआ जन। धान । (स्त्री० )२ विस्तृतीकृत। बहुलता (स० स्त्री०) बहुलस्य भावः तल -टाप् । बहुलत्व, बहुलेश्वर--बम्बईप्रदेशके खानदेश जिलान्तर्गत एक प्राचीन अधिकता। प्राम। यहां बहुलेश्वर शिवका एक सुन्दर मन्दिर है। बहुलवण ( स० क्लो० ) बहूनि लवणानि यस्मिन् । औषर बहुवचन ( स० पु० व्याकरणकी एक परिभाषा जिससे लवण । | एकसे अधिक बस्तुओंके होनेका बोध होता है। बहुल-वर्म (संवि०) उत्तम कवचयुक्त । बहुवत् ( स० अव्य० ) बहुवचनके समान । बहुल-वल्कल (संपु० ) चार वृक्ष, पियाशालका पेड़। बहुवर्ण ( स० पु० ) १ गौधेरक जातिभेद । २ अनेक वर्ण, बहुला (सं० स्त्री० ) बहुल-राए । १ नीलिका, नीलका अनेक जाति। पौधा। २ एला, इलायची । ३ गो, गाय। ४ देवी- बहुवत्त ( स० क्ली० ) जनपदभेद । विशेष। ५ नदीभेद । ५ स्वनामख्याता उत्तमराज- बहुवत्म ( स० पु०) आखोंका एक रोग। इसमें पलका- पत्नी। ६ कृत्तिका नक्षत्र । ७ गाभिविशेष, एक गाय के चारों ओर छोटी छोटी फंसियाँ-सी फैल जिसके सत्यवतकी कथा पुराणों में आई है और जिसके जाता है। नाम पर लोग भादों बदी चौथ और माध बदी चौथको बहुबलिकवि-दाक्षिणात्यवासी एक कवि। इन्होंने नाग- व्रत करते हैं। कुमारचरित्र नामक एक प्रन्थ लिखा है। उक्त ग्रन्थमें ये बहुलाचौथ (सं० स्त्री० ) भादों बदी चौथ। इस दिन बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथके समसामयिक मथुराधिपति बहुला गायके सत्यव्रतके स्मरणार्थ व्रत किया जाता है। नागकुमारका चरित्र वर्णन कर गये हैं। Vol xv, 67