पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पहुवल्क-बहुश्रेयसी बहुवल्क (म' पु०) बहुनि बल्कानि यस्य । प्रियाल, पिया- बहुव्ययी (स.नि.) बहु-व्यय अमत्यर्थे पनि । अखिशाम सालका पेड़। व्ययशील, बहुत खचीला। . बहुवल्ली ( स० स्त्री० ) गृहतिका लता। बहुव्रीहि (सपु०) १ व्याकरणमें छ: प्रकाएक समान बहुवादी ( स० वि०) बहुं बदते वद-णिनि। बहुभाषी, मेंसे एक। इसमें दो या अधिक पदों के मिलनेसे जो बहुत बोलनेवाला। समस्त पद बनता है वह एक अन्य पदका विशेषण होठा वहुवाद्य जम्बूखण्डके अन्तर्गत जनपदभेद । है। (त्रि०) बहवो ब्रीहयो यस्य। २ प्रचुर धाम्या (महाभारत भीष्म० ६.५५) युक्त। बहुवार ( स० पु० ) बहूनि बारयतीति बहु-वृ-णिच्-अण। बहुशक्ति (स' लि०) बहुःशकिर्यस्य । अधिक शकिसान, १ वृक्षविशेष, लिसोड़े का पेड़। संस्कृत पर्याय-शेल्लु, बहुत ताकतवर । शीत, श्लेष्मात, श्लेष्मातक, उद्दाल, उद्दालक, सेलु । इसके बहुशन (स.पु.) बहवः शत्रवो यस्य । १ चटक, गौरा फलका गुण -शीतल, श्लेष्मवर्द्धक, शुक्रकारक, गुरु, पक्षी। (त्रि०) २ बहुशत्रुविशिष्ट, जिसके अनेक दुश्मन दुर्जर और मधुर। २ अनेक बार। हों। तृतीया तिथिमें पटोल खानेसे उसके भनेक दुश्मन बहुवारक ( स० पु० ) बहूनि वृक्षादीनि वारयतीति वृ. होते हैं। (तिथितत्व) णिच "तुल । वृक्षविशेष, लिसोड़ का पेड़। वहुंशल्य ( स० पु०) बहु शल्य यस्य । १ रक्त खदिर, वहुवार्षिक ( स० लि. ) बहुवर्षभव, कई वर्षों तक होने- लाल खैर। (नि०) २ अनेक शल्ययुक । वाला । वहुशस् ( स० अध्य० ) बहूनि ददाति करोत्यादि वा बहुवि (स० क्ली०) बहुतर पक्षियुक्त वृक्षादि, वह पेड़ जिस बहु ( वहस्पार्थादिति । पा ५४.४२ ) इति शस। बहू, पर बहुतसे पक्षी रहने हों। अनेक। बहुविन ( सं त्रि०) १ नाना प्रकार बाधायुक्त। बहुशाख ( स० पु०) १ स्नुही वृक्ष, थूहर । (नि. )२ (को०)२नाना प्रकारकी बाधायें। बहुशाखायुक्त, जिसमें अनेक सालियां हों। बहुविद् ( स० वि० ) बहु-वेत्ति-विद्-क्किए । बहुक्ष, अनेक बहुशास्त्र ( स० क्लो० ) बहुशास्त्र कर्मधा० । बहुविध विषयोंसे जानकार। शास्त्र। बहुविद्य ( स० वि० ) बहुल, बहुतसे बातें जाननेवाला। बहुशाल ( स० पु० ) बहुभिः शालते इति बहु-शाल-अच् । बहुविध ( स० लि०) बहवो विधा यस्य । नाना प्रकारका, स्नुही, थूहर । तरह तरहका । पर्याय-विविध, नानारूप, पृथग - बहुशिख (संलि .) बह्वी शिखा यस्य । १ अनेक विध। शिखायुक्त । लियां टाप । २ गजपिप्पली । ३ वरुविस्तीर्ण (स० वि० ) बहु यथा स्यात्तथा विस्तीर्णः। अनेक शिखा। अनेक विस्तारयुक्त, खूब लम्बा चौड़ा। बहुशिरस् ( स० पु. ) विष्णु । बहुवीज ( स० क्ली० ) बहूनि बीजानि यस्य। गण्डगाव, बहुश्टङ्ग ( स० पु०) विष्णु । सिताफल। बहुश्रुत (स० वि० बहु-श्रुतं यस्य । अनेक शाका- बहुवीर्य (स.पु०) बहु वीयं तेजो यस्य । १ विभीतक, श्रुतियुक्त, जिसने अनेक प्रकारके विद्वानोंसे भिन्न भिन्न बहेड़ा । २ तण्डुलीयशाक। ३ शाल्मली वृक्ष, सेवरका शास्त्रोको बातें सुनी हों। पेड़। ४ मरुव, मरुवा। बहुश्रुति (सं० स्त्री०) अनेक श्रुति, बहु वेदमन्त । बहुवीर्या ( स० स्त्री०) भूम्यामलकी, भूआंवला । बहुश्र तीय (सं० पु०) बौद्धसम्प्रदायभेद । बहुवोलक ( स० वि०) अधिक वाक्यव्ययी, बहुत बोलने-बहुश्रेयसी (सं०नि०) बहूनां श्रेयसी यल्य, ईयमन्त- वाला। | त्वात् नाप न वाहखा। अनेक श्रेयसीयक।