पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२९६

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२९ बासरी-पान्दी है। यहां मध्य एशिया और भोट राज्यके साथ वाणिज्य अपने घर छोड़ कर दूसरे घरमें तथा सगोलमें विवाह चलता है। प्रति वर्ष जनवरीमासमें एक भोटिया मेला' निषिद्ध है। एक ते तुलिया भिन्न अपर श्रेष्ठीके बादी: लगता है। इस समय पर्वतजात नाना द्रव्य विकनेके घरमें विवाह नहीं कर सकता। किन्तु कन्याके एक गोल लिये आते हैं। प्रवाद है, कि मुगल-सरदार तैमुरने होने पर विवाह भी नहीं होता है। सपिण्ड विवाह भी बागेश्वर उपत्यकामें एक उपनिवेश बसाया था, किन्तु निषिद्ध है। उसका अभी चिहमान भी नहीं देखा जाता है। । _____बांकुड़ा, मानभूम, और उड़ीसाके उत्तरांशमें बाग- बागेसरी ( हिं० स्त्री० ) १ सरस्वती। २ सम्पूर्ण जातिकी दियों के बीच बालविवाह प्रचलित देखा जाता है। कोई एक रागिनी जो किसीके मतसे मालकोश राजकी स्त्री कोई जवानी आने पर पुल कन्याका व्याह देते हैं। विवाह- और किसीके मतसे भैरव, केदार, गौरी और देवगिरी के पहले यदि जवान कन्या पर पुरुष पर आसक्त हो जाये आदि कई रागों तथा रागिनियों के मेलसे बनी हुई संकर तो उसे ये लोग दोष नहीं मानते। २४ परगमा, यशोर, रागिनी है। नदिया आदि जिलाओंमें बालविवाह प्रचलित है। कोई कोई बागोर--राजपूतानेके उदयपुर राज्यान्तर्गत इसी नामके, अवस्थानुसार एकाधिक विवाह भी करता है। इनकी परगनेका सदर। यह अक्षा० २५ २२ ३० तथा देशा० विवाहपद्धति हिंदुओंके समान होने पर भी इसमें असभ्य ७४ २३ पू० कोठारी नदीके बाए फिनारे अवस्थित है। प्रथाके कितने दोष मिश्रित हो गये हैं । वरयात्राके पहिले जनसंख्या ढाई हजारसे ऊपर है। ये महुआ वृक्षके साथ विवाह करते है और उसे सिंदूर बागडी --जलको और मेघना मदीके अन्तर्निहित एक प्रदान कर, सूतसे बांध देते हैं। पीछे वह सूत, महुआके प्राचीन जनपद। इसके दक्षिणमें समुद्र पड़ता है। पके साथ वरके दाहिने हाथमें लपेटते हैं। जब यूएनचुवंगने इस स्थानको समतट नामसे उल्लेख किया बारात दरवाजे पर पहुंचती है, तब कन्या पक्षीय लोग है। विक्रमपुर नगरमें इस प्रदेशको राजधानी थी। उसे अपने घरमें प्रविष्ट नहीं होने देते। वंद-युद्ध में वर- बागडोगरा -बङ्गालके रङ्गपुर जिलान्तर्गत एक नगर। । पक्षके लोग जयलाभ कर वरको भोतर ले जाते हैं । शाल- बाग्दा --मेदिनीपुर जिलेमें अवस्थित एक नदी जो गोमा-' पत्राच्छादित कुजके मध्यस्थित पीढ़ी के ऊपर वर बैठता खालीके समीप हुगली नदीमें गिरती है। है। उसके चारों कोने में तेल भांड-शस्य और हल्दी रखी बाग्दी -मध्य और पश्चिम बंगवासी नीच जाति । दास- जाती हैं । मध्यस्थलमें गतं खोदकर जल रख दिया जाता वृत्ति, कृषिकार्य और धीवरवृत्ति ही इस जातिकी है। कन्या आ कर उस शालकुजके चारों ओर सात बार प्रधान उपजीविका है । इस जातिके मध्य तेंतुलिया, घूमती है। बाद कुञ्जमध्यमें आ वरके सामने बैठ जाती दुलिया, ओझा, मछुया, ( मेछुया वा मेछा) गुलमानी, है। वह जलपूर्ण गत दोनोंके सामने रहता है। ब्राह्मण दण्डमांझो, कुशमेतिया, (कुशमातिया था कुशपुल), द्वारा विवाहके मन्लादि पाठ हो जाने पर कन्यासंप्रदाम कशोईकुलिया, मल्लमेतिया ( मतिया वा मतियाल ), शेष समझा जाता है। दक्षिणा देनेके बाद प्रालणको वाजान्दरिया, दरातिया, लेट, नोदा, ये त्रयोदश आदि | गांठ बांधी जाती है। गोलान्तरके बाद सिन्दूर दान और कितने स्वतंत्र थाक दष्टिगोचर होते हैं। बाग, धारा, खां, माला बदल होने पर विवाह-कार्य शेष होता है। रानिमें मांझी, मसालची, मोदी, पालखाई, परमाणिक, फेरका, उपस्थित कुटुम्बिनोंको अवस्थानुसार भोजन कराया पुइला, राय, सालासर आदि इनकी पदवी हैं। प्रत्येक जाता है। दूसरे दिन वर कन्याको ले कर अपने घर श्रेणीके मध्य भिन्न भिन्न गोत्र हैं। अहि, वाघऋषि, चला जाता है। विवाह के बाद चार दिनमें गाठे बोली कच्छप, कोशषक, पाकबसन्ता, पातमापि, पोड़ऋषि, जाती हैं। शालऋषि, अलम्यान, काश्यप, वापि, दास्थ, गदिमायत, तेतुलिया बाग्दीको छोड़ कर शेष सभी वान्दो श्रेणी- काल राञ्चो प्रभृति नाम गोलरूपी व्यवहता है। मैं विधवाकी सगाई होती है। इस विवाहम पहली