सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ प्लन-प्लव 'विष्णुपुराणमें लिखा है, जम्बूद्वीप जिस प्रकार लवण- प्लक्षकीय (सं० वि०) लक्षस्यादूरदेशादि नड़ादित्वात् छ । समुर द्वारा परिवेष्टित है, उसी प्रकार लक्षद्वीप भी प्लक्षके निकटवत्ती, प्लक्षके समीप लघणसमुद्रको घेरे हुए है। जम्बूद्वीपका विस्तार लाख लक्षजाता (सं० स्त्री० ) प्लक्षात् तत्समीपस्थप्रस्रवणात योजन है, पर इसका विस्तार उससे दूना है। प्लक्षद्वीपके जाता। सरस्वती नदोका एक नाम। अधिपति मेधातिथिके सात पुत्र हैं। इनके नाम यथाक्रम प्लक्षतीर्थ (सं० क्लो०) प्लक्षसमीपस्थं तीर्थ मध्यपदलोपि० । ये हैं । शान्तभय, शिशिर, सुखोदय, आनन्द, शिव, क्षेमक तीर्थभेद, हरिवंशके अनुसार एक तीर्थका नाम । और ध्रुव । इन्हींके नाम पर क्रमशः शांतमय वर्ष, प्लक्षप्रस्रवण ( स० क्ली० ) प्लक्षस्य समीपस्थं प्रस्रवणं । शिशिरवर्ष, सुखोदयवर्ष, आनन्दवर्ण, शिववर्ण, क्षेमकवर्ण सरस्वती नदीका उत्पत्तिस्थान । और ध्र वर्ण कहलाये। इस द्वीपमें जो ७ प्रधान पर्वत (भारत शल्यप० ५० अ०) हैं उनके नाम ये हैं गोमेद, चन्द, नारद, दुन्दुभि, सोमक, प्लक्षराज ( स० पु. ) प्लक्षाणां राजा, टच समासान्तः । १ सुमना और वैभ्राज। इन सब रमणीय वर्षाचलों पर सोमतीर्थस्थित प्लक्षवृक्ष । २ सरस्वतीका उत्पत्तिस्थान । देव और गन्धर्वोके साथ समस्त प्रजा सुखसे रहती हैं । लक्षादि ( स० पु० ) प्लक्ष आदि करके पाणिन्युक्त शब्द इन सब पर्वतोंके ऊपर पवित्र जनपद बसे हुए हैं। गण। यथा--प्लक्ष, न्यग्रोध, अश्वत्थ, इंगुदी, शिग्रु, यहांके मनुष्योंकी परमायु पांच हजार वर्ष है। यहाँ रुरु, कक्षतु, बृहती। आधिव्याधिजनित दुःख नहीं है, निरवच्छिन्न केवल प्लक्षादेवी ( स० स्त्री०) सरस्वती नदी। आनन्द है। इन सव वर्षोंमें समुदगामिनो ७ प्रधान प्लक्षावतरण ( स० क्लो० ) अवतरत्यस्मात् अव-तृ-अपा- नदियां बहती हैं। इन सव नदियोंके नाम हैं ---अनुतप्ता, दाने ल्युट। महाभारतके अनुसार एक स्थानका माम शिखी, विपाशा, त्रिदिवा क्रमु, अमृता और सुकृता। जहांसे सरस्वती नदी निकलती है। इन सब वर्षोमें यों तो अनेक पर्वत और नदी हैं, पर अप्र. प्लति (संपु० ) ऋषिभेद, एक वैदिक ऋषिका नाम । धान रहनेके कारण यहां उनका उल्लेख नहीं किया गया। पव ( स० क्ली० ) प्लवते इति-प्लु अच । १ कैवत्तीमुस्तक, यहांके लोग उक्त नमियोंके जलका व्यवहार करके धन्य: केवटी मोथा । २ नागरमोथा । ३ गन्धतृण, एक और पवित्र हो गये हैं। इन सात स्थानोंमें युगावस्था प्रकारको सुगन्धित घास । ४ 'लवन, बाढ़ । ५ नहीं है, त्रेतायुग हमेशा समभावमें वर्तमान रहता है। प्लुतग, प्लुतगतियुक्त। ६ बेड़ा। ७ भेक, मेंढ़क । यहां वर्णाश्रम विभागानुसार पांच प्रकारके धर्म हैं, यथा -- ८ अवि, भेडा । ६ श्वपच, चण्डाल । १० कपि, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह । इन बन्दर । ११ जलकाक, एक जलकोआ नामका पक्षी । १२ सब वर्षोंमें चातुवर्ण्य-नियम प्रतिष्ठित हैं। वहांको जो। कुलक, मकरतेंदुआ नामका वृक्ष । १३ प्रवण, उतार, ढाल । आर्गक, कुरु, विविंश और भावी जाति हैं, वे ही मृत्य.. १४ पर्कटीद्रुम, पाकर । १५ कारण्डव पक्षी । १६ शब्द, लोकमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद कहलाती हैं। आवाज । १७ प्रतिगति, लौटना, वापस आना । १८ जम्बूद्वीपमें जो जम्बूवृक्ष है उसीके जैसा यहां एक महान् प्रेरण, भेजना। १६ शत्र, दुश्मन । २० पलव, मछली लक्षवृक्ष है। उसी प्रक्षवृक्षसे इसका लक्षद्वीप नाम पड़ा। पकड़नेका काठका टापा । २१ जलकुक्कुट, जलमुर्गा । २२ है। इस वृक्ष पर जगपत्रष्टा भगवान विष्णु लोगोंसे पूजित : यकविशेष, एक प्रकारका बगला । २३ साठ संवत्सरोंमें- होते है। (विष्णुपु० २।४ अ०) सेतीसवां संवत्सर। २४ उछल कर या उड कर कृर्मपुराणके भुवनकोषके ४६वें अध्यायमें इस प्लक्षद्वीप-- जानेवाले पक्षी । २५ स्नान, नहाना । २६ प्लवन, तैरना । का विस्तृत विवरण लिखा है, विस्तार हो जानेके भयसे , २७ एक प्रकारका छन्द । २८ गज, हाथी। २६ गोपाल- यहां नहीं लिखा गया। ४ बड़ी खिड़की या दरवाजा ।५ करञ्ज। ३० अन्न, अनाज । ३१ जलचर पक्षिमात्र, जलमें एक तीर्थका नाम । नैरनेवाली चिड़िया । भावप्रकाशके मतसे हंस, सारस,