पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३५

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प्लक्क-नातायन २६ कारण्डव, बक, क्रौञ्च, सरारिका, नन्दीमुखी, कादम्ब और ' मृग, हिरन। ३ प्लक्ष, पाकर। ४ साठ संवत्सरोमें वलाकादि जलचर पक्षियोंको प्लव कहते हैं। ये सब . इकतालीसवां संवत्सर। जलमें प्लवन अर्थात् तैरते हैं, इसीसे इनका प्लव नाम प्लवङ्गम ( सं० पु० ) पूवेन गच्छतीति गम (गमश्च । पा पड़ा है। इनके मांसका गुण --पित्तनाशक, स्निग्ध, मधुर, : ३।२।४७ ) भेक, गेंढक। २ वानर, बन्दर । ३ एक गुरु, शीतल, वातश्लेष्मनाशक, बल और शुक्रवद्ध क। छन्द । इसके प्रत्येक पादमें ८।१३के विराममें १ मात्राएं सुश्रुतके मतसे हस, सारस, क्रौञ्च, चक्रवाक, कुवर, होती हैं। आदिका वर्ण गुरु और अन्तमें १ जगण और कादम्ब, कारण्डव, जीवञ्जीवक, बक, बलाका, पुण्डरीक, : १ गुरु होता है । ( त्रि० ) ४ प्लुतगतियुक्त, कृद कूद कर प्लव, शरीरमुख, नन्दीमुख, मद्गु, उत्कोश, काचाक्ष, : चलनेवाला । मल्लिकाक्ष, शुक्लाक्ष, पुष्करशायो, काकोनाल, काम्बु, प्लवन (सं० पु०) १ उछलना, कृदना । २ सन्तरण, तैरना । कुक्कुटका, मेघराव और श्वतचरण प्रभृति पक्षी प्लव ३ प्रवण, उतार । कहलाते हैं। ये सब जलमें उछलते कूदते और तैरते ' प्लवगै (सं० पु० ) १ अग्नि, आग। २ जलपक्षी । हैं, इसीसे यह नाम पड़ा है। इस प्रकारके पक्षी संघात- प्लववत (सं० वि०) प्लव-मतुप-मस्य व। प्लवयुक्त । चारी होते अर्थात दल बांध कर चरने निकलते हैं। प्लविक (स०पू०) प्लवेन तरति ठन् । पवद्वारा तरण इनके मांसका गुण-रक्तपित्तनाशक, शीतल, स्निग्ध, कारी, जो बेड़े के सहारे नैरता हो। वृष्य, वायुदमनकारी, मलमूत्रका वर्द्धक, रस और पाकमें प्लविता ( सं त्रि० ) प्लव-तृन् । प्लय द्वारा तरणकारी, मधुर माना गया है । (त्रि० ) ३२ तैरता हुआ। ३३ बेड़े द्वारा तैरनेवाला, तैराक। झुकता हुआ। ३४ क्षणभंगुर। प्लांचेट ( अपु०) मेस्मेज्म पर विश्वास रखनेवालोंके प्लवक ( सं० पु०) प्लवते इवेति प्ल-अच, ततः स्वार्थे कामकी एक छोटी तख्ती। इसका आकार पान सा संज्ञायां वा कन् । १ बड़ ग धारादि पर नर्तक, नलवारकी होता है। इसके विस्तृत भागके नीचे दो पाये मढ़े धार पर नाच करनेवाला पुरुष । संस्कृत पर्याय केलक, हुए होते हैं। इन पाघोंके नीचे छोटे छोटे पहिए. संलग्न केकल, नर्नु, केलिकोप, कलायन । २ चण्डाल । ३संत- होते हैं। उस छेदमें एक मल लगा दी जाती है। रणोपजीवी, वह जो तैर कर अपना गुजारा चलाता हो। कहते हैं, कि जब एक या दो मनुष्य उस तख्नी पर धीरे ४ मेंक, मेढ़क। ५ प्लक्ष, पाकर । ( त्रि०) ६ तैरनेवाला, धीरे अपनी उंगलियां रखते हैं, तब वह खसकने लगतो पैराक। है और उसमें लगी हुई पेंसिलसे लकीरें, अक्षर, शब्द प्लवग ( स० पु० ) प्लवेन ब्लुतगत्या गच्छतीति गम-: और वाक्य बनते हैं। उन्हीं प्रश्नोंसे लोग अपने प्रश्नोंका (अन्येष्वपि दृश्यते। पा शरा१०१) इति च ।। १ बन्दर। उत्तर निकाला करते हैं अथवा गुप्त भेदों का पता लगाया २ भेक, मेंढ़क । ३ सूर्यसारथि। ४ प्लवपक्षी, जल करते हैं। यह १८५५ ई में आविष्कृत हुआ था और पक्षो । ५ शिरीषवृक्ष, सिरसका पेड़। ६ मृग, हरिण। इसके सम्बन्धमे कुछ दिनों तक लोगोमें बहुतसे झूठे (लि०) ७ कूदनेवाला, उछलनेवाला। ८ तैरनेवाला।। विश्वास थे। प्लवगति ( सं० पु० ) प्लघंन गतिर्यस्य। १ भेक, मेंढ़क । लाक्ष ( स० क्ली० : प्लक्षस्य फलं ( प्लक्षादिभ्योऽण । पा (स्त्री० ) प्लवस्य भेकस्य गतिः । २ भेकादिकी गति, २१६४) इत्यविधानसामर्थ्यात् तस्य फले न मेंढ़क आदिकी चाल । ३ प्लुतगति, कूद कूद कर जानेकी लुक् । १ प्लक्ष वृक्षका फल, पाखरका फल। २ प्लक्षका चाल। विकार । ३ प्लक्ष समूह। ४ प्लक्षका भाव । ५ प्लक्षका प्लवङ्ग । सं० पु० ) प्लवेन प्लुतगत्या गच्छतीति गम- हितकर । ( लि०) ६ प्लक्ष सम्बन्धी। ( गमश्च । पा ३।२।४७) इति खच 'खञ्च डिद्वा वाच्यः' इति । प्लाक्षकि ( सं० पु० ) प्लक्षभव, प्लक्षका गोलापत्य । डित् डित्वात् टेलोपः मुमागमः। १ बानर, बन्दर । २ प्लाक्षायन ( स० पु० ) प्लाक्षिके गोत्रमें उत्पन्न । Vol. xv. 8