पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६८

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३६२ वालिद्वीप हैं। विश्वास है, कि इन शब्दोंसे भयभीत हो शीघ्र ही उनके पुत्र दशवाहु ३५० शकमें यहां आये थे। ४८० शकमें दस्यु चन्द्रमाको छोड़ देते हैं। हमारे देशमें आज बहुतसे शैव पंडित यवद्वीपमें पधारे। किन्तु उनके मतके कल भा ग्रहणके समय घण्टाध्वनि और आनन्दोन्मादसे साथ यवछीप वासियोंका मत नहीं मिलता था, इस कोलाहल करते हुए गङ्गास्नान करते हैं। कारण वे लोग भगा दिये गये। इन्होंने वहांके राजा शतु- यह विषय पहिले ही कहा जा चुका है, कि ब्राह्मण इस दामको शरण ली। राजा शुतुदाम उन लोगोंके मतावलम्बो द्वीपमें कब आये थे, उनके समयका निश्चय करना अत्यन्त हो गये । यवद्वीपवासियोंके मुसलमान होने के कुछ समय कठिन है। जब बौद्ध धर्मका प्रभाव बढ़ा तब बौद्ध पहिले कितने शैवोंने मजपहित नामक स्थानके शेष राजा साधुओंने अपने धर्मके प्रचार के लिये नाना देशोंमें पर्यटन विजयके यहां आश्रय लिया था। मजपहित राज्यके नष्ट किया। शालिवाहनकी कगणशना और प्राचीन संस्कृत भ्रष्ट हो जाने पर ये लोग बालिद्वोपको भाग गये। उनके के सिवाय दूसरी भाषाके ग्रंथका अभाव देखनेसे अनु। अधिपतिका नाम चाहुराहु था। मान किया जाता है, कि प्रथम या द्वितीय शताब्दीके बीच वालिद्वीपमें इस समय जो शक चल रहा है, वह यव. में यहां ब्राह्मणोंका आगमन हुआ होगा। पूर्वाञ्चलस्थ द्वीप द्वोपकी अपेक्षा ५ वर्ष कम है। इन पांच वकी कमी क्यों बासियों के मध्य ऐसा प्रचार है, कि क्लिङ्ग (कलिङ्ग) देश- हुई ; बालिवासी पंडित लोग इसका कोई कारण बतला से उनके देशमें सभ्यता धर्म और व्यवस्थाका प्रचार हुआ नहीं सके हैं। मालूम पड़ता है, कि चान्द्रमास गणनाके है। पहिले यवद्वीपमें, पीछे वहांसे समस्त स्थानों में व्याप्त- स्थानमें सौर गणनाका परिवर्तन, पलिनेशीय गणनाका हो गया। यहां पर शस्यकी प्रचुरता देख रतवासियोंने संमिश्रण आदि दोषोंसे ऐसा बिभ्राट हुआ है। पहले उपनिवेशकोंको बसान? गहा । सबसे पहिले श्म शताब्दी १० मासका १ वर्ष, पीछे १२ मासका माना गया । यदि में वितुष्टि नामक किसो ब्राह्मणने बहुतसे लोगों के मलमासको गणना न की जाय तो भी इनके साथ साथ आ दक्षिण उपकल पार किया और वे सबके सब हिदू पंजिकाकी विभिन्नता देखी जाती है। उन लोगोंको मेरु पर्वतके पादमूलमें बस गये । यवद्वोपमें जो सम्बत् शुभाशुभ घटना और समय निरूपणके लिये पंजिकाकी चलता है उसको नितुष्टि नामके एक प्राचीन राजाने आवश्यकता नहीं होती। वे लोग विशेष ऋतु द्वारा पार्च- चलाया था। इसीलिये यह सम्बन् आजिशक (आदिशक), तोय फूलोका प्रस्फुटन, समुद्रका सामयिक गति-परि- नामसे प्रसिद्ध है। वतन अथवा रूपान्तर ग्रहण, अन्य प्राकृतिक निदर्शन यवद्वोपके एक उपाख्यानसे जाना जाता है, कि आदि घटनओंको देख कर समयका निरूपण कर लेते हैं। पहिले बहुतसे हिन्दू मिल कर यहां आये थे। उनके धर्ममत, देवतत्त्व और विश्वास । साथमें स्त्री पुत्र थे, यह भी सहजमें निश्चय किया जा भारतको दो हिदू धर्मशाखाओंने बालिद्वीपमें प्रवेश सकता है। महामना वितुष्टि भी अपने स्त्री पुत्र सहित किया था । पहिले लिखा गया है, कि बौद्ध धर्मप्रचारकोंके आये थे। उनकी सहधर्मिणीका नाम ब्राह्मण-कालि' साथ साथ शैव ब्राह्मणों ने पूर्वाञ्चलस्थ द्वीपमें उपनिवेश और दो पुत्रों का मनुमानस और मनुमादेव था। ये बसाये : किन्तु ब्राह्मणधर्मके अधिक प्रचारसे बौद्ध लोगों- बौद्ध थे, या हिंदू इसका प्रमाण नहीं मिलता। इन्होंने का प्रभाव बहुत कुछ जाता रहा । बौद्ध सब प्रकारके और इनके वंशजो ने यहां कुछसमय तक राज्य पशुओं के मांसको खाते हैं. किन्तु शैव संप्रदायके लोग किया था। गाय, कुत्ते आदि अस्पृश्य जीवोंका मांस नहीं खाते। ३५० संवत् तक इस देशमें बहुत औपनिवेशिक बालिद्वीपके पंडितके मुखसे सुना जाता है, कि बुद्ध आये थे। उनमेंसे कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियोंक नाम ये हैं- शिवके कनिष्ठ भाता थे। दोनों संप्रदाय परस्परमें मवि- शेलप्रवात -१०० शकमें, घोटक -२०० शकमें, : रोधी हैं तो भो कोई किसीके देवकी पूजा नहीं करती, सुबिल--३१० शकमें, हुतम -३३१ शकमें तथा विदि और किन्तु पूजा-पद्धतिमें भी परस्पर समानता देखी जाती है।