पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४१४

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1०८ बोजपादप-बीजवपन पासोवंशीय बिजलीराजने इस नगरको बनाया। बीजमार्ग (स० पु० ) वाममार्गको एक भेद । उन्होंने यहांसे आध कोम उत्तर नाथबन नामक एक दर्गबीजमार्गी (हिं० पु०) वीजमार्ग पंथके अनुयायी। भी बनवाया था । प्रथम मुसलमान-आक्रमणमे ही बोजरत्न (सपु०) बीजग्नमिव यस्य । उड़दकी दाल । गजवंशकी लक्ष्मी विदा हो गई । मुसलमानी अमलमें बीजमह ( स० लि. ) बीजात रोहतीति कह इगुपधात् क यह म्यान उक्त परगनेके सदररूपमें गिना जाता था। शालि प्रभृति । यहां आज भी अनेक समाधिमन्दिर विद्यमान हैं। बोजरेचन (सं० क्ली० ) बीजं रेचनं रेचक यस्य । जयपाल, बीजपादप ( सं० पु०) बीजप्रधानः पादपः । १ भल्लातक, जमालगोटा । मिलावाँ । २ वीजोत्पन्न । बीजल ( सं० वि० ) बीज ( सिध्मादिभ्यश्च । पा ॥२॥६७) बीजपुष्प ( म० क्ली० ) बीजप्रधानं पुष्प' यस्य। मरुवक, इनि मत्वर्थे लच् । बोजयुक्त, जिममें बीज हो । मरुआ। २ मदनवृक्ष । ।बीजल (हि.स्त्री०) तलवार । बीजपुष्पिका ( सं० स्त्री०) वृक्षभेद । ( \unly toptopबोजवपन ( सं० क्ली० ) बीजानां बपन । क्षेत्र में बीजक्षेपण, Saccharatuns) 'खेतमें बीज बोना। पहले पहल खेतमें बीज बोनेमें उत्तम बोजपुर (मपु०) बीजानां पूरः ममूहो यत्र । १ बिजीरा दिनका विचार करना होता है। ज्योतिषमें लिखा है - नोवू । मस्कृत पर्याय --बीजपूर्ण, पूर्णबीज, सुकेशर, : पूर्वफल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वभाद्रपद, कृत्तिका, भरणी, बीजवा, केशराम्ल, तुलुङ्ग, सुपूरक, रुचक, बोजफलक, अश्लेषा और आर्दा भिन्न नक्षत्रों में रिक्ता, अष्टमी और जन्तुघ्न, दन्तुरच्छद, पूरक, रोचनफल। इसके फलका अमावस्या भिन्न तिथियोंमें शुभग्रहके केन्द्रस्थ होने पर गुण-- अम्ल, कटु, उष्ण, श्वास, काम और बायुनाशक, स्थिरलग्नमें जन्मलग्न तथा मिथुन, तुला, कन्या, कुम्भ कण्ठशोषणकर, लघु, हृद्य, दीपन, रुचिकारक, पावन, और धनुलग्नके पूर्वभागमें बीजवपन प्रशस्त बतलाया आध्मान, गुल्म, हृद्रोग, लोहा और उदावत नाशक, गया है। विबन्ध, हिका, शूल और शदीमें प्रशस्त माना गया है। "हलप्रवाहबद्वीजवपनस्य विधिः स्मृतः । २ मधुककटो, चकोतरा। चित्रायाञ्च शुभे केन्द्र स्थिरस्वमनजोदय ।।" बोजपूणे ( म० पु० ) बीजेन पूर्णः । १ विजोग नीव । (ज्यातिस्तत्त्व ) २ चकोतरा बोजवपनके दिन सबेरे नाना प्रकारके मंगलकार्य बीजपेशिका ( स० स्त्री०) बीजम्य शुक्रस्य पेशिकेव। करके पूर्वमुख हो निम्नोक्त मन्त्रसे बोजवपन करे । मन्त्र अण्डकोष । यथा -- बीजप्ररोहिन ( स० त्रि.) बीजसे उद्गमनशील, बीजसे "त्व वै बसुन्धरे सीते बहुपुष्पफलप्रद । उगनेवाला। नमस्ते मे शुभं नित्य कृषि मेधां शुभं कुरु ।। बोजफलक ( स० पु०) बीजप्रधान फल यस्य कन् । रोहन्तु सर्वशस्थानि काले दवः प्रवर्षतु । बीजपूर, विजौरा नीबू । कर्षकास्तु भवग्या धान्येन च धनेन च स्वाहा ॥" बीजबन्द ( हि पु. ) वरियारीके बीज, खिरैटीके बीज। इस मन्त्रसे प्राजापत्यतीर्थ द्वारा बीजवपन करे । इस बीजमति ( म ० स्त्री० ) बीज स्थिर करनेमें समर्थ मन। दिन बन्धु बान्धवोंके साथ एकल भोजन करना होता है। बीजमन्त्र ( स० क्ली० ) विभिन्न देवताके उद्देश्यसे निर्दिष्ट वीजवपन विषयमें वैशाखमास श्रेष्ठ, ज्येष्ठ मध्यम और मूलमन्त। शेष मास अधम माने गये हैं। बीजमातृका (स. स्त्री०) कमलगट्टा । "वैशाखे वपन श्रेष्ठ मध्यम राहिणी रखो। बीजमाव (सलो०) १ बीज वा वंशरक्षाकी उपयोगिता। अतःपरस्मिनधर्म न जातु श्रावणे शुभम् ॥" २ऋग्वेदका म मण्डल। ( ज्योतिस्तत्व )