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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४५८

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थे। अभी उनका केवल भग्नावशष मान इधर उधर दिया। आखिर कालिजरका 'दुर्ग जीत कर उन्होंने विक्षिप्त देखा जाता है । मलाया इसके हमीरपुर जिलेको वहां अपना राज्य बसाया। १७३४ ई०में फर्रुखाबादके जलप्रणाली, कालिअर और अजयगढ़का विख्यात पठान नवाब अहमद खाँ बङ्गसने उन पर धावा बोल दुग तथा खजुराह और महोवाका प्रसिद्ध मन्दिर आज दिया। इस बार शतके हाथसे विशेष कष्ट पा. कर घे भी उनकी प्राचीन कीर्सिकी घोषणा करती है। मराठोंकी सहायता लेनेको बाध्य हुए। महाराष्ट्र-पेशवा फिरिस्ताके वर्णनसे मालूम होता है, कि १०२१ ई०में बाजीराव सुयोग पा कर बुन्देलखण्डमें अपनी गोटी गजनीपति महमूदके आक्रमणके समय चन्देल राजाने जमानेके लिये दलबलके साथ आये और अहमद खाँको ३६ हजार अश्वारोही, ४५ हजार पदाति और ६४० हाथी परास्त कर बुन्देलाराजको विपदसे उद्धार किया। इस ले कर उनका मुकावला किया था। चन्देल-घंशके कार्यके पारितोषिक स्वरूप पेशवाको बुन्देलखण्डके पूर्व- प्रतिष्ठाता राजा चन्द्रवर्मासे निम्न २०वीं पीढ़ीमें राजा भागका कुछ अंश और एक दुर्ग मिला। पोछे उन्होंने परमालदेव ११८३ ई०में दिल्ली के चौहानपति पृथ्वीराजसे काशीक एक ब्राह्मण पण्डितको वह स्थान दान कर परास्त हुए थे। परमालदेयके अध:पतनके बाद राज्यमें दिया। अंगरेजोंके दखलमें आनेके पहले तक वह अराजकता फैल गई और मुसलमानोंके बार बार आक्र-: स्थान उन्हीं काशीपण्डित ब्राह्मणके वंशधरोंके शासना- मणसे यह स्थान श्रीभ्रष्ट हो गया। आखिर १४वी, धीन था। शताब्दीमें गड़वावशीय राजपूत जातिको चन्देलशाखा इसके बाद पेशवाने ओर्छाराजसे झांसी छीन लिया। इस प्रदेशमें आ कर यमुनाके किनारे बस गई। उन्होंने उन्होंने जिस सूबेदारके हाथ इस स्थानका कार्यभार सौंपा धीरे धीरे कालिअर भौर काल्पी नगर अधिकार किया था, उन्हींके वंशधरोंने कुछ समय तक यहाँका राज्यकार्य और महोनीमें राजधानी बसाई। चलाया था। राजा छलशालके वंशधरगण सामान्य १५३१ ई०में राजा रुद्रप्रतापने ओर्छा नगर स्थापन सम्पत्तिके उत्तराधिकारी हो कर भी भिन्न भिन्न भागों में किया। इनके शासनकालमें बन्देलाराज्यकी सीमा इस स्थानका शासन करते थे। किन्तु इस अधःपतन बहुत दूर तक फैल गई थी। पीछे बुन्देला प्रभाव यमुना - शील राजवंशके राजकर्मचारियों के विद्रोहसे महा विश्- के पश्चिम प्रदेश में भी फैला । तभीसे वह स्थान बुन्देल- लता उपस्थित हुई। खण्ड कहलाने लगा। . इस अराजकता और अन्तविप्लवजनित छोटी मोटी इसके कुछ दिन बाद ही भोछाराज रुद्रप्रतापके लड़ाइयोंसे बुन्देलाराज्यको चौपट लगने देख बाजीरावके प्रपौत्र राजा वीरसिंहदेवने मुसलमानी आक्रमणसे भय पौत्र अली बाहादुरने (१) तलबार उठाई और घमसान ग्या कर मुगल-बादशाहकी अधीनता स्वीकार की। किंतु युद्धके बाद इस प्रदेशका कुछ अंश अधिकार कर लिया। चम्पतराय नामक एक चन्द ला-सरदारने घेतवा तीरवती १८०२ ई में कालिञ्जर-दुर्गमें घेरा डालनेके समय अलीकी पात्यप्रदेशमें रह कर मुसलमानी सेनाको नाकोदम मृत्यु हुई। पीछे पूना राजदरबारकी अनुमतिसे अलीके लाया था। | पुत्र समशेर बहादुरको तरफसे हिम्मत् बहादुर राजकाय- ख्यातनामा बुन्देलाराज छलशाल उक्त महापुरुषके की देखरेख करने लगे। सुपुत्र थे। उन्होंने पितृपदका अनुसरण करके अपने घर महाराष्ट्रीय सामन्त राजाओंके विद्रोह और जीवनको सार्थक बनाया था। उन्होंने बुन्देलागणसे बसाईके सन्धिपत्रके गोलमालसे अंगरेजराज बुन्देल- प्रधान सरदार और सेनापति नियुक्त होनेके बाद अपने खण्डके कुछ अंशों पर अधिकार कर बैठे। इस पर अस- दलबल के साथ पग्नाकी यात्रा की और वहाँके पहाडी तुष्ट हो सिन्दिया, होलकर और बेरारपति तथा समोर दुर्गों पर अधिकार जमाया। इस प्रदेशमें जहां जहां उनके ' (१) ये पेशवा बाजीरावकी मुसलमान रमणीसे उत्पन्न शत्र रहते थे उन सब स्थानोंको उन्होंने भग्निसे जला हुए थे।