पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४५९

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द्वारा परिचालित महाराष्ट्र-सैन्यने अंगरेजोंके विरुद्ध बुन्देलखण्ड के राजइतिहासमें लिखा है, कि यह जाति अबधारण किया। राजा हिम्मत बहादुरने भविष्यमें अपनी अयोध्याधिपति सूर्यवंशीय राजा रामचंद्रके वंशमें उत्पन्न स्वार्थहानि देख अंगरेजोंका पक्ष लिया और इस प्रदेशका हुई है। राज इतिहासमें इसकी वंशतालिका इस प्रकार कुछ अंश फिरसे उन्हें सपुर कि । इस समयके है बन्दोवस्तके अनुसार अंगरेज लोग राजा हिम्मतको रामचंद्रके पुत्र कुश, कुशके पुत्र हरिब्रह्म (महीपाल), हरि सैन्यरक्षाके लिये २० लाख रुपयेकी सम्पत्ति और सहा- ब्रह्मके पुत्र उदिम, उदिमके अलम्यान, अलम्यानके विमल. यताके लिये जागोर देनेको राजी हुए। अंगरेजी सेना चंद, विमलके पुत्र छत्रशाल, छत्रशालके पुत्र योधपाल, बुन्देलखण्डमें घुसी और मौका पा कर समशेरको परास्त और योधपालके पुत्र विहङ्गगज ( विहङ्गश ) थे। इन किया। हिम्मतको मृत्युकं बाद उनकी सम्पत्ति अंग मातीने ही अयोध्या राज्य किया था। रेजराजने छीन ली। अब उनके वंशधरगण केवलमाल विहङ्गके पुत्र काशराजने बनारसमें आ कर राज जागीर और वार्षिक वृत्तिका भोग करने लगे। समशेर पाट स्थापित किया : ये हो पहले पहल काशीश्वर नाम बहादुरने अगरेजराजसे दी गई ४ लाख रुपयेकी से प्रसिद्ध हुये। काशीराज पुत्र गुहिलदेव, गुहिलक सिसे संतुष्ट हो बन्दामें रहनेकी अनुमति पाई थी। विमलचंद, विमलचंदकं गोपचंद, गोपर्क गोविन्दचंद, १८२३ ई० में यहां उनकी मृत्युके बाद उनके भाई जुलफि गोबिन्दके तुहिनपाल, तुहिनके विन्ध्यराज, विन्ध्य के कर अली उनकी सम्पत्तिके अधिकारी हुए। लनिकदेव, लुनिकके विदलदेव. विदालके अर्जुनब्रह्म और जुलफिकरके बाद अली बहादुरने उम सम्पनिका अजु नके पुत्र वीरभद्र थे। इन्होंने यथाक्रम काशीके भोग किया। परन्तु १८५७ ई०के गदरमें उन्हें शामिल सिंहासन पर बैठ कर प्रबल प्रतापके साथ राज्यशासन पाये जाने के कारण उनकी सम्पत्ति छीन ली गई और वे किया। राजा वीरभद्रकं चार पुत्र थे जिनमेसे कुमार इन्दौर राजधानी में नजर बंद किये गये। १८७३ ईमें पंचमको राजा अधिक चाहते थे। पिताकी मृत्युक उनकी मृत्यु होने पर उनके वशधरोंको अंगरेज-राजसे बाद पञ्चम गजगही पर बैठे। उनके अन्य भाइयोंने १२०० रुपयेकी वृत्ति मिली। विद्रोही बन इनकी गज्यसे निकाल दिया। उदा अंगरेजोंने पहले पहल इस प्रदेशमें हिम्मत बहादुर सीन हा पंचमने विन्ध्याचल आ कर विन्ध्या और पेशवा-प्रदत्त कुछ भूमि प्राप्त की । १८१८ ई०में . वागिनी देवीकी आराधना की। कठोर तपसे भी देवो पेशवाके अधःपतनके बाद समूचा बुन्देलखण्ड अंगरेजों ' प्रसन्न न हुई, यह देख कर उन्होंने आत्मोत्मग करना के दखलमें आया। इसके बाद जलौन, झांसी, जैतपुर, चाहा। जब वे अपनी नलवाग्से मस्तक छेदने में उद्यत खही, चिरगांव, पूर्वा, विजयाघवगढ़ तिरोहा, शादगढ़ । पून परिवार विध्याचलंक निकट गौड़ प्राममें आ बस गया। इस और बाणपुर आदि सामन्त राज्योंके शासनकाओंके : यशके काई पूर्व पन्ना जये, अधीन काम करते थे। व्यवहारसे असन्तुष्ट हो वृटिश सरकारने उनको सम्पत्ति निःसंतान पन्नाराजी मृत्युक याद उन, गारबाट राजकर्मचागने अपने हाथ कर ली। उनके दुर्ग पर अधिकार जमाया। किन व स्वयं पुत्र रहिन थ बुम्बेला.... बुन्देलखण्ड निवामी गाहरवाड शाखासे उत्पन्न अतएव यह ननन गजपाट उनको भी अच्छा नहीं लगना था। राजपूत जाति । देवी विम्ध्यावासिनी भवानीके वरदान व संसारमं आसीन हा विध्यानलका विध्यावासिनी देवांक निकट से वे लोग बुन्देला कहलाये और उनका प्रदेश बुन्देल- चले गथ। यहां देवीके प्रमाद पाने के लिये अपना मस्तक दान खएड नामसे प्रसिद्ध हुआ । इतिहास पढ़नेसे मालूम करनका उद्यत हो गये। उनके शरीरस्थ रत. विदुमि एक होता है, कि यह गाहरवाड़ जाति भिन्न देशसे यमुना पार वालक उत्पन्न हुआ। यिदु (द) उत्पन्न होने के कारगा उग में आ कर वहां बस गई थी। (१) बालकका बुदला नाम पड़ा। उनके वंशधर भी बुदेला (१) मिर्जापुरमें प्रवाद है, कि गाहरवाड़ वंशीय कोई राज । नामसे प्रसिद्ध हुये। Vol, x, 114