फकीर-फखरउद्दौला फकीर तीर्थयात्रा करने और दर दर भीख मांगते हैं। सुलतान महम्मद अमीरोके पुत्र थे। उन्होंने स्त्रीकवियों- पीत वस्त्र हो इनका पहनावा है। स्फटिकादिकी एक की जीवनी पर 'जवाहिर उल अजाएव' नामक एक प्रन्थ माला गलेमें और एक हाथमें पहन कर इधर उधर घूमते लिखा है । वे शाह तहमास्प तखानके शासनकालमें फिरने हैं। वे कपालमें, नाकमें, दोनों हाथों में और छाती- सिन्धु प्रदेश आये थे। तहफत्-उल-हवीव नामक उनका में तिलक लगाते हैं। _ बनाया हुआ एक दूसरा गजलसंग्रह भी पाया जाता है। फकीर -बिलग्रामवामी एक मुसलमान कवि, मीर नवा- १५६० ई०में वे विद्यमान थे। जीस अलीकी उपाधि । १७५४ ई में उनकी मृत्यु हुई। फखर उदोन आबू महम्मद-विन् अली आज्जैले ---एक फकीर अलीवेग बुलन्दशहरके शासनकर्ता। ये मम्राट् : धार्मिक मुसलमान पण्डित । उन्होंने तराइन-उल हकाएक हुमायूके शासनकालमें ( १५३८ ई०में ) वर्तमान थे। नामक 'काल उदकाएक' नामक पुस्तकको एक टोका फकीरगञ्ज - बङ्गालके दिनाजपुरके अन्तर्गत एक वाणिज्य- लिखी है। उसमें वे सुफी मतका खण्डन करके हनिफी स्थान और गण्डग्राम । यहां चावल और पटसन आदिका मतको पोपकता की है। यह पुस्तक भारतवासो मुसल- बडा कारोवार है। मानोंकी बड़ी ही रोचक है । १३४२ ई०में उनकी जीवन- फकीर, मार समसुद्दीन - दिल्लीनिवासी एक मुसलमान-! लीला शेष हुई। कवि। ये 'मफतून' नामसे ही विशेष परिचित थे। फखरउद्दीन जुनान-सुलतान गयासुद्दीन तुगलक शाह- १७६५ ई०में ये दिल्लीका त्याग कर लखनऊ शहरमें बस के बड़े लड़के । पिताके राज्यारोहणके बाद ये दिल्लीके गये। यहीं पर १७६७ ई०में उनकी मृत्यु हुई। यों तो ये : युवराज पदपर प्रतिष्ठित हुए । १३२५ इ०में जब इनके अनेक कविताएं लिख गये हैं, पर 'दीवान' और ताम्बूल- पिता इस लोकसे चल वसे, तब इन्होंने महम्मदशाह व्यवसायीके पुत्र रामचांदके इतिहासके आधार पर तुगलक १म नाम धारण कर दिल्लीके सिंहासन पर अधि- लिखित 'तसवीरमुहव्यत नामक मसनवी हो प्रसिद्ध है। कार किया। महम्मदशाह तुगलक देखो। फकीरहाट बङ्गालके ग्वुलना जिलेके अन्तर्गत एक थाना . फखर उद्दीन मालिक बङ्गालके एक मुसलमान राजा। और गण्डग्राम । यहां चावल, सुपारी, नारियल और फखर उद्दीन मौलाना दिल्लीवासी एक मुसलमान कवि, चीनोकी काफी आमदनी होती है । सुन्दरवनके मध्य यह . निजाम उल हकके पुत्र । निजाम उल अकाएद और स्थान सबसे ऊंचा है। यहां खजूरके रससे गुड़ और विसाला मार्जिया नामक दो ग्रन्थों के अलावा और भी चीनी बनाई जाती है। कितने प्रन्थ इनके बनाये हुए मिलते हैं। इनकी काव्यो- फकीराण -मुसलमान साधु वा फकीरोंके भरण पोषणार्थ पाधि सैया उष सुआरा थो। १७८५ ई०को ७३ वर्षकी दी हुई निष्कर भूमि आदि । अवस्थामें उभकी मृत्यु हुई। दिलीके कुतुबुद्दीन बखति- फकीरी ( हि० स्त्री० ) १ भीखमंगापन । २ साधुता। ३ . यारकी दरगाहके द्वाग्देश पर इनकी कब्र आज भी देखनेमें निधनता। ४ एक प्रकारका अंगूर । आती हैं। मुसलमान-समाजमे ये धार्मिक समझे फक-शूरसेनके एक राजा।। जाते थे। फक्तिका (सं० स्त्री०) फक्क 'धात्वर्थनिर्देशे एबुल फखरउद्दीन सुलतान-बङ्गालके अन्तर्गत सुवर्णप्रामक वक्तव्यः' इति वात्तिकोफ्त्या "बुल, टापि अंत इत्वं । १ . मुसलमान अधिपति। ये १३५६ ईमें लक्ष्मणावतीके असदावहार, अनुचित व्यवहार । २ धोखेबाजो । ३ वह जो मुसलमानराज समसुद्दीनसे यमालय भेजे गये और उनका शास्त्रार्थमें दूरूहस्थलको स्पष्ट करनेके लिये पूर्वपक्षरूपमें राज्य लक्ष्मणावतीके अन्तर्भुत कर लिया गया। कहा जाय, कूट प्रश्न। फखर उद्दौला-एक उन्नतमना मुसलमान शासनकर्ता । फस्नर ( फा० पु० ) गौरव, अभिमान। १७३५ ईमें दिल्लीश्वर महम्मदशाहके शासनकालमें फस्नरी --हीरटवासी एक मुसलमान प्रन्थकार । ये मौलाना इन्होंने पटनाका शासन-भार ग्रहण किया
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