बृहन्नव-बृहस्पति बहन्नेत्र ( स० नि० ) १ वृहत् चक्षयुक्त, वडो वड़ो आँख स्पतिके १ राशिसे दूसरी राशिमें जानेमें १ वर्ष और वाला। २रवती, दरका। । सम्पूर्ण राशियों में भ्रमण करनेमें १२ वर्ष समय लगता बहन्नौका ( स्त्रो० क्रोवनभेद, चतुरङ्ग नामका खेल।। है। कर्कट राशि ब हस्पतिसे उच्च और मकरके नीचे है, चतुरङ्ग देखो। । जिसमें कर्कटके ५ अंक बहुत उम हैं और मकरके ५ बहस्पति----(स' पु०) व हतां वाचां पतिः। ( पारस्करेति । अंक बहुत नीचे हैं। बहरुपति ऊँचे पर रहनेसे शुभफल पा ६।१।१५७ . इति सुट निपात्यते। आजगके पुत्र, और नीचे रहनेसे अशुभफल होता है : ऊचे और देवताओंके गुरु, धर्मशास्त्र प्रयोजक, नवग्रहों मे पञ्चम नोचेके वोन्नमें रहनेसे भागहार द्वारा फलका निर्णय प्रह। पर्याय----सुराचार्य, गो पति, धिषण, गुरु, जीव, करना चाहिए। बृहस्पति काल पुरुषका मान और अङ्गिरस, वाचस्पति, चित्रशिम्वण्डिा । ( अमर ) उतथ्या- मुख है। बृहस्पतिके दीप्तांश ६ हैं : अर्थात् व हस्पतिमाह नुज, गोविन्द, चारु, द्वादशरश्मि, गिरीश, दिदिव, पूर्व : जब जिम राशिमें रहते हैं, तब उसी राशिके जितने फल्गुनीभव । (जटाधर) सुरगुरु, वाकपति, वचसांपति, इज्यः अंशमें उनका किरणजात पूर्णरूपसे विक्षिप्त होता है, वागीश, चक्षस, दोदिवि, द्वादशकर, प्राकफाल्गुन, गोरथ। उसे दीप्तांश कहते हैं , किन्तु सूर्यके दीप्तांशमें सभी (शब्दरत्ना.) ग्रह अस्तमित होते हैं। वहस्पतिकी चकगातका काल "एतं ते देव सवितर्यज प्राहु इस्पतये ॥” (शुक्रयजु १।१२) एक सौ दिन है। बहस्पति धन, पुल, काश्चन और देवताओंके यझमें बृहस्पति ब्रह्मा होते थे। ऋग्वेद में : मित्रादिके देनेवाले हैं बृहस्पति शब्दका भर्थ पुरोहित और मन्तपालक देखनमें वहस्पतिके दण्ड में जन्म होनेसे वह व्यक्ति अत्यन्त आता है। मेधावी, दाम्भिक, बहु पुनयुक्त, मिष्टभाषी और नृत्यगीत. "बृहस्पति यः मुभूतं विभति" ( ऋक ४१५०1७ ) "बृहस्पति प्रिय होता है। वहम्पतिरिट- बृहस्पति यदि मेप भथवा रहतां महतां मन्त्रागां पालयितार देव उकलानगा पुगेहित था। वृश्चिक राशिमे रह कर किसी लग्नके भष्टम स्थान ( सायगण) स्थित हो तथा यदि वे रवि, चना, मङ्गल और शनि द्वारा प्रयागतत्वमें लिखा है - वृहस्पनिग्रह ईशानकोण, ! दृए हों और शुक्रकी द्रष्टि न रहे, तो बालककी तीन वर्ष के पुरुष, ब्राह्मणजाति, ऋग्वेद, सत्त्वगुण, मधुर ग्म, धनु ; भीनर मृत्यु होती है। वृहस्पतिके तुङ्ग पर अवस्थान और मीनराशि, पुष्यनक्षत्र, वस्त्र, पुष्परागमणि और । करनेमे मानव मन्त्री, नरश्रेष्ठ, अतिशय बलवान, माम सिन्धुदेशके अधिपति हैं। इनका शरीर पडंगुल है। नोय, अति रागान्वित, ऐश्वर्यशाली ; हम्तो, अश्व, यान ये पनस्थित और चतुर्भुज हैं; चारों हाथों में अक्ष.. और सुन्दरी रमणियों द्वारा विभूषित और बहु गोष्ठी- घर, दण्ड और कमण्डलु धारण किये हुए हैं। इनके पोषक होता है। अधिदेवता ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता रुद्र हैं। ये अङ्गिरा मेष आदि द्वादश राशियोंमें वृहस्पति रहनेमे निम्न- मुनिके पुत्र, प्रातःकालमें प्रवल, शुभप्रह, देवगृहस्वामी, लिखित रूप फल हुआ करता है :--- वृद्ध, रक्तद्रव्य-स्वामी, वातपित्तकफात्मक, वणिककर्म-! मेपमें वृहस्पति होनेस रागादि सम्पन्न, कर्मठ, वक्ता, कर्ता और अङ्गिरागोत्र हैं। (ग्रहयागतत्व) दाम्भिक, विस तिकर्मा, नेजस्वी, बहुशन और व्ययार्थ- शोपिकाके मतसे-बहस्पतिकी भाकृति पनके समान, युक्त, क्रोधी, कर और दण्डनायक होता है। वर्ण गौर और जाति ब्राह्मण हैं। ये पुरुष हैं, तमोगुणके वृषमें वृहस्पति पड़नेसे --पीनविशालशरीर-सम्पन्न, अधिपति और समाधातु-विशिष्ट हैं, ऋग्वेदके अधिपति, देव-द्विजगुरु भक्तिमान, दान्त, सुन्दर, भाग्यवान्, स्वदारानु- राशिचकमें सप्तम, नवम और पञ्चम गृहमें पूर्णष्टि हैं। रक्त, सुन्दरगृह-युक्त, धनान्य, उत्तम वस्त्र और भूपण- रवि, चन्द्र और मङ्गल मिल, बुध और शुक्र शत्रु तथा युक्त, नयनवेत्ता, स्थिरप्रकृति, विनीत और औषधप्रयोग- शनि सम है। .हस्पतिका मूल लिकोण धनु है । बह- कुशल होता है। मिथुनराशिमें वृहस्पति रहनेसे मेधावी,
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४८१
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