पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४८२

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गृहस्पति वाग्मी, निपुण, कार्य-कुशल, विनयी, गुरु और बान्धवोंमें रोगयुक्त होता है। उस गृहमें चन्द्र द्वारा दष्ट होनेसे- मान्य और सत् कवि होता है। कटराशिमें वृहस्पति इतिहास और काव्यमें कुशल, बहुरत्न भौर अनेक स्त्री- होनेसे - विद्वान, सुरूप-देहसम्पन्न, या धर्मप्रिय, सत्स्व- युक्त, नृपत्ति और पण्डित होता है। मङ्गल द्वारा दृष्ट भावयुक्त, यशस्वी, धनी, लोकसत्कृत, विख्यात, नर- होनेसे-श्रेष्ठ राजपुरुष, धनी, कुत्सित पलो और भृत्य- पति, धार्मिक और सहजमें अनुगत होता है। सिंह युक्त होता है। बुध द्वारा दूष्ट होनेसे · अनृतवादी, पाप- राशिमें बृहस्पति होने --स्थिरवैरतायुक्त, धोरप्रकृति, परायण, परवित्तान्वेषणमें निपुण, मेधायी, कपटी और अतिशय पराक्रपशाली, कोधो, शिथिलदेह सम्पा, दुर्ग, मोतिवेत्ता होता है। शुक्र द्वारा दृष्ट होनेसे - सर्वदा गृह, .र्वत वा अरण्यवासी होता है। कन्या राशिमं वृहस्पति शय्या, वस्त्र, गन्ध, माल्य, अलङ्कार, युवतो स्त्री, विभव. होनेसे-मेधावी, धर्मरत, क्रियापटु, ज्ञानवान्, दाना, सम्पन्न, उत्तम मतिमान और भीरुस्वभाव होता है। शनि विशुद्वस्वभाव, निपुण, व्यवहारवेत्ता और प्रभूत धन पान । द्वारा दूर होनेसे . मलिनदेह, लोभी, उद्धतप्रकृति, साह- होता है। तुलाराशि वृस्पति आने- मेधावी, सिक, प्रसिद्ध माननीय और अस्थिरमति होता है। बहु मित्रसम्पन्न, विदेश नमणमें रत, प्रभूत धन- वृहस्पति शुक्रके गृहमें रह कर रवि द्वारा इष्ट होने वान्, अधार्मिक, नट और नर्शक द्वारा धन संग्रा- पर --मनुष्य और पशु आदिको अधिपति, धनो, पण्डित हक नथा कमनीय शरीरधारी होता है। वृश्चिक में यह और राज-सचिव होता है। चन्द्र द्वारा दृष्ट होनेसे -- स्पति पड़नेस - अनेक शास्त्रों में कुशल, माधुचरित्र, अतिशय धनवान. मधुरभाषी, जननोका प्रिय, युवतीप्रिय अनेक पत्नो विशिष्ट. अल्पसस्तान-युक्त, दुष्टजन द्वारा और उपभोग भोगी होता है। भङ्गल द्वारा दृष्ट होनेसे.. पीड़ित, बहु परिश्रमी, दाम्भिक, धर्मनिरत और निन्दा वारी बालास्त्रीका प्रिय, प्राज्ञ, शूर, धनी, सुखी और राज- होता है। धनुराशिमें वृहस्पति होनेसे ---बन, दोझा, पुरुष होता है। बुध द्वारा दुष्ट होनेसे.. पण्डित, चतुर, यज्ञादिकर्ममें आचार्य, संस्थान-विहीन, सञ्चयमें अक्षम, | विख्यात, उत्तम भाग्यमान विभवशाली, सुशील और कम दाता, अपने सुहृद् पक्षको प्रिय व्यवहारकारी, राजमन्त्री वा नोयमूर्ति होता है। शुक द्वारा दूर होनेसे-- अत्यन्त मण्डलाध्यक्ष, नाना देगनिवासी और यशकरण-मतियुक मलिनदेह, धनो, मधुरस्वभाव, श्रेष्ठ वस्त्र और शय्यासे होता है। मकरमें वृहस्पति पड़नेसे -अल्प बलवान, क्लेश युक्त होता है। शनि द्वारा गुट होनेसे--प्राज्ञ, धनधान्य- सहिष्णु, नीचाचार-पगयण, सूर्ख, निःस्व, माङ्गज्य, दया, सम्पन, प्राम और नगरवासियों में सर्वप्रधान, मलिनदेह शौच, बन्धुवत्सल और धर्मसे हीन तथा भीरू, प्रवासशील और कुत्सित भार्या युक्त होता है। और विषादी होता है। कुम्भमें वृहस्पति होनेसे -खल, | ___ वृहस्पति वुधके गृहमें रह कर रवि द्वारा दृष्ट होने- असाधुचरित्र, नोचाभिग्न, नृशंम. लोभी, ध्याधिग्रस्त, से --श्रेष्ठ, प्रामपति, पुत्र दारा और धनका अधोश्वर होता प्रमादि गुणहीन और गुर्वाङ्गनागामी होता है । मीनराशि है। चन्द्र द्वारा दूर होनेसे - धनवान्, मातृवत्सल, में रहनसे चंद और अर्थशास्त्रका घेत्ता. साध और सुकृति सम्पन्न, सुखी और ध्ययहीन होता है। मलद्वारा सुहदगणोंका पूज्य, नृपनिका नेता, श्लाध्य, धनवान् । दृष्ट होनेसे --सैकड़ों युद्धोंमें विजयी, धनी और लोकपूज्य स्थिरोद्यमविशिष्ट, सुनीतिपरायण, विख्यात और प्रशान्त होता है। बुध द्वारा दृष्ट होनेसे---ज्योतिःशास्त्रमें कुशल, चेष्टाविशिष्ट होता है। (मारावनी ) वहु पुत्र और दारा युक्त, सूत्रकार, अतिशय विरूप ___ वृहस्पति दूसरेके गृहमें दूसरे ग्रह द्वारा दृष्ट होनेसे वाक्य सम्पन्न होता है। शुक्रके देखने पर---देवप्रासादमें भिन्न रूप फल होता है। अत्यन्त संक्षेपमें इसका कुछ / कार्यकारी, वेश्यासक्त और कामिनोका हृदयहारी होता है। वर्णन किया जाता है। शनि देखनेसे -प्रामपति, सुखो और दृढ़ शरीर होता है। वृहस्पति मंगलके गृहमें रह कर रवि द्वारा दृष्ट होने चन्द्र के गृहमें रहते हुए वृहस्पतिका रवि द्वारा दृष्ट पर धार्मिक, अनून, भीरु, ख्यातिपरायण, अशुचि और होने पर-महोदरों में विख्यात, धन और दारा-विहीन