वृहस्पति
१७७
तथा अन्तिम अवस्थामें धनी होता है। चन्द्र द्रष्ट होने इस प्रकार गणना-पूर्वक वृहस्पतिके शुभाशुभका
से-अतिशय द्य तिमान, नृपति तुल्य, धन और बाहन , निणय किया जाता है। पूर्वोक्त फलदशा, अन्तर्दशा वा
द्वारा समद्धिसम्पन्न, उत्तम पत्नी और पुत्र-युक्त होता है। प्रत्यन्तर्दशा मध्यमें होती है। अष्टोत्तरी वा विशोसरीके
मडल दृष्ट होनेसे..-बाल्यावस्थामें दाता, पंडित और शर; मतसे साधारणतः दशाको गणना की जाती है।
बुध देखनेसे---बान्धव और मातृहेतु धनवान्, कलहान्वित, अष्टोत्तरीके मतसे २० पूर्वाषाढ़ा, २१ उत्तराषाढ़ा और
पापहीन, विश्वासी और मन्त्रणा-कुशल; शुक्र देखनेसे . अभिजित् तथा २२ श्रवणा नक्षत्र में जन्म होनेसे बहस्पति-
अनेक स्त्री-युक्त, धनो और भाग्यवान् : शनि देखनेसे की दशा होती है। इस दशाका परिमाण १६ वर्ष है।
प्राम, सेना वा नगरका प्रधान, वाचाल, बहुविभव-सम्पन्न इसके प्रति नक्षत्रमें ४ वष मास, प्रति नक्षत्रके बादमें
और वृद्धावस्थामें भागो एवं दाता होता है।
१ वर्ष २ मास १५ दिन, प्रति दण्ड में २८ दिन ३० दण्ड,
रविके गृहमें ब,हस्पति हों और वि द्वारा दूर हों, तो प्रति पलमें २८ दण्ड ३० पल होता है। नक्षत्रका परि-
लोकप्रिय, विख्यात, नृपति और सुन्दरस्वभाव होता है। माण ३० दण्ड होनेसे ऐसा समय होगा, कमी-बेशी
चन्द्र द्वारा दृष्ट होनेसे - स्त्रोकं भाग्यसे धनवान, जिते होनेसे भागहार द्वारा भोग्यफलका निर्णय करना
न्द्रिय और मलिनदेहः मङ्गल दृष्ट होनेसे साधु और चाहिए।
गुरुजनों के समीप सत्यवादी, शर और करप्रकृति: बुध मानवको इस दशाके समय गज्यप्राप्ति, धनागम,
देखनेसे--विज्ञानशास्त्रविद ग्रेट और विख्यातः शक देखने- पुत्रलाभ, विविध वस्तुओंका भोग, सुख-वृद्धि, विद्या-
से स्त्री-प्रिय, सुन्दर भाग्यसम्पन्न और गजपूजित;
लाभ, मुख्याति और धनकी प्राप्ति होती है।
शनि देखनेसे असुखी तीक्ष्णम्वभाव, देवपत्नी मदृश :
___ विशोत्तरीके मतसे वृहस्पतिको दशा १६ वर्ष है।
पुनर्वसु, विशाखा वा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेनेसे
पत्नीसुख-विशिष्ट और भोना होता है।
बहस्पतिकी दशा होती है।
वहस्पति अपने घरमें रह कर चन्द्र द्वारा दृष्टि होने-
अष्टोत्तरी और विशोत्सरीके मतसे बहस्पतिको दशा-
से.राजविरोधी, सर्वदा परितापग्रस्त, धन और आत्मा को प्रत्यन्तर्दशा इस प्रकार है:
बन्धुहोन; मङ्गल देखने से संग्राममें पराजय, कर, धानक
अष्टमसरीके मतले
विशीतरीके मसमें
परपीड़क और उसकी पत्नीका नाश । बुध, वर्ष, माम दिन, दण्ड, वर्ष, मास, दिन,
देखनेसे. राजमन्त्री, अथवा नृपति, सुख धन और सौ-
वृ, बु, ३।४।३ । २० । यू, वृ,२।१।१८।
भाग्ययुक्त, सबोंको आनन्दकर और अतिशय रूपवान :
वृ, रा, २।१।१०।१०। ३, श,२६।१२।
होता है। शुक देखनन अतिशय मलिन, भोरु स्वभाव,
वृ. शु, ३ । ८।१०। । यू, के, ।११। ।
दीन और सुखभोग-रहित होता है।
चू, र. १।०।२०। । शु.२। ८। ।
ब,हस्पति शनिके गृहमें हो और वि द्वारा दृष्ट हो, तो।
यू, च, वृ। ७ । वृ०। । व, र, 01:१८
पण्डित, क्षितिपालक और पराकमशाली होता है।
बु, म, १।४।२६।४।
बन्द्र दृष्ट होनेसे मातापिताको भक्तिमें तत्पर, कुल-
वृ, बु, २१ ११ । २६ । ४०। व, म, ।११। ।
प्रधान, प्राज्ञ, दाता, धनो, सुशील और धामिक; मङ्गल व.श,१। । ३। । वृ, रा, २।४। २४ ।
दूष्ट होनेसे -शर, योद्धा, गर्वित, नेजस्वी और प्रसिद्ध :
१६ वर्ष।
१६ वर्ष।
बुध दूष्ट होनेसे कामुक, गणप्रधान, सबके साथमें
बाहल्य भयसे प्रत्यन्तर्दशा नहीं लिखी जा सकी।
मित्रता-युक्त और पण्डितः शक दृष्ट होनेसे - भोज्य,
दगा देन्या।
अनपान और विभव सम्पन्न, उत्तम नीयुक्तः और शनि- बहस्पतिग्रह १ वर्ष बाद एक एक राशिका भोग किया
दृष्ट होनेसे-अशेष विद्या-विशारद्, देश वा पुरका | करते हैं। गोचरमें बहस्पति रहनसे निम्नलिखित प्रकार
प्रधान और धनी हुआ करता है। (सारावली)
फल होता है---
Vol. xv,120
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४८३
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
