पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५१३

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बलदार ५०७ कोयलेका खानमें ये काम करते हैं । पश्चिम बङ्गालमें देते हैं। कहीं कहीं ये पत्थर भी काटने हैं तथा कृआं ये वाउड़ी वा कोड़ा जातिके ममान समझे जाते हैं। और तालाव खोदनेका भी काम करते हैं। पूनाके बेल. ___ इस जातिको उत्पसिका कोई इतिहास नहीं मिलता। दार हिन्दी और मराठी भाषा बोलते हैं। इनकी पगड़ी विन्द और बुनिया लोगों के साथ इसका बहुत कुछ लगभग ६० हाथ लम्बे कपड़े को बंधो होती है। ये मामञ्जस्य है। आङ्गोपाङ्गके गठनको देखनेसे यह जाति . मड़ी आई वा शीतला माताकी पूजा करते तथा उन्हें द्राविड़ीय वंशोद्भव और आदिम जातिकी शाखा मान्म मृत्युकी अधिष्ठात्री ममझते हैं। इसके मिवा माता, पडती है। किसी किसोका मत है कि जलोंमें शिकार आइ, देवो, भवानी आदि विभिन्न शक्ति मतियोंकी उपा- करनेवाली विन्द जाति ही आदि है. उमीसे बेटदार और : मना भी करते हैं। देवी पूजामें वकरा चढ़ाते हैं। नलिया जातिको उत्पनि है। पीछे ये स्वतन्त्र वृत्ति रूपये भमा लेने के बाद ये विवाह करते हैं। मरे अवलम्वन-पूर्वक कुछ अंशोंमें सभ्य हो गये हैं। बालकों की मिट्टी में गाड़ देते और तीसरे दिन उस पर नुलिया और बिन्द देखा। पानी और चावल द्वारा पिण्ड देते हैं। बिहाग्वामी बेलदारोंमें वौहान और कथौमिया या हिन्दु राजाओंके यहां भी बेलदार सेना रहा करती थी। कथावा नामका दो वंश वा थाक तथा काश्यप गोत्र राजा सोनारामको बेलदार सेनी मिट्टी कारतों थी और प्रचलित हैं। बालविवाह प्रचलित है। परन्तु आवश्यक होने पर युद्ध में भी काम आती थी। उस समय बहुत जगह प्रौढ़ विवाह भी देग्वनेमें आता है। 'ममेग' : यह सेना निम्न श्रेणीके हिन्दू और जंगलियों मेंसे संगृहीत और 'चचेरा' प्रथाके अनुसार वे विवाह करते हैं । विवाह हाती थी। के नियम अन्य निम्नश्रेणीकी जानियोंके मदृश हो है। उत्तर पश्चिमके बेलदारों में वाछल, चौहान और पहली स्त्रोके बन्ध्या होने पर पुरुष दृमग विवाह कर खरातवंश विद्यमान हैं। पहलेकी दो शाखाए राजपूत सकता है। मगाईके अनुसार विधयाका विवाह गी जानिके अनुकरणसे गृहीत हैं। खर नामक तृणविशेष होता है। पंचोंके विचारमे विवाह-वन्धन छट सकता है द्वारा चटाई बनानेके कारण तीसरी शाखाका नाम खगेन और फिर वह स्त्री अपना दूसरा विवाह कर सकती है। पड है। इसके अलावा बगेलीमे माहुल और ओरा, ___ मैथिल ब्राह्मण इनका पौरोहित्य करते हैं। श्राद्ध गोरवपुग्मं देशो, खाविन्द और सरबरिया ; बम्ती और अन्त्येप्रिक्रियादि धर्म कर्म निम्न श्रेणीके हिन्दुओशो जिलेमें ग्याविन्द और मासखाबा आदि थोक देखे जाते भांति होते हैं। माघ मासको तिलग्नकालिमें लोडाकी हैं। वर्तमानमें समभ्य हिन्दुओंके सहयासमं रह कर ये पूजा करते हैं। उनमें बहुत-से तो ग्वेतोवारी करते हैं, बछगोती, वछल, बहेलिया, विन्दवार, चौहान, दीक्षित, और कुछ मजदुरी ले कर दमगेका काम करते हैं। पृय गहग्वाड़, गाड़, गौतम, घोपो, कुरमी, निया, ओरा. बहालमें हिन्द के अलावा ममलमान वेदार भी राजपूत, ठाकुर आदिवंशगत नामसे तथा अगावाला वे माधारणतः गांवका कड़ा करकट ले कर बाहर फेकी अग्रवंशी, अयोध्यावासी, भदौरिया, दिल्लीवाल, गङ्गापारी. हैं, तथा मरे हुए पशुओंको दो कर यथाम्धान पहुंचाने गौरवपुरी, कनौजिया, काशावाल, सरवरिया (सरयूनार- और जङ्गल काटने हैं तथा हिन्दू और मुसलमानोंके वासी ) और उनराह आदि स्थानीय नामोंके अनुकरणसे विवाहमें मशालचीका काम करते हैं। यही उनको विभक्त हानकी कोशिश में लगे हुए हैं। इस जातिका आजीविका है। वंश-आख्यान कुछ भी नहीं हैं। हां, परिचय देते समय ___उत्तर-पश्चिम-भारत और दाक्षिणात्यमें भी बेलदार कहते हैं, कि पहले ये गजपूत थे, किमी राजा द्वाग बल- पाये जाते हैं। इनके कोई निर्दिष्ट वामस्थान वा पूर्वक मलाहके काम में नियुक्त किये जानके कारण समाज गृहादि नहीं होते, साधारणतः ये तम्बुओं में ही रहते हैं।' में वे इस प्रकार निगृहीत हुए हैं। इनमें सगाईक प्रशा जब जहां इन्हें काम मिलता है, तब वहांके लिए ये चल नुसार विधवाका विवाह होता है। पतिके द्वारा त्यागी