पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५२१

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बैलन ५१५ मार्गसे यथेच्छा गमन करते थे। पुराणादिमें इस विषय- उस समय प्रान नामक एक और व्यक्ति भी बलून के काफी प्रमाण पाये जाते हैं। परन्तु जिस विद्याके पर चढ़ कर ऊपर गये थे। उन्होंने १८३६ ई. तक २२६ प्रभावसे वे व्योमयान रूप रथको इच्छानुसार चलाते बार ध्योमयान द्वारा आकागमार्गमें परिभ्रमण किया था। थे, यह विद्या अब लुप्त हो गई है। पश्चिम युरोपखण्ड अन्तिम वर्ष नवम्बर मासमें जब वे बैलून पर चढ़ थे, वासी शिल्पविज्ञान विशारद विद्वानोंने इस व्योमयानको उस समय उनके साथ हालण्ड और इस्कमेसन माहब इच्छानुसार इधर उधर चलानेके लिए बहुत प्रयत्न किये भी थे। ज्यादा ऊंचाई पर पहुंचनेकी इच्छासे घे एक परन्तु आज तक वे सफल मनोरथ न हो सके। पक्षके लिए खाने पोने और अन्य व्यवहार्य वस्तुणं साथ ले १८०४ ई० में बिओ और गे-लूमक नामक दो विद्वान् कर 9 नवम्बरको दिनके १०॥ बजे लण्डन नगरसे बैलन ऊपरको वायुका शैत्य और उष्णता आदि गुणागुण पर सवार हुए। पूर्व दक्षिणकी तरफ गमन करते हुए तथा अन्यान्य विषयोंकी परीक्षा करने के लिए नाना उन्होंने अनेक ग्राम और नगरोंकी शोभा देखो। ४ घण्टे प्रकारके यन्त्र, पक्षी, पतङ्ग आदि प्राणियोंको साथ ४८ मिनट के बाद वे इग्लैण्ड भूमिको छो? कर समुद्रके ले कर, १३वीं अगस्तको सुबह १० बजे फरामोसी ऊपर पहुचे। सायंकाल बीत जाने पर समुद्र पार कर राज्यको राजधानी पैरिस नगरीसे व्योमयानमे चढ़े थे। वे फरामीसी राज्यमें आये। उस अन्धकारमय रात्रि में वे मेघराज्यको भेद कर करीव ८७०० हाथ ऊपर पहुचे म्वर्गलोग निवासियोंको तरह कितने राज्य, राजधानी, नगर और विविध विषयोंको परीक्षा करते हुए ३॥ घण्टे तक नदी, प्रामादिका निरीक्षण करते हुए शून्य मार्ग से समस्त भाकाश-मार्गमें भ्रमण कर पैरिससे करीब २२ माईलको गत्रि भ्रमण करते रहे । रात्रि समाप्त होने पर उन्होंने एक दूरी पर मेरिमिल प्राममें उतरे। ऊपरकी वायु पृथिवी बार कुछ ऊपर जा कर सूर्योदय और उस मम्बन्धी की निकटवती वायुकी अपेक्षा शोतल है, यह बात पूव आश्चर्यजनक शोभाका निरीक्षण किया और फिर नीचे प्रमाणानुसार निश्चित होने पर भी अव प्र.क्ष अनुभूत उतर कर व अन्धकारमै आवृत हो गये । तात्पर्य यह, कि उस दिन उन्होंने सूर्यको तीन बार उदित और दो अस्त ___ इसके बाद, अन्यान्य विद्वानोंके अनुरोध करने पर वार होने हुए देखा था। इस यात्रामें वे लगभग २२० कोम गे-लूसाफ उसी वर्ष १५ सितम्बरको एक बार अकेले शून्यमार्गमें भ्रमण करने के बाद, दूसरे दिन सुबहको जमनी ही ऊपर चढ़ थे। उस बार वे १५३६० हाथ अर्थात् के अन्तःपाती नामो विलबर्ग नामक स्थानमें उतरे थे। लगभग दो कोस ऊंचे पहुंचे थे और वहांकी वायुकं. १७८३ ई में मोण्ट गलफियरके युद्ध के लिए पहले सम्बन्धमें उन्होंने शेत्य, उष्णत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि पहल बटन पर चढ़नकी व्यवस्था की गई थी। १७८६ अनेक विषयोंकी परीक्षा की थी। उनका कहना है, कि ईमें फगमामी गज्यमें गज्यविप्लव सम्बन्धी जो घोर वहांकी वायु इतनो शोतल है, कि उसमे हाथ-पैर अवश हो युद्ध हुआ था, उसमें साधारणतन्त्री-दलने व्योमयानमें जाते हैं और साथ ही इतनो हलको है, कि श्वास लेनेमें चढ़ कर ऊपरमै विपक्षियोंको गति-विधिका पय वेक्षण भी कष्ट मालूम होता है। यहां तक, कि उस परिशुष्क किया था। इस राज-विप्लवक कारण १७६४ ई०में वायुके सेवनसे उनका गला नीरस और खाद्यद्रव्य फिल उरम नामक स्थानमें अष्ट्रियाकी बनाके साथ गलेसे उतारनेमें अनुपयोगी हो गया था। वे फरासीमो सैनाध्यक्ष जोई न साहबका युद्ध हुआ था। १४३०७ और १४५२७ हाथ ऊंचेसे दो बोतल वायु भर उसमें के नल कुतेल माहव एक सामरिक कर्मचारोका लाये थे। उनको परीक्षा करने पर मालूम हुआ, कि साथ ले कर व्योमपान द्वारा ऊपर चढ़ थे, और इशारेम पृथिवीकी निकटवती वायुमें जो जो पदार्थ जिस जिस जान साहबको सब बात बतलाते जाते थे, जिमकं परिमाणसे मिश्रित हैं, उतने ऊपरकी वायुमें भी वे पदार्थ अनुसार चल कर जार्डन माहबने युद्धमें बिजय पाई था उसी परिमाणसे मिले हुए हैं। उक्त सामरिक कर्मचारीके साथ कर्नल कुतेल एक