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बोदा-बाधगया ( बुद्धगया)
बोदा (हिं० वि०) १ जिसको बुद्धि तोब न हो, मूर्ख । २ जो इस सुप्राचीन ग्रामके उत्तरमें हरिहरपुर, पश्चिमम
तत्पर बुद्धिका न हो। ३ सुम्त, मट्टर। ४ जो दृढ़ या मस्तिपुर, धोण्डोवा, भुलुया और तुरी नामक प्राम;
न हो, फुसफुम।
दक्षिणमें गमधुर तथा पूर्वमें लीलाजन नदी है। यह
बोदापन (हिं० पुः) १ बुद्धि की अतत्परता, अपका तेज न अक्षा० २४ ४१ ४उ० और देशा० ८५२४* पू०.
होना। २ मूखता, नासमझी।
के मध्य गया नगरसे कलकत्ते जानेके रास्तेसे २॥ कोस
बोध (सं० पु. ) भ्रम वा अज्ञानका अभाव, ज्ञान । २ और शेरघाटीके नये रास्तेसे लगभग ३॥ कोसकी दूरी
संतोष, धीरज ।
पर बसा है। बुद्धगयाके पार्श्वदेशमें ताराडिबुजुर्ग
बोधक ( सं० पु० ) १ ज्ञापक, ज्ञान करानेवाला । २शृङ्गार नामक ग्राम है। गजकीय राजस्व तालिकामें उक्त दोनों
रमके हावों से एक हाव । इममें किमी संकेत वा क्रिया ग्राम स्वतन्त्र नापसे लिखे गये हैं। यहां तथा इसके
द्वारा एक दुसरेको अपना मनागत भाव जताता है । पाव वत्तों कोलुग आदि गल्लीमें भी छोटे बड़े बहुतसे
(वि.) ३ बोधजनक, ज्ञान करानेवाला।
म्तृपों का अस्तित्व देखने में आता है।
वोधकर (सं० पु०) कगेतीति करः कृ-ट, बोधम्य प्रबोधस्य अधिकांश स्तूप बोधगयाके पूर्वा में अवस्थित है।
करः । निशान्तमें बोधकारक, जो किमोको मरे जगाया ग्रामके मध्यस्थित मुगृहत् स्तृप लगभग १५०० ४ १४००
करे । इसका पर्याय वैतालिक है।
फुट जमीन घेरे हुए हैं। बोधगया और ताराडीग्रामके
बोधगम्य ( सं० वि० । समझमें आने योग्य ।
बीचमे जो रास्ता मिला है, वही इस स्तूपको दो भागों में
बोधगया (बुद्धगया) · गया जिलेके अन्तर्गत सुप्रसिद्ध और बांटता है। इसका दाक्षिणांश उत्तगंशका एक तिहाई
सुप्राचीन हिन्दू तीर्थ, गयाधामके समीप एक गण्डग्राम। हिम्मा है । इस दक्षिणबण्ड के ऊपर ही भारतका अपूर्व
बहुत दिनोंसे यह स्थान बोन्द्रोंका एक प्रधानतम तीर्थक्षेत्र कीर्तिस्तम्भ बोधगयाका महाबोधि मन्दिर स्थापित
गिना जाता है। ईसा जन्मके पहले हो यहांका माहात्म्य है। उत्तरांशका परिमाण ५०४ १००० फुट
चारों ओर फैल गया था। बौद्धमम्राट अशोकके बनाये है। वो शताब्दीके प्रारम्भमें बुकानन्द हेमिल्टन
हुए स्तूप और महावाधि मन्दिरका ध्वंसावशेषसमूह इस- यह प्रदेश देखने आये थे। उस समय उन्होंने इस अंशको
का प्रधान साक्ष्य है। यहां संमारके अद्वितीय पुरुष : राजस्थान' ( गजधामाद ) न मम्मे उल्लेख किया है
शाक्यसिंहने । बुद्धदेव जो हिन्दूशास्त्राादमें भी अवतार और अभी तक यह स्थान 'गढ' नामसे प्रसिद्ध है।
माने गए हैं। पोधिवृक्षके नीचे समाधिस्थ हो कर
सिद्धिलाभ किया था। वह पोपलका वृक्ष आज भी ____* इसका संस्कृत नाम नैरचना है। बुद्धगयाके आध कोस
मौजूद है।
दक्षिणा मारा पहाड़के ममीप यह नदी मुहानेके माथ मिल कर
फल्गु नामसे प्रवाहित होती है।
- गया शब्दमें विस्तृत विवरणा देखो।
यहा तारादेवाका प्राचीन मन्दिर अवस्थित है, इसलिए यह • कपिलवस्तु-बुद्धका जन्मस्थान, बोधगया बुद्धका माधना ग्राम ताराडि कहलाता है । श्रम, बारायासी-उनके धर्मका प्रचारक्षेत्र और कुगी जहा उन्होंने Arch, Sur. Rept. vol. 1.11.11. निर्वायालाभ किया | समयानुसार मनु-यके मानमक्षेत्रसे कपिन माचारों आर खाई और दीवार देव कर इस स्थानको गढ़ वस्तु और कुशीके माहात्म्यका लोप हो गया है : किनु बुद्धगया और कहनमें काई अत्युक्ति नहीं । विशेष आलोचना करनेसे जान वाराणसीका अलौकिक माहात्म्य अब भी हिन्दूमात्रका पूजनीय पड़ता है, कि बौद्ध प्राधान्यके समय यहां एक सङ्घाराम था। है। पवित्र काशोधामकी बौद्ध-तीर्थक्षेत्रों में गिनती हाने पर भी कालक्रमम वहाँ दुर्गाकार में परिगात हुआ है । यही सुप्राचीन यहां विश्वेश्वर अन्नपूर्यादिकी मूर्ति प्रतिष्ठित रहनके कारगा यहांकी माराम महायाधि मागम नाममं प्रसिद्ध था। यह सुत्रहन् स्तूप हिन्दूप्रधानता ज्योंकी त्यों बनी है। काशी देखो। समनन क्षेत्रसे लगभग ५० मे १५ फुट ऊँचाई