पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५५६

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५५० बौद्धधर्म पुरुषके निकट जा कर सारा हाल कह सुनाया। इधर इस समितिकी कर्मप्रणाली निम्नलिखित रूपसे जिम सब अर्हतोको संवाद मिला, वे सव भी वहां पहुंचे। सम्पन्न हुई थी। रेबत प्रश्न पूछते और सर्व कामी प्रति कुछ समय तक तर्क वितर्क के बाद यह निश्चय हुआ, प्रश्नका शास्त्रसङ्गत उत्तर देते थे। जिस दशविध कार्यको. कि सोरेय्यवासो रेवतकी इस विषयमें सम्मति लेना ले कर प्रश्न उठा था, उनके प्रति प्रश्नमें ही वृजि भिक्षु ओं- आवश्यक है। रेवन, आगमन, धर्म, विनय प्रभृति सभी के विरुद्ध मीमांसा हुई। दशकर्म ही अवैध कह कर शास्त्रमें पारदशी थे । इधर रेवत योगवलमे स्थविरोंके इस स्थिर हुआ। मभिप्रायको जान कर इस विरोधसे दूर रहनेको इच्छासे किसो किसी प्रन्थमें ऐसा भी देखा जाता है, कि इस अपना स्थान छोड़ साङ्काश्य नामक स्थानको चल दिये। विचार पर सन्तुष्ट न हो कर अनेक भिक्षु ओं ने एक और भिक्षु गण जब उनकी खोजमें वहां पहुंचे, तब उन्होंने देखा सभा की जिसका नाम महासङ्गीति था। किन्तु कहां इस कि वे वहांसे कन्नोज गए हुए हैं । अनेक चेष्टा करनेके बाद सङ्गोतिका अधिवेशन हुआ अथवा कौन इसके नेता थे, सहजाति नामक स्थानमें वे उनसे मिले । उल्लिखित दशकमै इसका प्रकृत विवरण मिलना असम्भव है। नीतिसंगत हैं या नहीं ऐसा पूछने पर उन्होंने उत्तर दिया, वैशालीको उक्त सङ्गोतिके सम्बन्धमें और भी अनेक "यह अवैध है।" इस पर यशाने उनसे अनुरोध किया, प्रकारके विवरण देखे जाते हैं। किस समय इसकी कि इस दुनीतिका सर्वसाधारणमें प्रचार होने के पहले बैठक हुई इसका पता लगाना टेढ़ी खीर है। आधुनिक ही इसका निवारण करना उचित है। पण्डितगण अनेक गवेषणा तथा आलोचना करके भी इधर वृजि भिक्ष गण रेवतको हस्तगत करनेके लिए इसका प्रकृत तथ्य निर्धारण न कर सके। एक जगह सहजाति गए । उनके शिष्य उत्सरको उत्कोच और रेवत. देखा जाता है, कि बुद्धदेवने भविष्यद्वाणी कही थी,- antr को नाना प्रकारके उपहार द्वारा वशीभूत करनेकी बहुत "मेरे परिनिर्वाणके चार मास बाद सङ्घका प्रथम और चेष्टा करने पर भी भिक्ष गण कृतकार्य न हो सके। ११८ वर्ष के बाद बौद्धधर्म प्रचारके लिए द्वितीय सम्मि- ___मीमांसाके लिये जब सभी इकट्ठे हुए, तब रेवतने लन होगा। उस समय धर्माशोक नामक एक महा धार्मिक प्रस्ताव किया, कि जहांसे यह प्रश्न उठा है, वहीं पर इसकी तथा प्रतापशाली नरपति जम्बूद्वीपमें राज्य करेंगे।' मीमांसा करना उचित है । सबोंने इस प्रस्तावका अनुमोदन किसी किसी विवरणसे पता चलता है, कि स्थविर किया और भिक्षु गण वैशाली में इकट्ठे हुए। उस समय । यशाने जिस समय यह आन्दोलन किया था, उस समय उक्त नगरी में एक प्रसिद्ध बूढ़े स्थविर रहते थे जिनका कालाशोक नामक एक व्यक्ति राजा थे। वे कालाशोक नाम था 'सब्बकामिन् (सर्वकामी )। इन्हों ने १२० १ १२० ! थे या धर्माशोक यह ले कर अनेक वादानुवाद हो गया वर्षके पूर्व उपसम्पदा प्राप्त की थी। रेवत और सम्भूतने ! है, किन्तु स्थिर मीमांसा कुछ भी न हुई। जब उनसे यह बात कही तब वे भी उनके प्रस्तावमे सह- शालीकी सहीतिक सम्बन्धमें जो सब विवरण या मत हुए। । मतामत हैं, उन सबोंकी पर्यालोचना करनेसे यही समझा जव महासभाका अधिवेशन हुआ, तब कई कारणोंसे प्रश्नको मीमांसा हल न हुई । वादमें रेवतने प्रस्ताव किया, जाता है: वैशालीमें सङ्घका एक सम्मिलन हुआ जिसमें 'विनय के विषयमें आलोचना हुई थी। महासङ्गीति या कि आठ श्रमणोंके ऊपर इस प्रश्नकी मीमांसाका भार सौंपा जाय और उन आठोंमेंसे चार पूर्वदेशीय और चार महासडिकसे बहुत पहले यह सम्मिलन हुआ था और इसके साथ महासडिकोका कोई संश्रय न था। बहुतों- पश्चिमदेशीय हो। तदनुसार पूर्वदेशसे सर्वकामी, साढ़ह, । के मनसे बुद्धदेवकी निर्वाण-प्राप्तिके एक सौ दश वर्ष खुजसोभित और बासभगामिक तथा पश्चिमसे रेवत सम्भूत, यशा और सुमन ये ही आठ मनुष्य निर्वाचित बाद इस सङ्गीतिका अधिवेशन हुआ। हुये। बालिकाराम नामक निर्जन स्थानमें उन लोगोंकी पाटलिपुत्रमें ३य सङ्गीति । इस समितिको बैठक हुई। पाटलिपुत्रकी सङ्गीतिमें सब श्रेणीके बौद्ध भिक्षु मोका