पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५८९

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वास्तविक असत्य होने पर भी सत्यरूपमें प्रतिभासित देवदेव, पद्मगर्भ, गुणसागर, वेदगर्भ, बहुरेतस्, स्वभू, होते हैं । अथवा तेजमें जलका भम इत्यादि जैसे वस्तुतः सन्ध्याराम, सुधावार्य, कृपात, खसपण; लोकनाथ, मिथ्या है, उसी प्रकार जिनके अतिरिक्त सत्व, रज और महावीर्य, सरोजो मझुप्राण, नाभिजन्मन्, बहुरूप, जटा. तमः इत तीनों गुणोंकी सृष्टि अलोक है तथा अपने तेज: घर, सनत्शतधृति, काज, प्रभु, चिन्तामणि, पद्मपाणि, प्रभावसे जिनमें किसी प्रकार उपाधि सम्बन्ध नहीं है, पराणग, अष्टकणं, हंसरथ, सर्वकत्तो, चतुमुख (शब्दरल) उस सत्य-स्वरूप परब्रह्मको नमस्कार है। 'ब्रहम' सम्बन्धी : क, ( एकाक्षरकोष ) आ, शतपत्रनिवास, स्वायम्भुव मनु अन्यान्य विवरण "वदांत दर्शन" शब्दमें देखो। पिता, ( कविकल्प०)म, (प्रणवव्याख्या) ब्रह्मणैवर्त पुराणमे सगुण ब्रह्मके नौ प्रकार रूपका ___ब्रह्माको उत्पत्तिका विवरण प्रायः सभी पुराणों में उल्लेख है,- आलोचित हुआ है। अत्यन्त संक्षेपमें यहां थोड़ा-सा "योगिनो यं वेदन्त्येवं ज्योतीरूपं सनातनम् । विवेचन किया जाता है। मनुस्मृतिमें लिखा है- जव ज्योतिरभ्यंतरे नित्य-रूपं भक्ता वदन्ति यम् ॥ कि यह परिदृश्यमान् जगत् एकमात्र अन्धकारावृत और वेदा वदन्ति सत्यं यं नित्यमाद्य विचक्षणाः । अप्रत्यक्ष था, तब अध्यक्त स्वयम्भू ब्रह्मने अपने शरीरसे यं वदति सुराः सर्वे परं बच्छामयं प्रभुम् । विविध प्रजा-सृष्टिकी इच्छा कर सबसे पहले ध्यानयोगसे सिद्धद्रा मुनयः सर्वे सर्वरूपं वदति यम् ॥ जलको सृष्टि को । पश्चात् उम जलमें बीज डाला, और यमनिर्वचनीयञ्च योगीन्द्रः शङ्करो वदेत् ।। उस बोजसे एक अण्ड उत्पन्न हुआ। उस अएडसे वयं धाता च प्रवदेत् कारणानाञ्च कारणं । स्वयं ब्रह्माने पितामहके रूपमें जन्मग्रहण किया। भर शेषां बदेदनन्तं यं नवधारूपमीश्वरम ॥ अर्थात् परमात्मासे उत्पन्न होनेसे जलका माम नारा है, (बहावै०पु० श्रीकृष्णजन्मग्वड, १२८ अ०) ब्रह्मरूपमें अवस्थित परमात्माका सर्वप्रथम अयन वा (१) ज्योतीरूप सनातन, (२) अभ्यन्तरज्योति आश्रय होनेसे ब्रह्माको नारायण कहते हैं तथा आदि नित्यरूप, ( ३ ) सत्यस्वरूप, (४) नित्य और आदिपुरुष, कारण, अव्यक्त और नित्य पुरुषसे उत्पन्न होनेसे उन्हें (५) स्वच्छामय प्रभु, (६) सर्वरूप, (७) अनि ब्रह्मा कहा गया है। ब्रह्माने उस अण्डमें ब्राह्मानके र्वचनीय, ८) कारणका कारण और (६) अनन्त । संवत्सर काल वास करके अन्तमें उसे दो भागोंमें उल्लिखित नौ प्रकारसे ब्रह्मका नाम निर्देश हुआ करता विभक्त कर दिया। उसके अद्ध खण्डमें स्वर्गादि लोक और अधोखण्डमें पृथिव्यादि, तथा मध्य भागमें आकाश, · गरुड़ पुराणके ४४वे अध्याय सगुण और निगुण अष्ट दिशाएं और समुद्र निर्माण किया। पोछे ब्रह्माने ब्रह्मका ध्यान लिखा हुआ है ; बाहुल्यके भयसे यहां इस जगत् और विविध प्रजाकी सृष्टि को । सृष्टि देखा। विस्तृत नहीं लिखा जा सका। (पु०) ५ सृष्टिकर्ता देवता-विशेष "वृहति प्रजायः।" जिन्होंने प्रजाको सृष्टि को है, घे ही ब्रह्मा हैं। पर्याय

  • सोऽभिध्याय शरीरात् स्वात्सिसूतर्विविधाः प्रजाः।

मात्मभू, सुरज्य ष्ठ, परमेष्ठी, पितामह, हिरण्यगर्भ, लोकेश, अपएव ससर्जादौ तासु वीजमवासृजत् ॥ स्वयंभु, चतुरानन, धाता, अब्जयोनि, रोहिण, विरिञ्चि, तदडमभवद्ध में सहस्त्रांशुसमप्रभम् । कमलासन, स्रष्ट्र, प्रजापति, वेधस्, विधाता, विश्वसृज, तस्मिन् यज्ञं स्वयं बहमा सर्वलोकपितामहः॥ विधि, (अमर) नाभिजन्म, अण्डज पूर्वनिधन कमलो. आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नरसूनवः । ता यदस्यायनं पूर्व तेन नारायणः स्मृतः॥ अव, सदानन्द रजोमूर्ति, सत्यक, हंसवाहन, (किसी किसी अमरकोषमें ये पर्याय भी देखने में आते हैं ) द्रघण, विरिञ्चि, यत्तत् कारणमव्यक्त नित्यं सदसदात्मकम् । स्वयम्भू, पद्मयोनि, पद्मासन, विश्वसृज, विधि, (भरत ) सद्विसृष्टः स पुरुषो मोके ब्रह्मेति कीर्त्यते ॥