पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६५७

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भकुड़ाना-भक्त भकुड़ाना (हिं० कि० ) १ लोहेके गजसे तोपके मुंहका भक्तिका (सं० स्त्री०) झिल्ली, झींगुर।। भीतरी भाग साफ करना । २ लोहेके गजसे तोपके मुहमें भक्त (सक्ली०) भज्यते स्मेति भज सेवायां कर्मणि क्त । बत्ती भरना। अन्न, भक्तके अपभ्रंशसे “भात" शब्द हुआ है। भाष- भकुवा (हि० वि० ) भकुआ देखो। प्रकाशमें लिखा है, कि अन्न, अन्ध, कूर, मोदन, भिस्सा भकूट (सं० क्ली०) भस्य कूटम् । एक प्रकारको राशियोंका और. दीदिवि, पे सब भक्तके पर्याय शब्द हैं । भक्त (भात) समूह जो विवाह गणनामें शुभ मानी जाती है। प्रस्तुत करनेको विधि यों है: चावलको अच्छी तरह "खेटारित्वं नाशयेत् सत् भकूटम् ।" (मुहूर्त्तचिंता.) धो कर उससे पांच गुणा खोलते हुए जलमें पाक भकोसना (हिं० कि०) १ किसी चीजको बिना अच्छी तरह करे और जब उत्तमरूपसे सिद्ध हो जाय, तब उसे उतार कुचले हुए जल्दी-जल्दी खाना, निगलना। २ खाना।। कर मांड़ फेंक दे। इसके गुण-अग्निवर्धक, तृप्ति- भक्कर-मध्यभारतका एक देशो राज्य । चामभक्कर देखो। ! जनक, रुचिकर, और हलका। बिना धोये हुए चावलका भक्कर-१ पञ्जाबके मियानवाली जिलेका उपविभाग । भात तथा जिसका मांड अच्छी तरह नहीं निकाला इसमें भक्कर और ल्याह नामक दो तहसोल लगती है। गया हो वह शीतवीर्य, गुरु ( भारी ), अरुचिकर तथा २ उक्त विभागको एक तहसील । यह अक्षा० ३१.१०' कफवर्धक है। (भावप्रकाश) से ३२२२ उ० तथा देशा०७०४७ से ७२ पू०के मध्य वैष्णव-मतमें भात विष्णुको नैवेद्य लगा कर खाना विस्तृत है। भूपरिमाण ३१३४ वर्गमील और जनसंख्या! चाहिये। यदि कोई भूल कर बिना नैवेद्य लगाये भोजन सवा लाखसे ऊपर है। इसमें भक्कर नामक १ शहर हर करे, तो उसके लिये वह अन्न विष्ठा तुल्य हो जाता है। और १९६ प्राम लगते हैं। जो प्रतिदिन भक्तिपूर्वक विष्णुको नैवेद्य लगा कर भोजन ____३ उक्त तहसीलका प्रधान नगर और विचार-सदर । करता है वह भगवानका दासत्व लाभ करता है। यह अक्षा० ३१ ३७ उ० तथा देशा० ७७४ पू० सिन्धके बाएँ किनारे अवस्थित है । जनसंख्या ___ अन्नदानके समान और दान नहीं है। अन्नदानमें साढ़े पांच हजारके करीब है । नगरका पश्चिमांश सब प्रकारका पुण्य होता है। निम्नलिखित व्यक्तियोंके उर्वर और शस्यशाली है जो प्रतिवर्ष बाढसे बह अन्न वजनीय है :- जाता है । पूर्वभाग तृणगुल्मादिविहीन बालुकामय ___राजाका अन्न, नाचनेवालेका अग्न, चुराया हुआ अन्न, मरुभूमि सद्श है । पूर्वतन अफगान राजाओंके कुम्हार, भडुआ, वेश्या तथा नपुंसकका अन्न नहीं खाना अधिकारकालमें यहांसे आघ्रादि काबुल भेजे जाते थे। चाहिये। तेली, रजक, तस्कर, ध्वजी, गान्धर्व अर्थात् ६२४ हिजरीमें सुलतान समसुद्दीनने भक्कर दुर्गमें घेरा | नाचनेवाले, लोहार, जुलाहा, कलाल, चित्रकार, वार्धषिक, डाला और उसे जीत लिया। भक्करपति मालिक नासि पतित, वर्णसंकर, छात्रिक, अभिशप्त, सोनार, शैलूष, कद्दीनने यह संवाद पाते ही जलमें डूब कर आत्म व्याधित, आतुर, चिकित्सक, पुश्चलो, दाम्भिक, चोर, विसर्जन किया। १५वीं शताब्दीके शेषभागमें किसी नास्तिक, देवतानिन्दक, मदिरा बेचनेवाला, श्वपाक, बलूच सरदारका अनुगमनकारी औपनिवेशिक दल यहां भार्याजित, अर्थात् स्त्रैण, शस्त्रजीवी, क्लीव, मत्त, उन्मत्त, आ कर बस गया। उक्त सरदारके वंशधर तभीसे यहां भीत, रुदित, ब्रह्मद्वेषी और पापरुचि आदिका अन्न का शासन करते रहे । आखिर अहमदशाह दुर्रानीने इस | तथा श्राद्धान्न, अशाचाम्न, शौएडान्नादि भोजन नहीं स्थानको जीत कर किसी व्यक्तिको दान कर दिया । उस करना चाहिये । मनुष्य जो दुष्कर्म करता है वह अन्नमें व्यक्तिने राजशक्तिकी सहायतासे बलूच शासनकर्ताको संक्रामित होता है, इसलिये वह अन्न जो मनुष्य खाता है राज्यसे निकाल कर अपनी गोटी जमाई । शहरमें एक वह मानो पाप भोजन करता है। अतः पापीका अन्न अस्पताल और म्युनिसिपल वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल है। निषिद्ध है।