पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६७५

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६६६ भक्ति नामसङ्कीर्तनं श्रीमन्मथुरामगडले स्थितिः ।। भक्तके हृदयमें इस भावभक्तिका अंकुर उत्पन्न वैधीभक्तिविषयं कैश्चिन्मर्यादामार्ग उच्यते ।" होनेसे..... इस वैधी भक्तिको कोई कोई मर्यादा मार्ग कहते हैं। क्षान्तिरव्यर्थकालत्वं विरक्तिमानशून्यता। , रागानुगाभक्ति,--ब्रजवासियों में प्रकाश्यरूपसे विराज आशावन्धः समुतकण्ठा नामगाने सदारचिः। मान जो भक्ति हैं, उसे रागात्मिका भक्ति कहते हैं। इस आसक्तिस्तद्गुणाख्याने प्रीतिस्तद्वसतिस्थले। रागात्मिका भक्तिकी अनुगता जो भक्ति है उसका नाम इत्यादयोऽनुभावाः स्युर्जातभाव अंकुरे जने ॥" रागानुगा भक्ति है । यह रागानुगा भक्ति विवेककेनिमित्त : प्रेमभक्ति--- जिससे समीचीनरूपमें चित्र निर्मल है। पहले रागात्मिका भक्तिका वर्णन किया जाता है। : हुआ है और जो अत्यन्त ममतापूर्ण है, उस भावको "हाटे स्थारसिकीरागः परमाविष्टता भवेत् । पण्डितगण प्रेम बतलाते हैं। तन्मयी या भवेत् भक्तिः सात्र रागात्मकोच्यते ।" साधकोंका प्रभक्ति के प्रादर्भावके विषयमें भक्ति अभिलषित वस्तुको स्वाभाविको आवेशपराकाष्टा- रमामुतासन्धुमें इस प्रकार लिखा है,- का नाम राग है। यहो रागमयी भनि गागात्मिका भक्ति माद। श्रद्धा नतः माधु-मङ्गोऽथ भजनक्रिया। कहलाती है। तताऽनर्थनितिः स्यानतो निष्टारुचिस्ततः ।। वह रागात्मिका भक्ति कामरूपा और सम्बन्ध रूपाके स्थामक्तिमतता भावसतः प्रेमाभ्युदञ्चति । भेदमे दो प्रकारकी है। मानकानामयं प्रम्नः प्रादुर्भाव भवतकमः । जो भक्ति सम्भोग तृष्णाको प्रेममय रूपमें रिणत विशेष विवरगा प्रेम शब्दमें देखो। करती है, उसका नाम कामरूपा भक्ति है ; कारण, इस ऊपरम ईश्वरानुग परानुरक्तिका ही भक्ति कहा कामरूपा भक्तिमें केवल कृष्णस्सुम्बके निमित्त उद्यम देखनेमे गया है। आराध्यदेवताके प्रति आन्तरिक अनुराग और आता है। उनकी भजनमाधनरूप सेवादिमें आन्तरिक प्रीति ही श्रीकृष्णमें पितृत्वादि अभिमान हो अथात् में कृष्णका भक्तिका लक्षण है। श्रवणादि नौ प्रकारको भक्तिके पिता हूं, मैं उनकी माता हूं, मैं उनका भाई हूं, इत्यादि एक एक अङ्गका रसास्वादन तथा गुरुपादाश्रयादि चौसठ अभिमानका नाम सम्बन्धरूपा भक्ति है। प्रकारके भक्त्यङ्गका पालन करना भी भक्तका एकान्त रागात्मिका भक्ति दो प्रकारको होने के कारण गगा- कर्तव्य है। इसके अलावा कृष्णार्थ अखिलनेटा सम- नुगा भक्ति भी कामानुगा और सम्बन्धानुगाके भेदसे दो : सदा र्पण, मव विषयों में उनका कृपावलोकन, जन्म, और प्रकारको है। यात्रादिका महोत्सव-पालन, नियम, पूर्वक कार्तिकेय केवल रागानुगाभक्तिनिष्ट व्रजवासियोंकी भकि- व्रतादि समापन, साधुमङ्ग, भागवत आस्वादन, मथुरा- प्राप्तिके लिए जिनका चित्त लुब्ध होता है, उन्हों को मण्डलमें वास, नामसारीन, श्रद्धा और प्रीतिके साथ भक्तिको काम नुगा या सम्बन्धानुगा कहते हैं। कामरूपा भक्तिकी अनुगामिनी जो तृष्णा है, उसका श्रीमूत्तिसेवन प्रभृतिपञ्च भक्ताङ्गकी अशेष महिमा कही नाम कामानुगाभक्ति है। यह सम्भोगेच्छामयी और गई है। उसी भावेच्छामयोके भेदसे दो प्रकारको है। भक्तकवि नाभाजी मूत्तिमती भक्ति को मिली कल्पना अपने में पितृत्व, मातृत्व तथा भ्रातृत्व समझनेको : कर गए हैं, प्रियदासको टोकासे उसका आभास मिः.ता पण्डितोंने सम्बन्धानुगा भक्ति बतलाया है। है। उस देवोप्रतिमाके श्रीअङ्गमें श्रद्धा, दया, निष्टा, मन, __शुद्धसत्त्वविशेषस्वरूप प्रेमरूप सूर्यको किरणसादृश्य-: हरिमेवा, साधुग्मेवा, स्मरण और अनुरागादिके लक्षण शाली और भगवत्प्राप्यभिलाष, उनके आनुकल्याभिलाप दिखाई पड़ते हैं * । इसके द्वारा केवल भक्तिका ही तथा सौहार्दाभिलाष द्वारा चित्तको स्निग्धता सम्पादक

  • "श्रद्धा ही फुलेल ओ उबटना शवण कथा

जो भक्ति है उसका नाम भावभक्ति है। मल अभिमान अङ्ग अङ्गनि छुटाइये । Vol. AV, 168