भक्तितराग-भक्ष्य
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अर्थात् १४६३ शकमें गोकुलमें रह कर इस भक्तिरसामत- भक्षणीय (सं० वि० ) भक्ष अनीयर् । १ भक्ष्य द्रव्य ।२
सिन्धुको उत्तम रूपसे उङ्कित किया।
भक्षण योग्य, खाने लायक । भक्षणीय द्रष्य किस जगह
भक्तिराग (सं० पु०) भक्तिका पूर्वानुराग । रखना चाहिये, पाकराजेश्वरमें उसका विषय इस प्रकार
भक्तिल (सं० पु. ) भक्त भङ्गों लातीति ला-क । १ साधु-' लिखा है। सामने भोजन पाल, उसके मध्य मागमें अन्न,
घोटक, उत्तम घोड़ा ( त्रि०) २ भक्तिदाता।
दाल तरकारी मछली मांस दाहिनी ओर, प्रलेहादि द्रष्य,
भक्तिवाद ( सं० पु०) भक्तिविषयिणी कथा। पाणीय, पानक और चोष्य आदि वाई' ओर तथा इक्षु-
भक्तिसूत्र ( स० क्ली० ) वैष्णव सम्प्रदायका एक सूत्र- : विकार, पक्कान्न, पायस और दधि सामने रखना
प्रन्थ। यह प्रथ शाण्डिल्य मुनिके नामसे प्रख्यात है। चाहिये । इस प्रकार भक्षणीय द्रष्य रख कर भोजन करना
इसमें भक्तिका वर्णन है।
उचित है। ( पाकराजेश्वर)
भक्तोत्तरीय (स० क्लो०) औषधविशेष । इसकी प्रस्तुत भक्षपना (सं० स्त्री० ) भक्ष भक्षणीयं पत्रमस्याः। नाग-
प्रणाली-अभ्र, गंधक, पीपल, पञ्चलवण, यवक्षार, साचि- बल्ली ।
क्षार, सोहागा, त्रिफला, हरिताल, मैनसिला, पारद, भक्षयित (सं० वि०) भक्षि-तृण । भक्षणकारी, खानेवाला।
बनयमानी, यमानी, सोया, जीरा, हिंगु, मेथी, चितामूल, भक्षयितथ्य (सं० त्रि०) भक्ष-णिच् तथ्य । भक्षणीय,
चइ, वच, दन्तीमूल, निसोथ, मोथा, सिलाजित, लौह, खाद्योपयोगी।
रसाञ्जन, निम्ववीज, पटोलपत्र और विद्धड़क प्रत्येक दो भक्षालि ( सं० पु. ) भक्षाणामालियन । १ देशभेद । ततो
दो तोला और शोधित धतूरा १००, इन्हें चूर्ण करके भवार्थे बुङ् । भक्षालिक तद्देशभव ।
भोजन करनेके बाद सेवन करे । इससे अग्निवृद्धि होती : भक्षित (सं० त्रि०) खाया हुआ।
तथा श्लीपद और अन्नधुद्धि आदि नाना रोग प्रशमित भक्षित (सं० वि० ) भक्ष-तृच् । भक्षक, खानेवाला।
होते हैं ( भैपज्यरत्ना०)
भक्षितष्य (सं० क्ली०) भक्ष-तव्य । भक्ष्य, खानेका पदार्थ ।
भक्तोद्देशक (सं० पु०) बौद्ध-सघारामादिमें नियुक्त भक्षिन् (सं० दि०) भक्ष-अस्त्यर्थे इनि । भक्षणकारी,
फर्मचारिविशेष । ये लोग इस बातकी जांच करते हैं, कि : खानेवाला ।
आज कौन क्या भोजन करेगा।
| भक्षिवस ( स० वि० ) भक्ष-वसु वेदे न द्वित्वं । भक्षण,
भक्तोपसाधक (सं० पु० ) १ पाचक, रसोइया ।२ परि- खाना। वैदिक प्रयोगमें ही यह पद सिद्ध होता है,
वेशक ।
- लौकिक प्रयोगमें 'विभक्षिवस्' पद होता है।
भक्ष (सं० पु० ) भक्ष भावे कर्मणि वा घश् । १ अशन,
(अथर्ग० ६१७३३)
खानेका काम। २ भक्षणीय वस्तु, खानेका पदार्थ । भक्ष्य ( संवि०) भक्षते इति भक्ष ण्यत्। भक्षितव्य,
भक्षक (सं० वि०) भक्षयतीति भक्ष ( गवुल्तृचौ । पा
खानेके योग्य । 'प्रतिपदि कुम्मायड न भदय दशम्या कलम्वी
३।१।१३३) १ खादक, खानेवाला । पर्यायः-घस्मर, अमर ।
न भक्ष्या' (स्मृतिसर्वस्व )
भक्षकार (सं० पु० ) भक्षं करोति कृ-अन् । भक्ष्यपिष्टकोप-
सुश्रुतमें भक्ष्यद्रष्य और उसके गुणादिका उल्लेख
जीवो, हलवाई।
भक्षटक (सं० पु० ) भक्ष-अटन, ततः संज्ञायां कन् । क्षुद्र-
है। रस, वीर्य और विपाकके अनुसार भक्ष्य द्रव्यों के
गोक्षरक, छोटा गोखरू।
गुणादि नीचे लिखे जाते हैं।
भक्षण (सं० क्ली०) मक्ष भावे ल्युट् । किसी वस्तुको दांतो-
क्षीरजात समस्त भक्ष्यद्रव्य-बलकर, शुक्रवृद्धि-
से काट कर खाना, भोजन करना । पर्चाय-म्याद, स्वदन, कर, मुखप्रिय, सुगन्धो, अग्निकर और पित्तनाशक ।
खादन, अशन, निघस, बलभन, अभ्यवहार, जन्धि, इनमेंसे घृतपक्क पिष्टकादि बलकर, मुखप्रिय, कफकर,
जक्षण, लेह, प्रत्यवसान, घसि, आहार, श्मान, अव - वातपित्तनाशक, शुक्रवर्द्धक, गुरुपाक और रक्त मांस-
ज्वान, विष्वाण, भोजन, जेमन, अदन ।
बर्द्धक है।
Vol, xY 169
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६७९
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