भट्ट-भट्टवीजक
सूर। ६ भाट । ७ ब्राह्मणोंकी एक उपाधि । इस भट्टनरायण-महाराज आदिशूर द्वारा वङ्गमें लाये गये पांच
के धारण करनेवाले दक्षिण भारत, मालव, आदि कई कन्नौजी ब्राह्मणों में से एक । इनके पिताका नाम क्षितीश
प्रान्तों में पाये जाते हैं। ८ महाराष्ट्र ब्राह्मणोंकी एक था। ये शाण्डिल्य गोत्रीय थे। आदिशूरके लड़के भूपूरके
उपाधि । इसके धारण करनेवाले दक्षिण भारत, मालव साथ राढ़देशमें आ कर ये सब वस गये। तभीसे उनकी
आदि कई प्रान्तों में पाये जाते हैं। महाराष्ट्र ब्राह्मण । सन्तान राढीय संज्ञासे भूपित हुई थी। राजा क्षितिरने
१० तुताताभिध मीमांसक भेद। इसका मत मीमांसा उनके वराह, वटु, राम, नान, निपो, गुनि, गुण, गूढ़ विक,
दर्शनमें लिखा गया है। मीमांसा देखो।
गुण्ठ, निनो, मधु, देवा, सोम, काम और दोन नामक
भट्ट-१ मोक्षपद मीमांसाके प्रणेता। आलङ्कारिक, अल-! सोलह पुत्रोंको ६ प्रामोंका अधिकार प्रदान किया । ये सब
ङ्कार सर्वस्वमें उनका नामोल्लेख है। ३ संस्कृतज्ञ और पुत्र वर्तमान १६ ब्राह्मणवंशके आदिपुरुष हैं । उक्त सोलह
वेदपारग ब्राह्मणोंकी उपाधि ।
पृथक पृथक ग्राममे बस जाने के कारण उसी प्रामके नाम
भट्ट-सुमित्राद्वोपको मान्देलिङ्ग उपत्यकावासी जातिविशेष से पुकारे जाने लगे। यथा.--- बराह-वाडुवी, राम-गड़-
इस जातिके लोग जिस भाषामें बोलते हैं. वह मलय गडी, निपो-केशरकोणी, नान--कुसुमकुली, बाटु -
वासी भाषासे भिन्न है। किन्तु निकटवत्तों स्थानोंकी पारिहाल, गुञि - कुलभी, गुण्ठ--दीर्घाङ्गी, गुण---
भाषा इसके साथ बहुत कुछ मिलती जुलतो है। लिपि, घोषालो, विकनन - वटव्याल (बडाल, ) गूढ---मास-
द्वारा भाषाको व्यक्त करनेके लिये इन्होंने अपनी उपयोगी चटक, निनो वसुयाड़ी, मधु · कड़ियाल, देव सेऊ,
एक वणमालाकी सृष्टि की है। भारतीय द्वीपपुञ्जस्थ इम' सोम--- वोकट्टाल, दीन-- कुशि (कुशारी) और काम---
असभ्य जातिके मध्य अक्षरमालाका आविष्कार और मिकराड़ी।
भाषातत्त्वका उज्वल आलोक प्रसारित होने पर भी नर : २ बेणी- संहार नामक नाटकके प्रणेता । ३ रघुनाथ
मांस भोजनरूप जघन्यवृत्तिने इनके हृदयको बहुत दिनों- दीक्षित । उन्होंने १६८६ विक्रमशक में अपेक्षित-व्याख्यानम्'
से कलुषित कर रखा है । ये लोग व्यभिचार और दोपहर नामक उत्तरराम चरितकी एक टोका लिखी है। ४
रातको लूट पाट मचाते हैं, रणमें बन्दी, जात्यन्तरमें दार । प्रयोगरत्नके प्रणेता, श्रीभट्टरामेश्वर सूरिके पुत्र । वारा-
परिग्रहकारी हैं अथवा विश्वासघातकता पूर्वक अन्य ग्राम, णसीधाममें रह कर उन्होंने इस ग्रन्थका सम्पादन किया।
गृह वा मनुष्यको आक्रमण और प्रामादि दाहन प्रभृति ५ एक कश्मीरो पण्डित, स्तव चिन्तामणि विवृति
दोष-दुष्ट व्यक्तिको ये लोग मार कर खा जाते हैं ।* भूत- नामक एक ग्रन्थके रचियता । ये महामहेश्वरकी उपाधिसे
योनि पर इनका विश्वास नहीं है।
भूषित थे।
भट्टकेदार---वृत्तरत्नाकरके प्रणेता।
भट्टप्रयाग (सं० पु०) गङ्गा और यमुनाका सङ्गम-
भट्टनायक---एक आलङ्कारिक । मल्लिनाथने इनका नामो स्थान।
ल्लेख किया है।
भट्टबलभद्र (0 पु०) ब्रह्मसिद्धान्तके एक टीकाकार ।
भट्टवीजक ( सं० पु० ) एक कवि । शाङ्गधर पद्धतिमें इन-
- १२६० ई में मार्कोपोलेने ओर १८२० ई०में सर टामफोर्ड | का उल्लेख है।
रेफलसने अपने भ्रमणवृत्तान्तमें तथा मार्सडेन साहयने अपने सुमात्रा-इतिवृत्तमें इस वीभत्स व्यापारका उल्लेख किया है। आज भी नरमांस खाते हैं। किन्तु जो ओलन्दाजके साथ मिल १८६५ ई०में अमेरिकावासी भ्रमणकारी प्रोफेसर विकोमर जब कर रहने लगे थे; उन्होंने इस निकृष्ट वृत्तिको बिलकुल छोड़ दिया सुमात्रा देखने आये थे, तब उन्हें इस भट्टजातिके नरमांस सेवनका । है । सिपिरोकके राजाने पेदुमके ओलन्दाज शासनकर्तासे विषय मालूम हुआ था। उन्होंने लिखा है, कि ओलन्दाजोंक कहा था, कि उन्होंने प्रायः ४० बार नरमास भक्षण किया मान्देझिंग उपत्यका जीतने पर जो पर्वतगुहामें छिप रहे थे, वे है और उसका स्वाद सभी भक्षणीय द्रव्योंकी अपेक्षा उत्कृष्ट है।