पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७१६
भद्रपाण-भद्रबाहुस्त्रामी

भद्रपाणि---एक प्राचीन राजा। कश्यपमुनिके गोलसम्भूत सिवा इनके रचे हुए जातकाम्भोनिधि, भद्रबाहुसंहिता और महालक्ष्मीपाद पद्मसेवक ऋतुपर्णराजवंशावतंस और नर्मदासुन्दरीकथा नामक कई अन्योंमें जैनधर्मका रुचिरके एक पुत्रका नाम। माहात्म्य बतलाया गया है। खरतर और तपोगच्छकी भद्रपाद (सं० वि०) भंद्रपदासु जातः अण, उत्तरपदवृद्धिः। पदावलिमें इनका जीवन-काल दिया गया. है । ये भद्रपदानक्षत्रजात, पूर्वभाद्रपद और उत्तर-भाद्रपाद नक्षत्र- . प्राचीनगोत्रसम्भूत थे । ४५ वर्ण गृहवासमें रह कर जात। इन्होंने उपसर्गहरस्तोत्र, कल्पसूत, शत्रुञ्जयकल्प और १० भद्रपाल (स० पु० ) बोधिसत्त्वभेद। नियुक्ति ग्रंथ प्रणयन किये और १७ वर्ष ब्रह्मचारी रहे। भद्रपीठ ( स० पु० क्ली० ) भद्रार्थ पीठः। १ वह सिंहा. उसके बाद १४ वर्ष तक योगप्रधान-रूपमें अवस्थिति सन जिस पर राजाओं या देवताओंका अभिषेक होता कर वीर नि० सं० १७० में ७६ वर्षको अवस्थामें इनका है। २ आसन जिस पर बैठा जाय। शरीगन्त हुआ। जैनधर्म देखा। भद्रपीठ-एक हिन्दू राजा। धर्मधोषकगणि-कृत ऋषिमण्डलप्रकरण नामक भद्रपुर ( स० क्ली०) प्राचीन नगरभेद। अरिएनेमिक : श्व जैन ग्रन्थमें लिखा है कि, दाक्षिणात्य के प्रतिष्टान- पुत्र मत्स्यने इस नगरको जीता था। नगरमें * भद्रबाहु और बराह नाम के दो भ्राता राज्य (जैन हरिवश १७३०) करते थे। यशोभद्र नामक एक जैनाचार्यका धर्मोपदेश भद्रबचा (स. स्त्री० ) इन्द्रजौ। सुन कर दोनों भाइयोंने जिन-दीक्षा ले ली। भद्रबाहुके भद्रबन ( स० पु०) मथुराके पासका एक वन । पाण्डित्य पर प्रसन्न हो कर गुरु यशोभद्र ने उन्हें सूरि भद्रबन्धु-एक बौद्ध भिक्षु । इन्होंने अजण्टा गुहामन्दिरस्थ प्रदान किया। इसो समय भद्रबाहुने पूर्ण-कथित दस सौगत-गृहका निर्माणकार्य शेष किया था। नियुक्ति और भद्रवाहवोसंहिताकी रचना की। उसके भद्रबलन ( स० पु० ) भद्र महत् बलनं बलमस्य। बल- बाद यशोभद्रके स्वर्गपुरी गमन करने पर, उनके प्रधान राम । शिष्य आर्यसम्भूति और भद्रबाहुने आचार्यपद ग्रहण भद्रबला (सं० स्त्री०) भद्रा बला । १ लताविशेष । पर्याय कर भारतके नाना स्थानोंमें धर्मप्रचागर्थ भ्रमण सरणा, प्रसारणी, कटम्भरा, राजबला। २ गन्धिका, किया । माधवीलता । ____ राजावली-कथा नामक कनाड़ी इतिहासमें भद्रबाहु- भद्रबल्लभ (सं० पु०) बलराम। का इस प्रकार जीवनवृत्तान्त लिखा है :-भारतखण्डके भद्रयाहु (स० पु० ) १ रोहिणीके गर्भसे उत्पन्न वसुदेवके पुण्ड वद्धन राज्यके अन्तर्गत कोटिकपुर नगरमें पारध एक पुत्रका नाम। २ मगधराजभेद। i नामक एक राजा राजत्व करते थे। उनके राज्यकालमें भद्रबाहुस्वामिन् ( स० पु० ) एक ग्रन्थकार। चारित्र राजपुरोहित सोमशर्माकी पत्नी सोमश्रीने एक सर्वासुल- सिंहगणिकृत पडदर्शनवृत्तिमें इनका नामोल्लेख । क्षण-सम्पन्न पुत्र प्रसव किया। पिताने शुभलक्षणों के भद्रबाहुस्खामी-एक प्रसिद्ध जैन-प्रन्थकार, ६ठे श्रुतकेवली। सन्दर्शनसे प्रीत हो कर अपने पुत्र कोष्टीफलका निर्णय श्वेताम्बरके मतानुसार इन्होंने आवश्यकसूत्र, दशवैका कर देखा कि, समयान्तरमें यह बालक जैनधर्म-परिरक्षक लिकसूत्र, उसाध्ययनसून, सूत्रकृताङ्गसूत्र, दशाश्रुतस्क- होगा। तदनुसार उन्होंने जैन-प्रथासे बालकका चौल ग्धसूत्र, कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र, सूर्यप्राप्तिसूत्र, आचाराङ्ग- - सत्र, और ऋषिभाषितसूत्र नामक १० नियुक्ति प्रन्थ रचे ___* किन्हींका मत है कि ये आनन्दपुर ( बड़नगर )-निवासी थे। श्वेताम्बर जैनप्रन्थों में इन्हें श्रुतपारग और योग- और बल्लभीराज ध्र वसेनके समसामयिक थे। Ind. Ant. rol प्रधान कहा गया है। मुनिरत्नसरिने उनको इन दश निर्य- |p. 139, और किसी किसीका यह कहना है कि वे सम्राट क्तियोंकी तुलना ऋग्वेदके दशमण्डलसे ही की है। इसके चन्द्रगुप्त वा अशोकके समकालीन थे। कोटा