पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७१६ भद्रभुज-भद्रवल्लिका भद्रभुज (सं० पु० ) १ कल्याणविधायक भुज । त्रि०) भद्ररथ ( सं० पु० ) कक्षेयुवंशीय हण्यङ्ग राजाके एक पुत्र- २ मङ्गलजनक भुजशाली। ३ प्रशस्त बाहुयुक्त। का नाम । भद्रभूषण ( स० स्त्रो०) देवीमूर्तिभेद। भद्रराम --एक ग्रन्थकार । इन्होंने राजा अनुपसिंहकी भद्रमनस (स' स्रो०) १ ऐरावत हाथीकी माता । (त्रि०) अनुमतिसे अयुत होमलक्षहोमकोटिहोम नामक एक ग्रन्थ २ मनस्वी, प्रशस्तचेता। . लिखा था। जनसाधारणके निकट ये होमगोप नामसे भद्रमन्द ( स० पु०) हाथियोंकी एक जाति । प्रसिद्ध थे। भद्रमन्द्रमृग ( स० पु० ) हाथियोंको एक जाति । भद्ररुचि ( स० वि० ) १ मत्प्रवृत्तिशाली। २ पश्चिम- भद्रमल्लिका ( स० स्त्री० ) भदमलिका । १ गवाक्षी । २ भारतवामी एक बौद्ध भिक्षु । ये हेतुविद्या तथा महा- मल्लिकाभेद, नवमल्लिका। यान सम्प्रदायके अपरापर शास्त्रोंमें विशेष पारदशी थे। भद्रमातृ ( सं स्त्री०) स्नेहमयी माता। मालवराज शिलादित्यको सभामें इन्होंने विशेष प्रतिष्ठा भद्रमुख (सं० त्रि०) मा मुखं तव्यापारोऽस्य। १ प्राप्त की थी। सुवक्ता । २ सुन्दरमुखविशिष्ट । ( पु०) ३ नाग- भद्ररूपा ( स० स्त्री० ), रमणीयाकृति रमणी। २ भेद । सुरूपा। भद्रमुञ्ज ( स० पु० ) भदो मुझ इति कर्मधा। मुशर, भट्राणु ( स० पु० ) भद्रा रेणवोऽस्य । ऐरावत-हस्ती । सरपत। पर्याय-शर, घाण. तेजन, इवेएन । गुण- भद्ररोहिणी ( स० स्त्री० ) भद्रा) रोहति रुह-णिनि-डीप् । मधुर और शिशिर, दाह और तृष्णानाशक, विसर्प, अस्त्र, कटुरोहिणो। मूत्र, वस्ति और चक्षुरोगमें हितकर, त्रिदोषनाशक तथा भद्रवट ( म० पु० ) १ आश्रमभेद । २ तीर्थभेद । भद्रवत् ( स० त्रि०) भद्रमत्स्यस्मिन्निति मतुप, मस्य व । भद्रमुस्तक ( स० पु. ) भद्रो मुस्तकः। नागरमुस्तक। १ कल्याणविशिष्ट, मङ्गलयुक्त । (क्ली० ) २ देवदारु । भद्रमुस्ता (सं० स्त्री० ) भद्रा मुस्ता, नागरमुस्तक, नागर- भद्रवतो ( म० स्त्री० ) भद्रवत् स्त्रियां ङीप् । १ भद- मोथा। पर्याय--वराही, गुन्दा, ग्रांथि, भदकाशी, कशेरु, पर्णी । २ कल्याणविशिष्ट : ३ नाग्नजितीके गर्भसे कोड़ेष्टा, कुरुविन्दाख्या, सुगधि, प्रन्थिला, हिमा, वल्या, उत्पन्न श्रीकृष्णको एक कन्याका नाम । ४ मधुकी माता। राजकशेरू, कच्छोत्था, मुस्ता, अर्णोद, वारिद, अम्भोद ५ चण्डमहासेनकी पालिता हथनी । इसका वेग असीम मेघ, जीमूत, अब्द, नोरद, अभ्र, धन, गाङ्गय । गुण--- था । वासवदत्ता इसी हथनीकी पीठ पर सवार हो उद- कषाय, तिक्त, शीतल, पाचन, पित्तज्वर और कफनाशक । यनके साथ भागे थे। हथनी जब विन्ध्याटवी तक पहुची, ( राजनि० ) भावप्रकाशके मतसे इसका गुण --कटु, तब वहांका गरम जल पी कर पञ्चत्वको प्राप्त हुई। हिम, तिक्त, दोपन, पाचन, कषाय और कफ, पित्त, (कथासरित्सा०) असक, ज्वर, अरुचि तथा वमिनाशक। अनुपदेशजात भद्रवन ( स० क्ली० ) वृन्दावनस्थित श्रीकृष्णका केलि. भद्रमुस्ता ही सर्वोत्कृष्ट है। (भावप्र.) काननविशेष। यह बारह केलिकाननमेंसे एक है और भद्रमृग ( स० पु.) हाथियोंकी एक जाति । नन्दघोटके अग्निकोणमें यमुनाके पूर्वीकिनारे अवस्थित भद्रयव (स.पु० क्ली) भद्रः शुभदो यवः। इन्द्रयव, है। एक समय निदाघ समयमें सनियोंके साथ कौतु- इन्द्रजी। हल करनेके लिये श्रीकृष्णने यहां मल्लयुद्ध किया था। भद्रयान (स'. क्ली० ) उत्तम यान, बढ़िया सवारी। भदवर्म ( स० पु० ) भदण वृणोति आत्मानमिति (पु.)२ शाखाप्रवर्तक एक बौद्ध आचार्य। शेषः-वृ-मनिन् । नवमल्लिका। भद्योग (सं० पु०) १ शुभ समय, माहेन्द्रयोग वा क्षण। भदवल्लिका ( स० स्त्री० ) भदा वल्लिका। गोपवल्ली, २ पुराण सर्वस्खका एक अङ्ग। अनन्तमूल। . वृष्य।