पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७२८

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७२२ भद्रात्मज-भद्राश्व प्रतिष्ठा की। उसके बाद बीच बीच में संस्कारादि द्वारा जो इस प्रकार है :-आरोही--सारे गम, रे ग म प, उसका आयतन भी बढ़ाया गया। देवताके आभरणोंमे ग म पध, म प ध नि, प ध नि सा : अवरोही- कितने बहुमूल्य हीरकादि भी देखे जाते हैं । इस देव- सा नि ध प, नि ध प म, ध प म ग, पम गरे, मूर्तिके खव के लिये निजाम सरकारसे प्रति वर्ष म ग रे सा। १३ हजार रुपये मिलते हैं। यहां जो मेला लगता है, भद्रायुध ( स०पु०. ; राक्षमभेद । वह वैशाखमासमें आरम्भ होता है । रामचन्द जीके भद्रारक ( स० पु० ) पुराणानुसार अठारह क्षुद्र द्रोपों से मंदिरको छोड़ कर यहां मरकताम्बिका नामक एक और एक द्वीपका नाम । शक्तिमूर्ति स्थापित है। भद्रापत्रिका ( स. स्त्री०) भद्राय अलति पर्याप्नोतीति वे सब मंदिर स्थानीय जमींदार और निजामसैन्यके अल-अन्न , भद्रालं पत्र यस्याः कप, टाप् अत इत्वं । अहरहा-युद्ध में नष्ट हो गये। निजामने जब देखा कि, वे गंधाली । यहांका सम्पूर्ण राजस्व वसूल करने में बिलकुल असमर्थ भद्रालो ( स० स्त्र.. ) भद्र-अल अच भद्राल गौरादित्वात् हैं, तब उन्होंने १८६० ई०में इस सम्पत्तिको अगरेजोंके डोष । १ गंधाली । २ मङ्गलश्रेणी। हाथ सौंप दिया। प्रायः २०० वर्ष पहले रामदास भद्रावकाशा ( स स्त्री० ) पुण्यसलिला नदीभेद । नामक एक निजाम-कर्मचारी राजस्व संग्रह करनेके । भद्रावती ( स० स्त्री० ) भद मस्या अस्तीति मतुप मस्य लिये यहां भेजे गधे । जो कुछ रुपये उन्होंने वसूल किये २ः, संज्ञायां पूर्वपदस्य दीर्घ । १ कटहलका पेड़ । २ उसे राजसरकारमें न भेज कर एक मन्दिर और गोपुर महाभारतके अनुसार एक प्राचीन नगरी। पाण्डवगण निर्माणमें लगा दिया। रामदासके ऐसे व्यवहार पर यहांसे युवनाश्वका अश्वमेधका घोड़ा चुरा ले गये थे। निजाम सरकार बड़ी बिगड़ी और उन्हें कैद कर लिया। भद्रेश्वर देखो। पीछे रुम लक्ष्मी नरसिंह राव नामक एक दूसरा व्यक्ति भद्रावत ( स० क्ली० ) विष्टिवतः । राजस्व-संग्रहम नियुक्त हुए । उन्होंने भी निजामको भद्राश्रय ( सं० पु.) भद्रस्य आश्रयः। चन्दन । थोडो-मी रकम भेजकर वाका मन्दिरके संस्कार कार्यमें भद्राश्च ( स० को०) भद्रा अश्या अत्र । जम्बूद्वीपके अन्त- खर्च कर डाला था । इस समय मन्द्राजवासी धनी गत एक वर्ष वा क्षेत्र। भागवतमें इस वर्षका विवरण वरदरामदासने मन्दिर वनानमे उन्हें मदद पहुंचाई। इस प्रकार लिखा है, ---इलावृत्तवपकं पूर्व और पश्चिममें वरदरामकी मृत्युके बाद उन्होंने भी अपनी प्राणरक्षाका यथाक्रमसे माल्यवान् ओर गंधमादन पर्वत, उत्तरमें नील- कोई उपाय न देखा और निजामके भयसे गोदावरी नदी- : पर्वत और दक्षिणमे निषधाचल पर्यन्त दो हजार योजन- में कूद प्राण त्यागा! विस्तीर्ण केतुमाल और भद्राश्ववर्षको सोमा निदिष्ट हुई इस तीर्थ के समीप ही पर्णशाल तीर्थ है। कहते हैं, है। सुमेरुके चारों ओर मन्दर, मेरुमन्दर, सुपार्श्व भौर कि राक्षसपति रावण इसी स्थानसे सीतादेवीको चुरा कुमुद नामक चार अवष्टम्भ पर्वत हैं। उन पर्णतोका ले गया था। यहांके पंडा तीर्थ वासियोंको सीताके : विस्तार भऔर उच्चता अयुत योजन है। चारों पर्वतों पदचिह, उनके बैठनेके कितने प्राचीन स्थान बतलाते पर आन, जम्बू, कदम्ब और न्यग्रोध मामक चार प्रधान वृक्ष हैं, जिनका विस्तार सौ सौ योजनका है। इनकी भवात्मज ( स० पु. ) भदः हितकर आत्मज इव रक्षाकर- । शाखाए भी सौ सौ योजन विस्तृत हैं। त्यात्। बग। उक्त चारों वृक्षों के निकट ही चार हद हैं। जिनमेसे भद्रानगर ( स० क्लो० ) नगरभेद । .. एकमें दुग्धजल दूसरेमें मधुजल, तीसरेमें इक्षु रसजल भद्रानन्द---शिवाचनमहोदधिके प्रणेता । और चौथेमें शुद्धजल है। इन चारों हदोंका जल अति. भवानन्द ( स० पु०) एक प्रकारको खर साधना प्रणाली शय आश्चय कारी है। उपदेवतागण उसका सेवन कर