पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७३५

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भर-भरक सम्बन्ध करनेको राजी नहीं होता। साधारणतः ५ या ये विसूचिका, चेचक या अविवाहित दशामें मृत्यु ७ वर्षको कन्या ही विवाह योग्य समझी जाती है। होने पर मुर्दे को जलाते हैं, परन्तु अन्य अवस्थाओंमें ___ पहली स्त्रोके रहते हुए दूसरा विवाह करना निषिद्ध गाडते या पानी में बहा देते हैं। ६ महीने के भीतर शेषोक्त •नहीं है। परन्तु बन्ध्यादि-कारण बिना दिखाये वह प्रेतोंके उद्देशसे प्रतिकृति बना कर उनकी अन्त्येष्टि-क्रिया विवाह प्राह्य नहीं होता। यदि कोई स्त्री अपनी इच्छासे सहित की जाती है। इनमें मृताशौच १० दिन तक पतिको दूसरो स्त्रीके लिए अनुमति दे. तो फिर उसे घरका माना जाता है । अशौचके प्रधान अधिकारोको उक्त कोई काम नहीं करना पड़ता ; सपत्नी ही सब करनेके दशों दिन कुशनृण द्वारा पानी और मृतको प्रेतात्माके लिए वाध्य है । दूसरी स्त्री वही हो सकती है, जो पहली लिए पिण्डदान देना पड़ता है। दशवें दिन क्षौरकमके स्त्रीकी रिश्तेमें छोटी बहन या वैसी ही कोई लगती बाद पिण्डदान और श्राद्ध होता है । उस दिन ब्राह्मणको हो । विधवाएं चाहे तो सगाईके प्रथानुसार विवाह कर अपय दव्य और शाति कुटुम्बादिको भोज दिया जाता सकती हैं। सामाजिक सभी विषयोंका फैसला पञ्चायत स के प्रतिनिधि चौधरी द्वारा होता है। स्त्री अथवा पहले ही लिखा जा चुका है कि ये प्रायः सभी कार्यो. परि के स्वाभाविक दौर्बल्य, शरीरगत रोग वा व्यभिचार में अघवानदेव, फूलमतीदेवी और पांच पोरको पूजा आर कारणों पर विवाह बन्धन तोड़ा जा सकता है, करते हैं। इसके सिवा ये कालिका और काशीदास पर उसमें भी पञ्चायत-सभाकी अमुमतिकी आवश्य- वावाको पूजााद भी विशेष धूमधामके साथ करते हैं। फगुआ, दशहरा, दिवाली, खिचड़ी और तीज आदि इन- विवाहमें वरके मामा ही घटक बनते हैं । कन्याका के प्रधान पर्व हैं। प्रामस्थ वट-तमके नोचे प्रेतयोनिकी पिता १) रु० दे कर वरका मुह देखता और विवाह पक्का पूजामें ये लोग शूकरकी बलि चढ़ाते हैं। कोई कोई करता है। 'पानीके दिन' कन्याका पिता स्वजनोंसे परि गयाजी जा कर पिण्डदान करते हैं । प्रत्येक पीपलके वृत हो कर वरके घर जाता है और आंगनके चीकमें वर- पेड़को नारायणकी वासभूमि समझ कर ये उसकी पूजा के सामने बैठ कर वह अपने जमाईके मस्तक पर चावल करते हैं और स्त्रियां पीपलके पेड़को लाज मारती है। और वही लगाता है। ब्राह्मणके द्वारा शुभ दिनका पश्चिम-बङ्गाल और छोटा-नागपुरके भर प्रधानतः निश्चय होने पर उस दिन वर और कन्याके घर विवाह- कृषिजीवी होते हैं। बहुतसे पञ्चकोट (पंचेट ) राज- मञ्च बनता है। विवाहके पहले दम्पतिको मङ्गलकामानके सरकारमें कार्य करते हैं। इनमें मघवा और बङ्गाली लिए अघवान देव, पांच पीर और फूलमतीदेवीकी पूजा नामके दो थोक हैं, जिनका परस्परमें विवाहादि सम्बन्ध होती है। कन्याके घर पर पहुंचते ही पुरोहित पहले | नहीं है। लगभग सभी विषयोंमें ये हिन्दुओंका अनुकरण गौरी और शङ्करकी पूजा करता है। उसके बाद वर और करना सीख गये हैं। इनमें बाल्यविवाह प्रचलित कन्याको ( गांठे बंध जानेके बाद ) विवाह मञ्चस्थ मध्य- परन्तु अवस्थाके भेदसे वयस्था कन्याका विवाह भी ग्राह्य दण्डके चारों ओर पांच बार प्रदक्षिण कराया जाता है। है। विधवा-विवाह बिलकुल नहीं होता। मृतदेहका किसी स्त्रीके गर्भवती होने पर, घरकी मालकिन दाहकर्म और १३वे दिन श्राद्ध आदि हिन्दुओंकी पद्धति- उसके सिर पर पैसा और चावल फेरती हैं तथा प्रसव के अनुसार होता है। पंचेट राजसरकारमें कार्य-ग्रहण अच्छी तरह हो इसके लिए फूलमतीदेवी और प्राम्य- कर ये समाजमें बहुत उन्नत हो गये हैं। मानभूममें पे देवताको पूजा करती हैं। प्रसूतिके ६ठे दिन छठी वा तम्बोली और हलवाइयोंकी श्रेणीमें गिने जाते हैं । उच्च षष्ठीपूजा और १२वें दिन अशौचान्त होता है। ५वे या ठे वर्ष कर्णवेध होनेके बाद बालकको समाजके समस्त श्रेणीके हिदूमाल इनके हाथका पानी पीते हैं । नियमोंका पालन और भोज्यादिका भी विचार करना । भई (हिं. पु०) भरदूल देखो। पड़ता है। भरक (हिं० १०) पंजाब और बङ्गालमें अधिकतासे मिलने- Vol, xY 183