भर्तृहस्यिोगो-मलका
हैं। किन्हीं किन्हींका कहना है, कि भट्टकाव्यके प्रणेता थे । भर्दागढ़-मध्यप्रदेशके छिन्दवाड़ा जिलान्तर्गत एक भू-
ही थे। प्रवाद है, कि ये अपने भाई विक्रमादित्यके सम्पत्ति । कोई गोंड-सरदार यहांके जागीरदार हैं । टीक-
जरिये मारे गये थे । विक्रमादित्य देखो।
धाना वा पांजरा प्राममें इनका वास-भवन विद्यमान है।
'२ रागिणीविशेष, एक रागिणीका नाम । इसे भटि- भर्म-राष्ट्रकूट वंशीय एफ राजा। ये बाजकों के अधि-
यारी वा भटियाला भी कहते हैं। यह रागिणी ललित पति थे। प्रभासमें इनको राजधानी थी। इनके
और परजयोगसे उत्पन्न है । सा वादी है और न राज्यकालके १४३७ और १४४२ संवतमें उत्कीर्ण शिला-
संवादी। सरगम इस प्रकार है---"ऋ ग म प ध नि लेख मिलते हैं।
साः" ( सङ्गीतरत्ना०)
भर्म (स क्लो०) भ्रियऽनेनेति भृ-बाहुलकात् मन् । १
भत्तं हरियोगी--साधुसम्प्रदायविशेष । विक्रमादित्यके स्वर्ण, सोना । २ भृति, नौकरी । ३ नाभि ।
भाई भत्त हरिने इस सम्प्रदायको परिवर्तन किया । भर्मण्या ( स० स्त्रो० ) भर्मणि भरणे साधुरिति भर्मन्-
राजा भत्तहरिने किसी योगीका शिष्यत्व ग्रहण किया यत्-टाप्। चेतन, तनखाह। .
था, इस कारण उनके प्रवर्तित सम्प्रदायिकगण भर्मन् (स क्लो० ) भरति भियते वेति भृत् ( सर्वधातुभ्यो
भी योगी नामसे अभिहित हुए हैं। ये लोग हाथमें मनिन् । उण ४।१४४ ) इति मनिन् । १ वेतन, तनखाह ।
वाद्ययन्त्र लिये भत्त राजके गुणकोत्तन किये घूमते हैं। २ स्वर्ण, सोना । ३ धुस्तूर, धतूरा, । ४ नाभि । ५ भरण,
काशीधामके रावरो तलाव नामक स्थानमें उनका प्रधान पालन पोसन ।
अड़ा है । ये लोग गेरू वस्त्र पहनते और शवदेहको ' भर्माश्व ( स० पु०) भरतवंशीय नृपभेद ।
समाधिस्थ करते हैं।
( भाग. २०२४)
भन हेम.---'पृङ्गारशतक' नामक ग्रन्थके प्रणेता, भत हरिका भर्ग ( हि. पु.) १ पक्षियोंको उड़ान। २ एक प्रकारकी
एक नाम।
। चिड़िया।
भत्सक (सं० त्रि०) भर्स-खुल। भर्त्सनाकारी, तिर- भर्शना ( हिं० कि. ) भई भरै शब्द होना, आवाज
स्कार करनेवाला।
भर्राना।
भर्त्सन ( स० क्लो. ) भर्त्स ल्युट । अपकार वचन,
भर्सन ( हिं० स्त्रो० ) १ निन्दा, अपवाद। २ फटकार,
निन्दा, शिकायत। पर्याय---कुत्सा, निन्दा, जुगुप्ता,
डोट डपट ।
गर्दा, गहण, निन्दन, कुत्सन, परिवाद, परीवाद, जुगु- !
भर्सियान--सुलतानपुर-वासो राजपूत जातिकी एक
प्सन, आक्षेप, अवर्ण, निर्वाद, अपक्रोश । २ डांट डपट ।
भत्स पत्रिका ( स० स्त्री० ) भत्सरे स्मेति भसंघ,
शाखा। भैंसोल ग्राममें वास करनेके कारण इनका
मैं सोलियान वा भर्सियान नाम पड़ा। ये मैनपुर वासो
भत्सं निन्दित पत्रं यस्याः, कप टाप अतः इत्वं । महा-
नीलो।
- चौहानोंके वंशधर कहलाते हैं। करणसिंह नामक इस
मर्थमा--१ युक्तप्रदेशके इटावा जिलान्तर्गत एक तहसील ।
शाखाके एक सरदारने अयोध्या प्रदेशमें आ कर बाई
चम्बल और कमारो नदोके तीरवती वन्यप्रदेश मना कन्याका पाणिग्रहण किया था। उनके एक वंशधर
उपत्यका और उत्तर दोआबको ले कर यह उपविभाग राजसिंहने शेरशाहके राजस्वकालमें इसलाम-धर्म में दीक्षित
गठित है। भूपरिमाण ४१५ वर्गमील है।
हो कर खान-इ-आजम भैसोलियम नाम पाया था।
२ उक्त उपविभागका एक प्रधान ग्राम और तहसील-
आईन-इ-अकबरीमें वर्णित चौहान-इ नौ-मुस्लिम नामक
का सदर। यह इटावा नगरसे ६ कोस दूर अवस्थित : मुसलमान इसी वंशके समझे जाते है।
है। यहाँ इष्ट-इण्डियन रेलवेका एक स्टेशन है। भल (सं० पु.) १ मार डालनेकी क्रिया, बध । २ दान ।
भर्थर---गुजरातवासी जातिविशेष। इस जातिके लोग ३ निरूपण ।
शस्यादि बेच कर जीविका-निर्वाह करते हैं। भलका (हिं० पु० ) १ एक विशेष आकारका बना हुआ
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७५४
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