पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/९१

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फास्फरस ले। अनन्तर सूख जाने पर उस पिण्डको मट्टीके बने (Professor Schrotter) इस प्रथाके उद्भावक हैं। हुए वकयन्त्र ( Retort )-में ढाल कर चुआवे। ऐसा उन्होंने कार्बनिक एसिडमें ३०।४० घंटे तक ४५० वा ४६० करनेसे उत्तप्त हो कर एक मुखसे वाप्पांश उड़ जायगा डिग्री तापमें साधारण फास्फरस खौला कर एमर्फ स और दूसरे मुखसे फास्फरस हलदी रंगको बुदमें टपक उत्पादन किया था। उत्तापके विभिन्नतानुसार इसका टपक कर एक जलपूर्ण पात्रमें जमा होगा। जल और वर्ण कभी लाल, कभी उजला और कभी घना पाटल अमोनियाके योगसे अथवा बाइ-क्रोमेट आव पटासयुक्त । ( Dark pnriple ) होता है। पूर्वोक्त फास्फरसके साथ सलक्युरिक एसिड द्रावकमें उसे जलानेसे शोषित होता इसका प्रभेद इतना ही है, कि अधिक घिसनेसे भी यह है। बहुत थोड़ी गरमी या रगड़ पा कर यह जलता जलता नहीं है, गन्धहीन है, वायु लगनेसे इसमें कोई है। हवामें खुला रहनेसे यह धीरे धीरे जलता है । यही परिवर्तन नहीं होता और न साधारण प्रस्फुरककी तरह कारण है, कि रासायनिकगण उसे जलमें रख देते हैं। द्रावकमें गलता ही है। किन्तु यदि क्लोरेट आव पटाश, उसमें लहसुनकी-सी गन्ध निकलती है। अंधेरेमें देखने- , पेरक्काइड आव लेड वा पेरफ्साइड आव मङ्गानिसके साथ से उसमें सफेद लपट दिखाई पड़ती है। यदि गरमी थोड़ा भी संघर्ष हो, तो यह शीघ्र ही जल जाता है । पीछे अधिक न हो, तो यह मोमको तरह जमा रहता है और ४५० वा ४६० डिग्री उत्तापमें गरम करनेसे यह पुनः छूरीसे काटा या खुरचा जा सकता है। यदि कोइ भूलसे पूर्वावस्थाको प्राप्त होता है। इसे तेल या चरबीमें घोलने उसे कपड़े में रखे, तो कपड़ा सहजमें दग्ध हो सकता है। पर ऐसा तेल तैयार हो जाता है जो अँधेरेमें चमकता है, इसका आपेक्षिक गुरुत्व (५० डिग्री फारनहीरके दिया सलाई बनाने में इसका बहुत प्रयोग होता है। उत्तापमें) १८३ और आणविक गुरुत्व ३१ है। रसायन अलावा इसके और भी कई चीजें बनानेमें काम आता है। शास्त्रमें 'पी' (p ) नाम देखनेसे ही उसे फास्फरस औषधके रूपमें भी यह बहुत दिया जाता है, क्योंकि जानना चाहिये । १११५ डिग्री उत्तातसे यह जल लाकर लोग इसे बुद्धिका उद्दीपक और पुष्ट मानते हैं। जाता है। किसी आवद्ध पात्रमें ५५० डिग्री उत्तापसे उसे | तापके मात्राभेदसे फासफरसका गहरा रूपान्तर भी हो चुआनेसे पुनः वह उसी अवस्थामें आ जाता है । जलमें यह जाता है। नहीं घुलता, लेकिन इथर वा नैप्चामें बहुत कुछ घुल जाता आक्सिजनके साथ प्रस्फुरक चार विभिन्न भागांमें है, बाइसलफाइड-आव-कार्बन वा फ्लोराइड-आव सलफरसे मिलाया जा सकता है। उससे अक्साइड आव प्रस्फु- यह बिलकुल गल जाता है। हवामें खुला रखनेसे थोड़ा रक (Oxide of phosphorus), उपस्फुरद्रावक (Hy- थोड़ा करके जलता और उसमें सफेद लपट दिखाई देती pophosphorous acil ), स्फुरद्रावक ( Thospho- है। इस समय उससे लगातार धुआं निकलता रहता है। rous acid ) और स्फुरकद्रावक (Phosphoric acid) प्रस्फुरक हाथमें लेनेके पहले विशेष सावधान रहना आदि उत्पन्न होते हैं। जलके तारतम्यानुसार Phos- उचित है। कारण, शुष्कावस्थामें थोड़ी रगड़ लगनेसे phoric acid तीन प्रकारका है। यथा-१ Orthoph- ही वह जल सकता है और इससे शरीरमें छाला पड़ने- osphoric acidl स्फुरकद्रावक, २ Metaphosphoric को सम्भावना है। जलमें रख कर इसे इच्छानुसार कार acid अभिस्फुरकद्रावक और Pyrophosphoric acid सकते और हाथमें भी ले सकते हैं, इससे शारीरिक अधिस्फुरकंद्रावक । हरिणस्फुरक ( Chlorides of Ph- कोई भी अनिष्ट नहीं होता। इसी कारण वैज्ञानिक लोग osphorus ) हरिण ( Chlorine )-के योगसे प्रस्फुरक- इसे जलमें काट कर व्यवहारके लिये बाहर निकालते हैं। के टारक्लोराई और पेण्टा क्लोराइड नामक दो अवस्था- प्रस्फुरक तरह तरहकी अवस्था ( Allotropic forms ). न्तर होते हैं। आयोडिनके योगसे भी इसके बिनायो- में पलट सकता है। इनमेंसे Amorphous Phosphorus | डाइड और टार आयोडाइड नामक दो परिवर्तन होते हो सर्वप्रधान है। भियनादेशीय रसायनविद् स्कोटर | हैं। गन्धकके साथ मिलानेसे कुछ यौगिक पदार्थको Vol. xv. 22