पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/११७

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अग्निदग्धव्रण-अग्निदेवा दुर्घटना होने पर प्रथमसे हो उपयुक्त चिकत्सकसे । तथापि उस समय धूमके मध्य में ऊंचे चढ़ना उचित चिकित्सा कराना चाहिये। नहीं। मट्टोके ऊपर पैर रख उस स्थानसे बाहर निकल वैद्यक-दग्धस्थानमें मधु या शहद लगा, उसके जाना अच्छा है। ऊपरी भागमें यवका चर्ण डालनेसे ज्वालाका निवा- अग्निदत्त (सं० पु०) एक राजाका नाम । रण हो जाता है। चार सेर जल में एक पाव जौरा अग्निदमनी (सं० स्त्रो०) अग्नि-दम-णिच्-ल्युट, स्त्री- पका एक सेर जल बाकी रहनेसे उतार । यहो क्वाथ डौ । खूप-विशेष । मकोय । (Premna integrifolia) छानकर एक सेर घोके साथ पाक बनाये। पानी मर गनियारी। क्षुद्रकण्टारिका। गणियारो देखो। पर्याय- जाने पर दग्धस्थानमें इस घृतका प्रलेप देनेसे विलक्षण वह्नि-दमनी, बहुकण्टका, वल्लिकण्टारिका, गुच्छफला, उपकार होता है। हकीम अण्ड को सफेद लार जली क्षुद्रफला, क्षुद्रदुःस्पर्शा, मर्त्यन्ट्रमाता, दमनो। हुई जगहमें लगानेको बताते हैं । यह वृक्ष कटु, उष्ण और रुक्ष होता है। इसके घरका काम करने में आठो पहर अग्निसे हो सम्बन्ध सेवनसे वात, कफ, गुल्म ओर प्लोहा नष्ट हो रहता है। पाकके लिये अग्नि, किसी द्रव्यको उष्ण जाता है। क्षुधावृद्धि और आहारमें रुचि होतो है। करने में अग्नि, रातको आलोकके लिये अग्नि : जो छोटे-छोटे फलोंवाला कटौला पेड़। तम्बाकू, चुरुटादि पौते हैं, वह तो दिन-रात मुखमें अग्निदाट (सं० वि०) अग्नि-दा-टच् । अन्त्येष्टिके समय अग्नि लगाये ही रहते हैं। इसके सिवा दरिद्र लोगोंके जो विधानानुसारसे मुखाग्नि देता है। पुत्र, ज्ञाति, गात्रवस्त्र नहीं। उनके लिये जानु, भानु और कृशानु आत्मीय वजन इत्यादि। शास्त्रानुसारसे जो प्रतपिण्ड हो शौतका निवारण है, हिमके प्रकोपको वृद्धि होते देनेके अधिकारी हैं, वही अग्निदाता कहाते हैं। उनके हो सब लोग आग जलाकर बैठ जाते हैं। आगसे अभावमें आत्मीय स्वजन सभो अग्निको समर्पण कर आठो पहर जो इतना काम होता है, इसीसे मध्य-मध्य सकते हैं। (खो०) अग्निदात्रो। गृहस्थके घरमें अतिशय शोचनीय घटना हो जाया अग्निदाह (सं० पु०) १ आग जलाना । २ मुर्दा फूकना । करती है। दुधमुहे शिशुओंके वस्त्र में आग लगनेसे शवदाह। उनका शरीर जल जाता है। ऐसी दुर्घटनाके समयमें अग्निदीपक (सं० त्रि०) १ आगको चितानेवाला। २ विशेष सतर्कता और प्रत्युत्पन्नमतित्व रहना चाहिये । भूख बढ़ानेवाला। शिशुओंके कपड़ेमें आग लगनेसे कितने ही मा-बाप अग्निदोपन (सं० त्रि०) अग्नि-दोप-णिच-ल्युट् । अग्नि व्यस्त हो उसे खोलना चाहते, इसी बीच बच्चे का शरीर जठरानलं दीपयतीति । अग्निवर्द्धक । जिस औषधिसे जल जाता है। विपद्कालमें उपस्थित-बुद्धि नितान्त क्षुधा बढ़े। आवश्यक है। कपड़े में आग लगनेसे क्षणकालके मध्य- अग्निदीप्ता (सं० स्त्री०) अग्निर्जठरानलो दीप्त: सेवनन में यह सोच लेना पड़ेगा, कि वस्त्र शीघ्र खुलेगा या यस्याः । १ ज्योतिष्मतीलता ।२ अग्निर्दीप्ता यया। अग्न्य - नहीं। यदि समझ पड़े, कि खुलनेमें विलम्ब लगेगा, हीपक वस्तु । तो बालकका सर्वाङ्ग शतरच या किसी दूसरे मोटे अग्निदूत (सं० पु०) अग्नि त इव यत्र । दू-तन् दूतः । कपड़ेसे लपेट डालना चाहिये। हवा बन्द होनेसे एक दूततिभ्यां दीर्घश्च । उण् ३।१०। अग्नि देवताओंके पास हविः मुहूर्तमें अग्नि बुझ जायेगो। निकट मोटा कपड़ा न ले जाते, इसोसे यह यज्ञके दूत होते हैं। रहनेसे बालकको मट्टोके उलटा-पुलटा अग्निदेवता (सं० पु०) अग्नि जो देवता जैसे माने देना चाहिये, इससे भी अग्नि शीघ्र निर्वाण हो गये हैं। जाती है। अग्निदेवा (सं० स्त्री०) अग्निर्देवोऽस्याः । कृत्तिका नक्षत्र । घरमें आग लगनेसे यद्यपि धुआं बहुत होता है, कृत्तिका देखो। - ) ऊपर