१५२ अङ्ग-अङ्ग्रह था। प्राचीन चम्या भागलपुर ही था। भागलपुर नगर रिया ज्वरका तो अङ्गग्रह. एक प्रधान लक्षण है। के पास आजतक चम्पानगर नामक एक प्राचीन शहर ज्वर आनेस पहले समस्त शरीर कांपता और ठण्डा है। चम्पा देखो। पड़ जाता, उसी समय पैरको गांठ और कमरमें दर्द १३ सूर्यबंशीय राजाके औरस और आग्नेयौके गर्भ होने लगता है। स्नायुशूल रोगमें (Neuralgia) कोई से हुई अङ्ग नामको एक सन्तान । अङ्गको स्त्रीका स्थान फूलता नहीं, परन्तु हाथ-पैरमें सुइयां जैसी नाम सुनीता और उनके पुत्रका नाम वेण था। चुभा करती हैं। अङ्ग (क्लो०) १४ पाणिनिहीत संज्ञा विशेष । यस्मात् प्रत्यय चिकित्सा-चालीस वर्षसे अधिक वयःक्रममें जो विधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् । पा रा१३। यस्मात् प्रत्ययो विधीयते धातीर्वा सञ्चित वात रोग और उसीके कारण वदनमें दर्द प्रातिपदिकाहा तदादि शब्दरूपं प्रत्यये परतोऽङ्गसंज्ञ' भवति । (वृत्ति) जिस होता है, उसे धन्वन्तरि आकर भी नहीं हटा धातु या प्रातिपदिकके उत्तर जिस प्रत्ययका विधान सकते। इस अवस्थामें थोड़ी अफ़ौमको सेवन किया जाता और वही प्रत्यय जिसके बाद रहता है, करना चाहिये। इससे यद्यपि रोगका प्रतीकार उस प्रकृतिवाले समुदायको अङ्ग कहते हैं। जैसे, नहीं होता, एक नया उपसर्ग लग जाता और सभी राम शब्द एक प्रकृति है। इसके बाद मानो सुप्रत्यय धीरे-धीरे अफ़ीमखोर हो जाते हैं, तथापि यह दोष लगाया गया। यहां प्रत्यय पर रहनेसे व्यपदेशिक होते भी, सञ्जित बात रोगमें अफोम खानेसे शरीर समान भावमें राम शब्दको अङ्ग संज्ञा हुई। अङ्गसंज्ञा कितना ही अच्छा रहता है। जो बहुत आलसी हैं, करनेका फल है, एङ् हस्खात् संबुद्धे ।। पा ६।१।६। एङन्त उन्हें सवेरे और सन्ध्याके समय मैदानमें हवा खाना या इखान्त अङ्गके पर सम्बोधनका जो हल हो, और दिनमें सोना और दही और रात्रिमें अन्नको उसका लोप हो जाये। राम एक हस्तान्त शब्द भोजन करना तो एकदम ही छोड़ देना चाहिये। है। इसके बाद सम्बधिका हल् वर्ण सु रहनेसे हिन्दुओंमें एकादशीके दिवस उपवास करनेको प्रथा सकारका लोप होगा । जैसे,—राम+सु, सम्बोधन है। एकादशीके दिन उपवास करनेसे वात प्रभृति में,-हे राम। कई रोगमें बड़ा लाभ पहुंचता है। अङ्गकर्म, अङ्गकर्मन् (सं० क्लो०) अङ्गस्य कर्म, ६ तत् । होमियोपेथी-शरीरको एक ओरके स्नायुमें बीच-बीच अङ्गसेवा। हाथ-पैरका मलना। शरीर दबाना । बहुत तेज दर्द होनेसे आर्सेनिक (Arsenic), कमज़ोर शरीरमें तेल आदि सुगन्धित पदार्थीका लगाना। मनुष्यको स्नायुशूल होनेसे फसफोरस् (Phosphorus), अङ्गग्रह (सं० पु०) अङ्गस्य ग्रहः रोगहतोर्वेदना, रातके जागरण, ठंडी हवाके सेवन, दुश्चिन्ता आदिके ६-तत्। १ शरीरका दर्द। देहका जकड़ना। २ वह कारण माथेमें दर्द होनेसे ऐकोनाइट् (Aconite) रोग जिसमें जोड़-जोड़ दुखे। और मलेरियासे उत्पन्न हुए अङ्गग्रहमें चायना अङ्ग-ग्रह कोई खास रोग नहीं, यह दूसरे रोगों (China) देना चाहिये। का उपसर्ग मात्र है। कितने ही कारणसे अङ्ग्रह ऐलोपेथी-युवा और बृद्ध मनुष्योंकी कमर और होता है। जवानीमें जिन्होंने बराबर कसरत को, हाथ-पैरके जोड़में दर्द होनेसे कैजूपुट तेल मलनेसे प्रौढ़ावस्था आने पर उसके छोड़ देनेसे, उन्हें अङ्गग्रह विशेष लाभ होता है। सेवन करनेके लिये दो बूंद हो जाता है। गठिया, कमरके दर्द, पुराने उपदंश एकोनाइटका अरिष्ट जलके साथ नित्य दो बार आदि रोगोंमें बीच-बीच अङ्ग दुखने लगता है। रात देना चाहिये। ऊर्ख पातित गन्धक दूधके साथ के समयको अथवा पूर्वी हवा लगनेसे गांठमें दर्द बढ़ खानेसे दर्द कितना ही कम हो जाता है। चमड़ेके जाता है। शरीर रोगी रहनेसे थोड़ा भी कुपथ्य भौतर मफियाको पिचकारी मारनेसे भी लाभ होता हुआ, कि हाथ-पैरकी गांठमें दद होने लगा। मले है। यह चिकित्सा विज्ञ चिकित्सकसे कराना चाहिये।