पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८२

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, अच १७५ बताते थे। यह सब बातें देख-सुन जो लोग अनुमान अनुमान होता है, कि जिस समय हिन्दू लिखना करते, कि एक-एक वस्तुके नामपर वर्णमालाके न जानते, उस समय केवल चित्र अङ्कित कर दूरके अक्षरका नाम रखा गया, मालूम होता है, कि लोगोंको मनकी बात लिख भेजते थे। हिन्दुओंको उनकी बात मिथ्या नहीं। ऐसा ही अभ्यास भी है, एक बार कोई रीति चलित रञ्जेस और टेलर साहबका मत यह है, कि होनेसे चिरकाल मानना पड़तो; न माननेसे प्रत्य- फिनिशियाके लोगोंने ही पहले लिखनेका कौशल वाय होता है। इसीसे अज्ञानतावशतः किसी कालमें निकाला था; उन्हें देखकर पीछे पृथिवीको अन्यान्य लोग जो चित्र अङ्कित कर पत्र लिखते थे, उस दिन जातियोंने लिखना सीखा। इसमें घोर भ्रम है। पर्यन्त हम उसी पुरातन नियमको मानते रहे- उस समय सकल ही प्राचीन जातियां भारतवर्ष में आज भी विवाह के पत्र में, कुछ न हो तो सिन्दूरको बाणिज्य करने आती थों। अरब और मिश्चके रहने- फुटको लगा देना पड़ता है। वालोंने ब्राह्मणोंसे गणितशास्त्र सीखा और लिखनेका एक दूसरी बात भी है। नागा, सन्थाल प्रभृति कौशल भी इसी हिन्दुओं के देशसे विदेशमें जा पहुंचा असभ्य जातियां लिखना नहीं जानतों, पढ़ नहीं था। अरबके अधिवासौ इस बातको स्वीकार सकतीं। दूरके लोगोंको मनको बात कह पहु- करते हैं। चानेके लिये उनका एक-एक सङ्केत निर्धारित है। भारतवर्ष में प्रथम-प्रथम चित्र बना पत्र लिखनेको सन्थाल विपमें पड़नेसे ग्राम-ग्राम संवाद देनेके प्रथा थी या नहीं? अवश्य हौ थी। यदि न होती, निमित्त साल वृक्षको एक डाल भेजते हैं। यह तो फिनिशियावासो इस विद्याको कहांसे सौखते ! सङ्केत पाते ही सब लोग धनुर्वाण ले दौड़ पड़ते हैं। अब दिन-दिन इस देशसे पुरानो प्रथाके प्रमाण उठते शत्रुओंको भय दिखाने के लिये नागे एक जली जाते हैं, इसीसे लोग ऐसो बात कहते, नतुवा पुरातन लकड़ी, मिर्च और अस्त्र पहुंचाते हैं। इसका रोति अभी ढूंढनेसे अनेक प्रमाण मिल सकते हैं। तात्पर्य यह है, कि शत्र ओंका ग्राम जली लकड़ीकी वररुचिको पत्रकौमुदीमें इस बातके अनेक नियम तरह दग्ध किया जायेगा और वह अस्त्राघातसे लाल निर्दिष्ट किये गये हैं, कि पूर्वकालके लोग किस मिर्चको तरह जलने लगेंगे। इसमें संदेह नहीं, प्रणालौसे पत्र लिखते थे। ‘पत्रके ऊपर अङ्गुश जैसी कि आजकल जैसे भारतवर्षको अज्ञ जातिके मध्य में एक रेखा खींचे। अङ्गुशके भीतर विन्दु लगा दे। संवादादि भेजनेका एक-एक सङ्केत चलता है राजाको पत्र लिखनेमें पत्रके ऊर्ध्वमें कुश्मसे आदिम अवस्थामें जब आर्य अज्ञ थे, तब उनके एक चन्द्रमण्डल अङ्कित करे। पण्डित और गुरुजन मध्यमें भी ऐसे ही संवाद भेजनेका किसी प्रकार प्रभृतिके पत्र में चन्दनका चिह्न लगाना आवश्यक है। सङ्केत था। स्वामौके पत्रमें स्त्रीको सिन्दूरको फुटको डालना प्रथम-प्रथम अनेक देशोंके लोग पशुपालन करते चाहिये। स्वामी स्त्रीको पत्र लिखनेपर महावरका थे। इसीसे बकरी, भेड़ और गो-वत्सादि चरानेके रङ्ग जमाये। फिर शत्रुको रक्तका चिह्न लगा पत्र लिये दिवारान उन्हें मैदान, वन, नदीकूल और लिखना चाहिये। पर्वतपर घूमना पड़ता था। पर्वतके ऊपरसे उन्हें यह कुछ दिन पूर्वका संवाद है। जब वररुचि आकाशमें ग्रहनक्षत्रादिको गतिविधि जीवित थे, उसके कुछ आगसे यह सकल नियम खूब देखनेको मिलती थी, कि सन्ध्याको कौन चला आता था। किन्तु यह ठोक मालूम हो नहीं तारा उदित होता, आधौ-रातका कौन नक्षत्र था, सकता, कि इससे भी पहले लोग कैसे लिखते थे। सवेरा होनेसे कौन नक्षत्र कहांपर रहता था। फिर भी, इन सकल चिह्नोंके बनानेकी प्रथा देख स्पष्ट इसौसे सकल ही देशों में ज्योतिषके मन्त्रगुरु . सकल