पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०५

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अजयगढ़-अजयनद १६६ अजयगढ़-बुंदेलखण्डके अन्तर्गत एक गिरिदुर्ग। यह वशेष देख पड़ता है। अट्टालिकाको टूटी छतके पास कालञ्जर पर्वतसे आठ, बांदेसे साढ़े तेईस और प्रयाग पार्श्वनाथको कई मूर्तियां बनी हैं। कोई मूर्ति बैठो से पैंसठ कोस दूर है। अजयगढ़ राज्यका विस्तार और कोई खड़ी है। अट्टालिकाके भीतर नेमनाथको ४४७ वर्ग मील है; इसमें ६०८ ग्राम है; सर्वसमेत तीन बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं। मूर्तियां विवस्त्र हैं, लोकसंख्या कोई एक लाख होगी। राज्यको वात्म दोनो हाथों में पद्म विराज रहा है, छातीपर रत्नजटित रिक आय दो लाख तीस हजार रुपया है। नये आभूषण खचित है, शिरके बाल चूंघरवाले और शहरमें अजयगढ़ राज्यको राजधानी प्रतिष्ठित छोटे-छोटे कड़े हैं। अट्टालिकासे कुछ दूर एक बृहत् है। यहां मलेरिया ज्वरका अतिशय प्रादुर्भाव पुष्करिणी है। पुष्करिणी के किनारे अनेक लिङ्ग होता है। और योनिमूर्ति हैं, जिनमें एक गणेश और एक इस गिरिदुर्गको उपत्यकामें अनेक प्रकारको पञ्चानन लिङ्ग भी देखा जाता है। पुष्करिणीसे प्रस्तर-मूर्तियां चारों ओर बिखरी पड़ी हैं। टूटे दक्षिण पञ्चमूर्ति लिङ्ग है और महादेव, पार्वती और मन्दिर, बड़े-बड़े खम्भे और खम्भोंको चित्रकारी और नन्दीको मूर्तियां विराज रही हैं। देवमूर्तियां देखनेसे बोध होता है, कि मानो किसी अजयगढ़ पहले अजयनगर नामसे प्रसिद्ध था। कालमें इस जगह जैन-देवालय रहा था। उपत्यका अजयनगरवाले राजा छत्रशालके अपने राज्यको के चढ़ावमें बड़े-बड़े दालान बने और उनमें ५। ६ विभाग करनेसे अजयगढ़ जगत्राजके अंशमें आया। हाथ ऊ'चे मोटे-मोटे खम्भे लगे हैं। खम्भों में विचित्र सन् १८०३ ई० में पेशवाने ब्रटिश गवर्नमेण्ट के हाथों बेल-बूटे खोदे हुए हैं। कार्णिसके ऊपर स्त्रियों को बुंदेलखण्डके कियदंशको समर्पण किया। इसलिये मूर्तियां हैं, जिनको बनावट वहुत ही अच्छो देख कर्नल मेसेन्वाक्. जमान् खां और अण्डासन अनेक पड़ती है। अब इन सकल देवालयों में मनुष्य नहीं सैन्य ले अजयगढ़को अधिकार करने गये। अंग- केवल वानर और बृहत् बृहत् सर्प रहते हैं। रेजोंकी सैन्य देवग्राम पर्वतके नीचे पहुचनेसे अजयगढ़ देखने में कितना ही कालञ्जर जैसा है। लक्ष्मणदांव नामक जनेक व्यक्तिने हठात् ससैन्य पहाड़पर चढ़नेके पथमें पहले सात हार थे। रामजे आकर आक्रमण किया। उन्होंने कितनो ही बन्दूके साहब जिस समय देखने गये, उस समय चार हार छीन ली थीं। इस युद्ध में अंगरेजोंको विस्तर सैन्य टूटे थे, तोनको अवस्था कुछ कुछ अच्छी थी। हारों के हत और आहत हुई। महा-महा वीर भी शत्रुके वाम पार्श्वमें दो कुण्ड हैं, जिनका नाम गङ्गा-यमुना सामने स्थिर न रह सकनेसे चारो ओर भाग खड़े पुकारा जाता है। पहले तीर्थयात्री इन कुण्डोंके हुए। शेषमें मेसेन्वाक्ने जाकर शत्रुओंसे पुनर्वार जलसे स्नानदान करते थे। कालञ्जर पर्वतमें भी बन्द के. छीन ली एवं लक्ष्मणदांवने भी १८,००० ठीक ऐसे ही कुण्ड विद्यमान हैं। कुण्डोंके ऊपर रुपया देकर निष्कृति पाई । अब अजयगढ़के राजा पहाड़में संस्कृत भाषासे कुछ शिलालेख था। उसका अंगरेजोंको कर देते हैं। कितना हो अंश मिट गया है, कितना हो नहों भौ अजयनद-वीरभूम जिलेमें अजय नामका मिटा ; किन्तु वह स्पष्ट पढ़ा नहीं जा सकता। वृहत् नद है। हज़ारीबाग जिले में यह उत्पन्न हुआ पर्वतको चढ़ाई में कहीं गणेश, कहों हनूमान् और है। इसके वाद सन्थाल परगनेसे कुछ दक्षिण, दक्षिण कहीं नन्दीको मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। प्रधान हारके दिसे कुछ पूर्वको बहते वीरभूम और वईमानके कुछ भीतर बड़ा तालाब है। तालाब कुछ उपत्यका भीतरसे भेदियाग्राममें इसने प्रवेश किया है। अन्तमें और कुछ पहाड़ खोदकर बनाया गया है। इस भेदियासे पूर्वमुख आकर कंटोयाके निकट भागीरथौके तालाबसे कुछ दूर एक पुरातन अट्टालिकाका भग्ना साथ मिल गया है। इसी नदके उत्तर-कूलमें सुप्रसिद्ध - एक -