पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०८

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२०२ अजात-अजाद तीथंगमन, विवाहके समय, देवतादिको पूजा- करने जाने, युद्धकाल, देशविप्लव होने या नगर ग्रामादिमें अग्नि लगनेपर अस्पृश्य व्यक्तिको स्पर्श करने में दोष नहीं लगता। अजात (सं० लो०) बकरीका घौ। अजाचक (हिं० पु.) १ अयाचक, वह व्यक्ति जो कुछ न मांग। (वि.)२न मांगनेवाला; सम्पन्न, खुश- खुर्रम। अजाची ((हिं. पु.) वह व्यक्ति जो किसीसे याचना न करे, भाग्यवान् पुरुष। आसूदा शख स । अजाजि, अजाजी (सं० स्त्री०) अज् क्षेपणे-घञ् इति आजः, अजेन छागेन वीयते गन्धोत्कटत्वात् त्यज्यते ; अज्-आज--इन्, ६-तत्। १ जीरक, जीरा। २ काको- दुम्बरिका वृक्ष, गूलरका पेड़। अजाजिक (सं० पु०) पीतजीरक, सफेद जीरा। अजाजीव (सं० पु.) अजस्य क्रयविक्रयादिना जीवति इति ; अज-आ-जीव-अच्, ३-तत्। छाग- मेषादिका व्यवसायी, भेड़-बकरका सौदागर । अजात (सं० वि०) न उत्पन्न हुआ, जो पैदा न जिन्हें लोग जनक कह सम्बोधन करते थे। वेदादि समस्त शास्त्रमें अजातशत्रु को प्रगाढ़ व्युत्पत्ति थी। कौषितको-ब्राह्मण उपनिषत् और शतपथब्राह्मणमें इनके धर्मज्ञानका विषय कहा गया है। महाराजको वेदादिमें ऐसी व्युत्पत्ति हो गई थी, कि यह क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणों को धर्मशास्त्रका उपदेश दे सकते थे एकबार महर्षि गाय काशीमें जा उपस्थित हुए। वहां पहुंच उन्होंने महाराजसे कहा, 'मैं आपको ब्रह्म- ज्ञानके सम्बन्धमें उपदेश दूंगा।' राजाने कहा,- 'अच्छा, आप मुझ उपदेश दोजिये ; मैं भी आपको सहस्र धेनु पुरस्कार दूंगा।' किन्तु गार्य राजाको अधिक उपदेश दे न सके। वरं उन्होंने निजमें ब्राह्मण होकर भी अजातशत्रु से ब्रह्मज्ञानके सम्बन्धमें उपदेश पानेके लिये अभिलाषको प्रकाश किया। २ राजा युधिष्ठिर। मगधके जजैक राजाका नाम। इनके पिताका नाम श्रेणिक या विम्बिसार था। श्रेणिकने राजगृह नगरको स्थापन किया था। राजग्टह देखो। अजातशत्र बुद्धदेव शाक्यसिंहके समकालिक थे। बुद्धदेवको निर्वाणप्राप्तिके बाद उनके अस्थि और चिताभस्मादि इन्होंने राजगृहमें एक बृहत् स्तूपके अभ्यन्तर बीच रखे थे। बुद्ध देखो। अजातानुसय (सं० त्रि०) बेपछतावा, न पछिताने- वाला। अजातारि (सं० पु०) १ जिसका कोई शत्रु न हो, दुश्मन न रखनेवाला। २ युधिष्ठिर। अजाति, अजाती (सं० स्त्री०) न-जन्-क्तिन्, नज- तत् । १ अनुत्पत्ति। २ जातिभिन्न कुछ और। (त्रि.) ३ जातिशून्य, बिना जातिका। ४ नित्य, मुदामी। अजातौल्वलि (सं० पु०) तुल्वलस्य अपत्यं पुमान् इति तौल्वलिः, मध्यपदलोपि कर्मधा० । न तौखलिभ्यः । पा २।४।६१ । छागमांसोपजीवी तुल्वल मुनिके सन्तान, बकरेका मांस बेचकर दिन काटनेवाले तुल्वल मुनिके लड़के। अजात्व (सं० क्लो०) अज होनेको स्थिति, बकरापन । अजाद (सं० पु.) बकरका मांस भक्षण करनेवाला, हुआ हो। अजातककुद् (सं० पु.) न जातं ककुदम् अंस- कूटम् अस्य, बहुव्री० । ककुदस्वावस्थायां लोपः। पा ५४१४६ । जिस वृषके कुम्भा न निकला हो। वत्स, अल्पवयस्क गवादिका वत्स; बछरा। अजातक (सं० लो०) बकरौके दूधका मठा। अजातदन्त (सं० त्रि०) न जातो दन्तो अस्य अत्र वा, बहुव्री.। जिस शिशुके दांत न निकले हों, विना दांतोंवाला, दुधमुंहा। अजातपक्ष (सं० वि०) न जातो पक्षो अस्य। पक्षि- शावक ; जिस पक्षोके बाजू न निकले हों, जो छोटा पक्षी उड़ न सके। अजातव्यञ्जन (सं० वि०) विना दाढ़ी-मूछका। अजात व्यवहार (सं० पु०) १ नाबालिग, जिसको अवस्था पन्द्रह वर्षसे कम हो। अजातशत्रु (सं० पु०) न जातः शत्रुर्यस्य अथवा जातस्य जीवमात्रस्य न शत्रुः । १ काशीके राजा,