पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अणु लगा करता है। आधारसे अणुके टकरानेपर वह संघर्ष सौ हाइड्रोजनके अण भी समा जायेंगे, फिर यह भी हारा वापस जाता है। इसतरहके आघातको दबाव पहले बता दिया गया है. कि गणनाका हिसाब (pressure ) कहते हैं। एक सेर बाष्य-पूर्ण आधारमें लगानेसे दो हाइड्रोजनके अणु एक अक्षिजनके अण से यदि फिर एक सेर अपर किसी बाष्यको भर दिया मिलनेपर जल बनता है। किन्तु परमाणु तत्त्वमें जाये, तो अणु ओंका दबाव द्विगुण हो जाता है। यौगिक पदार्थ के अण का योगायोग भारके हिसाबसे अर्थात् स्वभावतः जितना स्थान बाष्यते व्याप्त होता, भी लगाया जाता है। यह सकल वृत्तान्त रसायन- उसकी अपेक्षा स्थान घटा देनेसे अणु ओंकी गति बढ़ती विद्याके अन्तर्गत हैं। अतएव रसायन और परमाणु शब्दमें अणुके है। इसलिये आधारमें धड़-धड़ आघात लगता है। अन्यान्य विवरण देखो। किसी आधारमें भिन्न-भिन्न प्रकारके अणु भी ठसाठस २ सङ्गीतशास्त्रको एक मात्रा। अणु मात्रा (x) भर देनेसे आघात और प्रतिघातका वेग बढ़ता है। इस तरहके डमरु चिह्न द्वारा निर्दिष्ट होती है। आघात और प्रतिघातका वेग देख यह निश्चित किया, वैयाकरण अकारादि एक-एक लघुवर्ण वाले उच्चारणके जाता, कि किस आधारमें कितने कालको एकमात्र काल कहते हैं। यथा,- विद्यमान हैं। अणु उत्तापके न्यूनाधिक्यसे अणुओंको गतिका तारतम्य "एकमावो भवेदहखो दिमावो दीर्घ उच्यते । बंधता है। विमावस्तु तो जे यो व्यञ्जनञ्चाई मावकम् ॥" उत्ताप कम लगनेसे अणु ओंको गति घटती है। उत्ताप अधिक लगनेसे अणु ओंका वेग एकमात्र हस्ख, हिमात्र दीर्घ, त्रिमात्र प्लुत और बढ़ता है। वैज्ञानिकोंने परीक्षा कर देखा है, कि अईमात्रक वर्ण व्यञ्जन होता है। वैद्योंने अन्य शीतकालके वायुमें जो ताप (६० डिगरी फारेन- प्रकारसे मात्रा निर्दिष्ट की है। उनके मतसे, चक्षु- होट) रहता, उससे वायुके अणु एक मिनटमें दश का स्वाभाविक निमेष ही मात्रा निश्चित करनेका कोस घूमते हैं। अर्थात् सचराचर रेलगाड़ी जिस सहज उपाय है। “तब हुखाक्षरोच्चारणमावोऽक्षिनिमेषः ।” (सुश्रुत) वेगसे दौड़ती, अणु ओंका वेग उसको अपेक्षा साठ गुण इस्त्र वर्णको उच्चारण करने में जो समय लगता, वही अधिक होता है। चक्षुका एक निमेष है। एक-एक निमेष एकमात्र एक-एक अणु अपने गुरुत्वानुसार अन्य अणु के साथ काल होता है। सङ्गीत-शास्त्र कारोंके मतसे पांच लघु मिलता है। कहीं भी इस नियममें व्यतिक्रम नहीं वर्णोंको उच्चारण करने में जो समय लगता, वही पड़ता। आठ भाग अक्षिजन और एक भाग हाइड्रो एकमात्र काल है। पञ्चलधक्षरोच्चारण कालो मावा समीरिता।" जन मिलनेसे जल बनता है। भागका हिसाब मात्राके सम्बन्धमें भी इसीतरहके अनेक मतभेद देखे वजनसे लगाना पड़ता है, किसी पात्रको मापसे जाते हैं। जो हो, गायक और वाद्यकर अपने ठीक नहीं होता। आठ बोतल अक्षिजन और एक इच्छानुसार मात्राके कालको घटा-बढ़ा सकते हैं। बोतल हाइड्रोजन मिलानेसे जल नहीं बनेगा। कहनेका मतलब यही है, कि गौतादिके समय सर्वत्र कारण, यहां मापका हिसाब लगाया गया है। तथा कालका समान व्यवधान होनेसे कोई दोष नहीं आठ सेर अक्षिजन और एक सेर हाइड्रोजन लगता। सङ्गीत-शास्त्र में अई, हुस्ख, दीर्घ, प्लुत एवं मिलानेसे जल तय्यार हो जायेगा। कारण, इस अणु -इन्हीं पांच प्रकारको मात्राओंका व्यवहार जगह वज़नसे हिसाब किया गया है। ऐसा होनेका होता है। एकमात्र कालसे हिगुणको हिमात्र या तात्पर्य यह है, पहले ही कह चुके हैं, कि किसी दीर्घमात्र, त्रिगुण या तदतिरिक्त को त्रिमात्र, अई को पात्रसे बाष्पादि नापनेपर उसके अणु ओंकी संख्या अई मात्र, और चतुर्थांशको अणुमात्र काल कहते हैं। न्यूनाधिक नहीं पड़ती। किसी बोतलमें यदि दो यह पांच प्रकारके काल बतानेके लिये पांच प्रकारके सौ अम्लजानके अणु आ जायें, तो उसी बोतलमें दो साङ्केतिक चिह्न वर्तमान हैं। यथा,-() एक या