पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२३९

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अणुवीक्षण २३३ जायेगी। पालोकरश्मिके वक्र होनेका कारण आलोक शब्दमें दो प्रकारके अणुवीक्षण निर्मित हुए हैं। इनमें देखी। एकका आकार और निर्माणकोशल अतिशय सहज अब न-से -की ओर देखनेपर शीशेके जिन है। इससे इसको सामान्य अणुवीक्षण ( simple स्थानोंसे आलोकने प्रवेश किया है, ठीक वही वही microscope ) कहते हैं। इस चित्रमें क-श एक स्थान देख पड़ेंगे। क्योंकि किसी वस्तुसे आलोक लोह या काष्ठ-दण्ड सौधा खड़ा किया गया है। रश्मि निकलकर चक्षु में लगनेसे पहले, कितनी ही श- बाहु इच्छाक्रमसे उठाया और झुकाया जाता है। टेढ़ी होकर क्यों न आये, किन्तु आलोक जिस -प्रान्तमें पूर्वकथितानुसार एक बादामजैसा शोशा ओरसे आकर चक्षुमें लगता, ठीक उसी ओरसे सब लगा हुआ है। इसके भीतरसे हम देख सकते और वस्तु देखी जाती हैं। इसका वृत्तान्त आलोक शब्दमै देखो। इसे अक्षिदर्पण (eye-piece ) कहते हैं। श-६ छ यदि शीशेका मध्यविन्दु (optical centre) हो, दूसरा बाहु है। इसके -प्रान्तमें दराज़ बनी है, तो इ, 8 और छ, मिलाकर बढ़ा, एवं न, क जिसमें दो शीशे जड़े जा सकते हैं। जिस वस्तुको और न, २ रेखा भी बढ़ा देनेसे जहां समस्त रेखायें देखना होता, वह इन दोनो शोशोंके बीच रखना परस्पर मिलेगी, वहीं 5- द्रव्य देख पड़ेगा। फिर पड़ती है। श, ग-को आवश्यक अनुसार ऊंचा-नौचा 5- द्रव्य - जैसा बड़ा भी मालूम पड़ेगा। शीशेकी कर अक्षिदर्पण द्वारा देखनेसे वस्तु कितनी हो गठन और उसके गुणानुसार आलोकरश्मि अधिक बड़ी और सूक्ष्म देखी जाती है। देखनेको वस्तु यथेष्ट या कम वक्र पड़ती है। वह जितना ही अधिक आलोक न पानेसे अच्छौतरह नहीं देख पड़ती। वक्र होगी, न कोण उतना ही बढ़ता चला जायेगा इसलिये वस्तुपर यथेष्ट आलोक डालनेको व्यवस्था और वस्तु भी उसी परिमाणसे उतनी ही बड़ी देख कर दी गई है। 5- बाहुके छ-प्रान्तमें एक कोरदार पड़ेगी। 5-6, बिन्दुसे जितना ही निकट रहेंगे, शीशा ( concave mirror) जड़ा रहता है। श, व उतना ही बढ़ जायेंगे। किन्तु इससे वस्तु दूरपर यह शीशा इसतरह जड़ा गया, कि इच्छामत घुमाया दिखलाई देगी। अधिक दूर रहनेसे कोई वस्तु जाता है। जिस भावमें रखनेसे परीक्षा करनेकी अच्छी तरह देख नहीं पड़ती। जिस आश्चर्य यन्त्र वस्तुपर यथेष्ट आलोक जाकर पड़ सके, शीशेको द्वारा निर्मल जल एवं वायुके मध्य कोटि-कोटि सूक्ष्म पहले उसी रूपसे रख ले। ऐसा करनेसे आलोक प्राणी दिखाई देते, और जिसको सृष्टि के अनेक अद्भुत प्रतिफलित हो, परीक्षाके द्रव्यपर जा कर गिरेगा। विषय आविष्कृत होते हैं, वह सिवा एक शीशेवाले दर्पण देखो। उस समय आलोकमें वस्तु ख ब ही स्पष्ट टुकड़ेके और कुछ भी नहीं देख पड़ेगी। यह बात सभी लोग जानते हैं, कि कोई वस्तु चक्षुसे अत्यन्त निकट किंवा दूर रखनेपर भली भांति देख नहीं पड़ती। चक्षुसे १०।१२ इञ्च दूर कोई वस्तु रखनेपर खूब देख पड़ती है। किन्तु सबको दृष्टिशक्ति समान नहीं, इसलिये चक्षुकी अवस्था विचारकर यह दूरी घटा-बढ़ा लो जाती है। अर्थात् क, ग-को सरका कर कहीं को ओर लाना, कहीं ऊपरको ओर उठाना चाहिये। साधारणतः और -को इतनी दूर रहना आवश्यक है, जिसमें वस्तुका, वर्द्धित प्रतिविम्ब चक्षुसे १०।१२ इञ्च दूर जाकर गिरे। सामान्य अणुवीक्षण। ५८