पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अण्ड २३७ हैं। ऐसा होनेसे भली भांति देखा जा सकता, कि पूछको ओर दूसरा एक नया कीड़ा उत्पन्न हो गया है। पुराना कोड़ा अपने मनसे एक ओर चला जाता है। नया कीड़ा उस ओर नहीं जाना चाहता, वह दूसरी ओर घूम फिरता है। किन्तु इस अवस्थामें भी दो कौड़ों के दो विभिन्न इस जगह,२,७,६,७-यह क: दाग पड़नसे छ: नये कीड़े उत्पन्न होते हैं। पाकयन्त्र नहीं देख पड़ते। पुराना कीड़ा जो भोजन करता, उसौसे नये कोड़ेका शरीर पलता है। इसी समय किसी-किसी स्थलमें नये कीड़ेके गर्भसे अण्डा और कहीं शुक्रकोष उत्पन्न हुआ करता हैं। इसके बाद दोनो कोड़े अलग हो जाते हैं, धीरे-धीर अण्डा और शुक्रकोष बड़ा होनेपर बच्चोंका गर्भ फटता है। ऐसा होनेसे जलके ऊपर बहते-बहते यह अण्डा और शुक्रकोष एकमें मिल जाता और उससे फिर नया कीड़ा उत्पन्न होता है। बल्लेट साहबने एक कोड़ेके दो टुकड़ेकर देखा है, कि उसके मस्तकवाले अडाशके कटे हुए मुंहसे शीघ्र ही पूंछ निकली और पूछको ओरके अद्दांशके कटे हुए मुंहसे माथा बाहर हुआ। इसीतरह उन्होंने एक कौड़ेको काट छब्बीस टुकड़े किये थे ; उसके हरेक टुकड़े एक-एक नया कीड़ा उत्पन्न हुआ था। जीवोत्पत्तिका दूसरा नियम पराङ्गोभेद (gemmation ) है। नदी और समुद्रके जलमें कितने ही प्रकारके कौड़े होते हैं, बच्चा उत्पन्न होने के समय उनके शरीरके किसी स्थानमें फोड़ा- जैसा कुछ फूल आता है। धीरे-धीरे वह फोड़ा बढ़ा करता और रोज-रोज उसका आकार-अवयव ठीक पुराने कीड़े-जैसा होते चला जाता, अन्तमें उसके शरीरसे निकल पड़ता है। इसौको पराङ्गीद- भेद (gemmation ) द्वारा जीवोत्पत्ति कहते हैं। पुरुभुज नामक एक प्रकारका कोड़ा पानीमें रहता, जो इसीतरह उत्पन्न हुआ करता है। यह कौड़ा जलके किनारे, लकड़ी और पत्थरसे चिपका रहता है। किसी छोटे कौड़े, मकोड़े के पास आनेसे यह उसे पकड़कर खा डालता है। सन्तान उत्पन करनेसे पहले इसके शरीरके किसी स्थानमें व्रण-जैसा फूल आता है, धीरे-धीरे उसो व्रणसे दूसरा एक पुरुभुज निकल पड़ता है। अवशेषमें पुरातन पुरुभुज शरीरसे दूर होता ; किन्तु अनेक स्थलोंमै बच्चा न गिरनेसे भी उसके शरीरपर दूसरा बच्चा पैदा हो जाता है। इसीतरह पुरुभुज एक ही साथ चार-पांच पुरुषतक रह सकते हैं। इस जगह एक पुरुभुजका चित्र दिया गया है। इसके शरीरमें क और -यह दो पुरुभुज उत्पन्न हो रहे हैं। सिवा इन दो श्रेणियोंके एक पुरुभुजके शरीरसे दो नये पुरुभुजोंकी उत्पत्ति। बाकी दूसरी जन्तुयोंके जीवन- का सूत्रपात अण्डेके भीतर होता है। जो जीव अण्डे देते और अण्डे फटनेपर जिनका जन्म होता है, उन्होंको हम अण्डज कहते हैं। किन्तु समझकर देखनेसे यह सिद्धान्त बहुत ठीक नहीं। मनुष्य, गो, मेष प्रभृतिको भो अण्डे से उत्पन्न होनेके कारण अण्डज कहना असङ्गत नहीं है। बिना स्त्री और पुरुषको जननेन्द्रियका संयोग हुए इस श्रेणीके जीवोंको उत्पत्ति नहीं होती। इनमें किसी जातिवाले जन्तुके स्त्री-पुरुष अलग नहीं; ६०