पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२५

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अकवर २३ बरने शुभदिन और शुभसमयमें अमरकोटमें जन्म लिया। परन्तु पुत्र-मुख देखकर भी हुमायूं उस समय सुखी न हो सके ; क्योंकि शुत्रु यहांभो आ पहुचेथे । अब उनसे सबको बचाने का भी कोई उपाय न था, अतः सन्तानको वहीं छोड़ हुमायूं भाग चले । अकबर हुमायूंके भाई कामरानके हाथमें पड़े। विषयी पुरुषों के लिये कोई सहोदर भो नहीं, और आत्मीय वजन भी नहीं; जगत् केवल शत्रुमय दिखाई देता है। कामरान भी कभी-कभी अकबरको मार डालनेका विचार करता था। हुमायूँ भागे तो सही, पर अब जानेका स्थान कहां था। बहुत कुछ सोच विचारकर वह पारस्यकी ओर चले। पारस्यमें उस समय शीया धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। पारस्यके तमाहस्पने हुमायूसे कहा कि, यदि तुम शीया धर्म ग्रहण करो, तो हम तुम्हारी बहुत कुछ सहायता करें और इतनी सेना दें कि, फिरसे अपना राज्य शत्रुओंके हाथसे उद्धार कर सको । मनुष्यके दिन सदा एकसे नहीं जाते। कभी वृक्ष के नीचे, कभी वृहत् अट्टालिकामें मनुष्यका दिन कटता है-यह सब भाग्यचक्रका फेर है। हुमायू के भाग्यचक्रने फिर पलटा खाया, सौभाग्य-लक्ष्मी फिर उनपर सदय हो उठी। उन्होंने शीया धर्म ग्रहण किया। पारस्यके राजाने उनको बहुतसी सेना दी। हुमायूँ ने उस सेनाकी सहायतासे काबुल, कन्दहार और गज़नीपर अपना अधिकार जमा लिया। जिस समय हुमायूं ने काबुलपर चढ़ाई को, उस समय कामरानने हुमायूको अकबरको दिखाकर कहा-“यदि तुम मुझसे लड़ोगे, तो तुम्हारे पुत्रको अग्निमें डाल दूंगा ; वह जलकर राख हो जायगा।” परन्तु हुमायूँ न डरे। उन्होंने बड़ी वीरतासे अपने पुत्रको कामरानके हाथसे छुड़ाया। जब मनुष्थका दिन अच्छा आनेवाला होता है, तो उसे सभी सामान अनुकूल मिलने लगते हैं। इस समय हुमायू'के पहिले अनुचरोंने दिल्लीसे लिख भेजा कि, आपके शत्रु अब जीवित नहीं हैं, थोड़ोसी सेना लेकर आइये, विजय-लक्ष्मी आपकी राह देख रही है। यह समाचार सुन हुमायूँ भारतवर्षकी ओर बढ़े। उनके साथ उस समय कुल पन्द्रह हज़ार वीरोंकी सेना थी, जिसका सेनापति वीर बहरामखाँ था। उस समय अकबरको अवस्था तेरह वर्षकी थी; बालक होकरभी अकबर काबुलमें न छिपे रहे, वरं अपने पिताके साथ युद्ध में जानेको तय्यार हो गये। जिस समय रणभेरी बजी और घोड़ोंके टापोंको धूलसे आकाश छा गया, उस समय अकबरका हृदय भी वीरमदसे प्रसन्न हो उठा। वे घोड़ेपर चढ़कर पिताके साथही साथ पैक सिंहासनका उद्धार करने के लिये चले। कहावत प्रसिद्ध है:- "होनहार बिरवानके, होत चोकने पात"। पहिले लाहौरमें एक भयानक लड़ाई हुई । उस दिन महावीर बालक अकबरके पराक्रमसेही जय हुई। इसके उपरान्त हुमायूं को फिर कोई वाधा न पड़ी और उन्होंने अनायासही दिल्ली पहुँचकर राज्यसिंहा- सनका उद्धार किया। हुमायूँ इसके बाद कुछही दिन- तक जीवित रहे। एक दिन सन्ध्याके समय ईश्वराधना करते हुए वह पत्थरको सीढ़ीपरसे फिसल पड़े, जिससे उनके माथेमें बड़ी चोट आई । अन्तमें कुछ दिन बाद उस चोटसे ही उनके प्राण गये । १५५६ ईवीमें अकबर बादशाह हुए। उस समय अकबरको अवस्था बहुत थोड़ी थी। अत: हुमायू- का प्रिय मन्त्री बहरामखाँ भी राज्य का सब कारबार देखता था। बहरामखांकी प्रकृति अच्छी न थी। वह निर्दयौ था। इसी अवस्थामें अकबरने बहरामखांके हाथों में राज्यका भार रहने देना अच्छा न समझा,और एक साधारण विज्ञप्ति द्वारा राज्य अपने अधिकारमें कर लिया। बहराम चिढ़ गया, वह भी बागियोंमें जा मिला; परन्तु अकबरने उसे हराकर क्षमा कर दिया। केवल क्षमाहो न किया, बलिक सेनामें अच्छा पद देने और मक्क में जाकर निश्चिन्त हो रहनेका प्रबन्ध करनेका वचन दिया। बहरामखांने मक्का जानाही स्वीकार किया। अकबरने ५१ वर्ष राज्य किया; परन्तु इनके राज्य- का एक प्रकारसे सम्पूर्ण समय लड़ाई-झगड़े में ही